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    बंदूकें छूटीं, 'नमस्ते' ने ली 'लाल सलाम' जगह, बस्तर में आत्मसमर्पित माओवादी करेंगे अतिथि सत्कार

    Updated: Sun, 09 Nov 2025 06:59 PM (IST)

    बस्तर के जंगलों में आत्मसमर्पित माओवादियों ने नई राह चुनी है। वे अब अतिथि सत्कार का प्रशिक्षण ले रहे हैं। पुनर्वास नीति के तहत, उन्हें लाइवलीहुड कॉलेज में ग्राहक सेवा और हाउसकीपिंग सिखाई जा रही है। सरकार का लक्ष्य उन्हें मुख्यधारा में सम्मानपूर्वक वापस लाना है। पुनर्वास केंद्र में कई लोगों को बकरी पालन और राजमिस्त्री का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। सरकार 2026 तक राज्य को माओवादी हिंसा से मुक्त कराने का लक्ष्य बना रही है।

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    पुनर्वास केंद्र में प्रशिक्षण ले रहे आत्मसमर्पित माओवादी।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बस्तर के जंगलों में कभी बंदूकें थामे रहने वाले हाथ अब मेहनत और विकास की राह पर हैं। जिनकी जुबान पर कभी ‘लाल सलाम’ था, वही अब ‘नमस्ते’ की मिठास घोल रहे हैं। बीजापुर जिले के 30 आत्मसमर्पित माओवादियों ने एक नई राह चुनी है। अब उनका मुख्य हुनर गुरिल्ला लड़ाई नहीं अब 'मुस्कान और अतिथि सत्कार' है।

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    पुनर्वास नीति के तहत इन्हें जगदलपुर के समीप आड़ावाल स्थित लाइवलीहुड कालेज में अतिथि सेवा सहयोगी (गेस्ट सर्विस एसोसिएट्स) का विशेष व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

    इन पूर्व माओवादियों को लगभग तीन महीने के इस कोर्स में ग्राहक संवाद, हाउसकीपिंग और साफ्ट स्किल्स की बारीकियां सिखाई जा रही हैं। ताकि वे बस्तर के होमस्टे, रिसार्ट्स और पर्यटक स्थलों पर आत्मविश्वास के साथ काम कर सकें और मुख्यधारा में सम्मानजनक जीवन जी सकें। यह पहल न केवल आत्मसमर्पण कर चुके लोगों के लिए आशा की किरण है, बल्कि बस्तर में शांति और पर्यटन के एक नए अध्याय की शुरुआत भी है।

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    राज्य सरकार का कहना है कि लक्ष्य केवल माओवादियों का आत्मसमर्पण कराना नहीं, बल्कि उन्हें मुख्यधारा में सम्मानपूर्वक वापस लाना है। पुनर्वास नीति के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई भी दोबारा हिंसा की राह पर न जाएं। वे मुख्यधारा में सम्मानपूर्वक लौटें और आत्मनिर्भर बनें।

    पुनर्वास केंद्र में 69 प्रशिक्षणरत

    वहीं, बीजापुर में ही आड़ावाल स्थित माओवादी पुनर्वास केंद्र में 69 आत्मसमर्पित लाभार्थी प्रशिक्षणरत हैं, जिनमें 23 महिलाएं और 12 पुरुषों को बकरी पालन के साथ फिनाइल और डिटर्जेंट निर्माण का अतिरिक्त प्रशिक्षण आरएसईटीआइ (ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान) के माध्यम से दिया जा रहा है।

    वहीं, 34 पुरुष ग्रामीण राजमिस्त्री का प्रशिक्षण ले रहे हैं। बस्तर जिले के पुनर्वास केंद्र का नाम ‘नवां बाट’ रखा गया है, जो गोंडी शब्द है। इसका हिंदी में अर्थ नई राह है। बीजापुर जैसे संवेदनशील इलाकों में सरकार की पुनर्वास नीति सुनहरा माडल साबित हो रहा है।

    दर्द भरे जीवन से आजादी की ओर

    10 लाख के इनामी रहे एक पूर्व माओवादी रामू (परिवर्तित नाम) ने भावुक होकर कहा कि बस्तर के जंगल में हिंसा की जिंदगी ने सिर्फ दर्द दिया, अब लाइवलीहुड कालेज में सीखकर लगता है कि असली आजादी यहीं है। स्वयं मेहनत कर घर-परिवार को खुशहाल बनाएंगे। एक अन्य समर्पित माओवादी ने कहा कि वर्दी की जगह अब होटल की यूनिफार्म पहन कर जिंदगी की नई शुरुआत होगी। अब समझ में आया कि असली ताकत शिक्षा और मेहनत में है।

    पहले जंगल में बंदूक थी, लेकिन अब कालेज में प्रशिक्षण का हथियार मिल रहा है, जिससे परिवार की जिंदगी संवरेगी। एक ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि जंगल में जीवन बहुत मुश्किल और खाली था। मुख्यधारा से जोड़ने के लिए जो पुनर्वास नीति बनाई गई है, वह एक अभिनव प्रयास है। इससे अब हम काम करके परिवार के लिए एक स्थिर और सम्मानजनक जीवनयापन कर सकते हैं। राज्य सरकार के कदम से हिम्मत मिली है।

    पुनर्वास नीति के तहत मुख्यधारा में लौट रहे युवा- विजय शर्मा

    उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में बनी संवेदनशील पुनर्वास नीति का यह असर है कि मुख्यधारा में युवा लौट रहे हैं। शासन द्वारा इन पुनर्वासित युवाओं को रोजगार और कौशल सिखाकर इन्हें समाज के साथ पुनः जोड़ने का कार्य किया जा रहा है।

    बस्तर अपने प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। ऐसे में पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी उद्योग में युवा जुड़कर रोजगार पा सकते हैं और अपनी जीवन संवार सकते हैं। इससे बस्तर पर्यटन को भी नया आयाम मिलेगा। 31 मार्च 2026 के पहले ही राज्य को माओवादी हिंसा से मुक्त करा लिया जाएगा।

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