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    India vs Bharat Row: वाराणसी में बोले बाबा रामदेव- भारत नाम हमारे पूर्वजों ने दिया, अंग्रेजों ने इंडिया किया

    By Jagran NewsEdited By: Shivam Yadav
    Updated: Mon, 11 Sep 2023 12:10 AM (IST)

    योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि भारत नाम हमारे पूर्वजों ने दिया है। यह पुराणों से आया है। इंडिया नामकरण गुलामी के दौर में अंग्रेजों ने किया। अतः भारत कहने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इसमें हमारी संस्कृति का समावेश है। योग गुरु रविवार को साधना व दर्शन-पूजन के निमित्त दो दिवसीय प्रवास पर काशी में थे।

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    बाबा रामदेव ने आगे कहा कि सनातन धर्म सर्वोपरि है।

    वाराणसी, जागरण संवाददाता: योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि भारत नाम हमारे पूर्वजों ने दिया है। यह पुराणों से आया है। इंडिया नामकरण गुलामी के दौर में अंग्रेजों ने किया। अतः भारत कहने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इसमें हमारी संस्कृति का समावेश है।

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    योग गुरु रविवार को साधना व दर्शन-पूजन के निमित्त दो दिवसीय प्रवास पर काशी में थे। उन्होंने मीडिया से बातचीत में ज्ञानवापी मुद्दे पर कहा कि न्यायालय के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से सर्वे हो रहा है। इसमें सच सामने आ जाएगा। ज्ञानवापी के खंभे व आकृति देखने से ही मंदिर प्रतीत होता है। हालांकि मामला कोर्ट में है। उसके आदेश का हर एक को सम्मान करना चाहिए। 

    बाबा रामदेव ने आगे कहा कि सनातन धर्म सर्वोपरि है। सर्व समावेशी है। इसमें राष्ट्र धर्म अंतर्निहित है। सनातन धर्म के इस गौरव काल में पूरा भारत विश्व में उदीयमान हो रहा है। 

    शनिवार दोपहर काशी आने के बाद बाबा रामदेव ने शूलटंकेश्वर स्थित मौनी बाबा आश्रम में साधना की। रविवार सुबह काशी दर्शन यात्रा पर निकले। काशी के कोतवाल काल भैरव का दर्शन-पूजन किया। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में बाबा का पूजन-अभिषेक किया। अन्नपूर्णा मंदिर पहुंचे और दर्शन पूजन के बाद महंत शंकर पुरी से धर्म चर्चा की। 

    जंगमबाड़ी मठ में पीठाधीश्वर चंद्रशेखर महास्वामी से आशीर्वाद लिया। यहां से ही पतंजलि योगपीठ की कर्नाटक इकाई की धर्मसभा को ऑनलाइन संबोधित किया। काशी में चातुर्मास कर रहे कांची कामकोटि पीठाधीश्वर शंकराचार्य शंकर विजयेंद्र सरस्वती से मिलने हनुमान घाट स्थित काशी कांची कामकोटि मंदिर पहुंचे। उस समय शंकराचार्य पूजन कर रहे थे। उन्होंने इशारे में ही कुशलक्षेम जाना। योग गुरु ने उनका आशीर्वाद लिया और फिर आने का वादा किया।