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    बेंगलुरु दंगों के मामले में एंटी टेरर एजेंसी को मिली बड़ी सफलता, NIA कोर्ट ने 3 दोषियों को सुनाई 7 साल की सजा

    Updated: Wed, 23 Jul 2025 08:31 PM (IST)

    बेंगलुरु दंगों के मामले में एनआईए अदालत ने तीन आरोपियों को सात साल की सजा सुनाई है। सैयद इकरामुद्दीन सैयद आसिफ और मोहम्मद आतिफ को आईपीसी केपीडीएलपी और यूएपीए के तहत दोषी पाया गया। मामला 11 अगस्त 2020 को कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति के घरों और पुलिस स्टेशनों पर हुए हमले से संबंधित है।

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    बेंगलुरु दंगा मामले में NIA को मिली बड़ी सफलता। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 2020 के बेंगलुरु दंगों के मामले में एक बड़े घटनाक्रम में एनआईए की विशेष अदालत ने दोषी ठहराए गए तीन आरोपियों को सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। अदालत का यह फैसला राष्ट्रीय जांच एजेंसी के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है, जो ऐसी हिंसक घटनाओं के पीछे की बड़ी साजिश की जांच कर रही है।

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    दोषी ठहराए गए लोगों में सैयद इकरामुद्दीन उर्फ सैयद नवीद (44), सैयद आसिफ (46) और मोहम्मद आतिफ (26) शामिल हैं और इन पर भारतीय दंड संहिता, कर्नाटक संपत्ति विनाश और नुकसान निवारण अधिनियम (केपीडीएलपी) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे।

    क्या है मामला?

    यह मामला 11 अगस्त, 2020 को कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति के घरों और केजी हल्ली व डीजे हल्ली स्थित पुलिस थानों को निशाना बनाकर किए गए हिंसक हमले से संबंधित है। यह हिंसा विधायक के भतीजे की ओर से कथित तौर पर किए गए एक भड़काऊ फेसबुक पोस्ट के बाद हुई थी। दंगों में पुलिस की गोलीबारी में तीन लोग मारे गए और इलाके में व्यापक तबाही और दहशत फैल गई।

    एनआईए ने जांच में क्या पाया?

    एनआईए ने पहले आरोपियों और प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के साथ-साथ उसकी राजनीतिक शाखा एसडीपीआई के बीच संबंध स्थापित किए थे। एजेंसी ने बताया था कि कैसे पीएफआई सदस्यों ने सांप्रदायिक अशांति भड़काने और सरकारी मशीनरी पर हमला करने के लिए हिंसा की योजना बनाई थी। इस निष्कर्ष ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 2022 में पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    बेंगलुरु में एनआईए के विशेष सरकारी वकील पी प्रसन्ना कुमार ने कहा, "पुलिस पर कानून और व्यवस्था के साथ-साथ सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने का दायित्व है। जब कानून और व्यवस्था तथा सार्वजनिक व्यवस्था के ऐसे संरक्षकों पर हमला किया जाता है, तो पुलिस की कार्यकुशलता में जनता का विश्वास डगमगा सकता है और इससे सार्वजनिक व्यवस्था भंग होने की संभावना है।"

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