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    Gandhi Jayanti: जानें कैसे दक्षिण अफ्रीका में मॉब लिंचिंग से बचे थे बापू

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Mon, 30 Sep 2019 02:25 PM (IST)

    Gandhi Jayanti 125 साल पहले मोहनदास करमचंद गांधी नाम के एक युवा भारतीय वकील को दक्षिण अफ्रीका में ऐसी ही एक भीड़ का सामना करना पड़ा था। ...और पढ़ें

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    Gandhi Jayanti: जानें कैसे दक्षिण अफ्रीका में मॉब लिंचिंग से बचे थे बापू

    नई दिल्ली, आइएएनएस। Gandhi Jayanti पिछले कुछ वर्षों में देश में मॉब लिंचिंग (उन्मादी भीड़ की हिंसा) की चपेट में आकर लगभग 100 लोगों की जान गई है। भारत में इस तरह की घटनाएं भले ही पिछले कुछ वर्षों से प्रकाश में आनी शुरू हुई हों, लेकिन 125 साल पहले मोहनदास करमचंद गांधी नाम के एक युवा भारतीय वकील को दक्षिण अफ्रीका में ऐसी ही एक भीड़ का सामना करना पड़ा था। सौभाग्यवश वह भीड़ के चंगुल से बच निकले थे। अगर ऐसा नहीं होता तो दुनिया शायद कभी मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बनता नहीं देख पाती।

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    कारोबारी दादा अब्दुल्ला के बुलावे पर उनकी कंपनी को कानूनी मदद देने वर्ष 1893 में बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे। यहां वे अपने संघर्षों के बल पर महज तीन साल में यानी वर्ष 1896 तक एक राजनेता के रूप में स्थापित हो चुके थे। उन्होंने 22 अगस्त, 1894 को नटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की और दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के हितों के लिए संघर्ष करते रहे।

    ग्रीन पंफ्लेट में उठाया भारतीय गिरमिटिया मजदूरों का मामला

    1896 में वह भारत लौटे थे। 27 साल के महात्मा जब राजकोट में थे तब उन्होंने ‘ग्रीन पंफ्लेट’ नामक एक पुस्तिका लिखी, जिसमें दक्षिण अफ्रीका में भारतीय गिरमिटिया मजदूरों और कुलियों की स्थिति और वहां हो रहे मानव अधिकारों के उल्लंघन का जिक्र किया था। इसी बीच एनआइसी के बुलावे पर वह 30 नवंबर, 1896 को दक्षिण अफ्रीका के लिए फिर से रवाना हो गए। इस बार उनके साथ उनका परिवार यानी पत्नी और बच्चे भी थे। गांधी के दक्षिण अफ्रीका पहुंचने से पहले ही उनके ‘ग्रीन पंफ्लेट’ ने वहां तूफान खड़ा कर दिया था।

    जहाज से उतरते ही ‘गोरों’ ने पीटना शुरू कर दिया

    ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक गांधी का जहाज जब डरबन पहुंचा तो पहले उसे तीन दिन तक बंदरगाह आने की अनुमति नहीं दी गई। जब जहाज को बंदरगाह आने की अनुमति दी गई और बापू जहाज से उतरे तो उन्हें ‘गोरों’ ने पीटना शुरू कर दिया। इसी दौरान पुलिस अधीक्षक आरसी एलेक्जेंडर की पत्नी सारा वहां से गुजर रही थीं। जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो बापू को भीड़ से बचाने के लिए उन्होंने उन पर अपनी छतरी तान दी। इसी के साथ सारा ने पति को भी सूचित किया, जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और गांधी को बचाया।

    जब भीड़ गांधी को सौंपने की मांग करने लगी

    उन्मादी भीड़ के चंगुल से छुड़ाकर उन्हें दोस्त जीवनजी रूस्तमजी के घर ले जाया गया, जहां उनकी पत्नी और बच्चे पहले ही पहुंच चुके थे। उनके कपड़े फटे हुए थे और पूरे शरीर में चोटों के कई निशान थे। तत्काल डॉक्टर बुलाया गया और उन्हें प्राथमिक चिकित्सा दी गई। हालांकि महात्मा गांधी के लिए मुसीबत यहीं कम नहीं हुई। भीड़ वहां भी पहुंच गई और गांधी को सौंपने की मांग करने लगी। पुलिस अधीक्षक अलेक्जेंडर की सलाह पर गांधी ने खुद को पुलिसकर्मी बताया और रुस्तमजी के घर से चले गए।

    हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का किया अनुरोध

    गांधी की हत्या करने की कोशिश की खबर जब ब्रिटिश सरकार तक पहुंची तो उपनिवेश सचिव जोसेफ चैंबरलेन ने दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया। हालांकि गांधी ने कार्रवाई नहीं करने का अनुरोध किया। उन्होंने सरकार को लिखा कि हमलावर युवा थे और वे रायटर द्वारा प्रकाशित एक गलत खबर से भ्रमित हो गए थे। इसके बाद भी उन्होंने नटाल इंडियन कांग्रेस के लिए काम करना जारी रखा।

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