अगर बैंक का ATM है तो उससे होने वाली दुर्घटना के लिए बैंक ही होगा जिम्मेदार, क्या है मामला?
भोपाल जिला उपभोक्ता आयोग ने कहा है कि एटीएम बैंक का है तो दुर्घटना की जिम्मेदारी भी बैंक की होगी। आयोग ने बैंक के इस तर्क को खारिज किया कि एटीएम का प्रबंधन एजेंसी करती है। एक मामले में, एटीएम का दरवाजा गिरने से घायल हुए उपभोक्ता को बैंक को इलाज के खर्च के रूप में डेढ़ लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया है।

तस्वीर का इस्तेमाल प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भोपाल के जिला उपभोक्ता आयोग ने साफ किया है कि एटीएम बैंक का है तो उससे होने वाली किसी भी दुर्घटना के लिए बैंक ही जिम्मेदार होगा। इस आधार पर आयोग ने बैंक के इस तर्क को खारिज कर दिया कि एटीएम की बाहरी व्यवस्था एजेंसी देखती है, इसीलिए बैंक को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए।
आयोग ने कहा कि एजेंसी भी बैंक की ओर से अधिकृत की गई है, इसलिए बैंक जिम्मेदारी से इन्कार नहीं कर सकता। इस आधार पर बैंक ने पैसे निकालने पहुंचे उपभोक्ता को एटीएम का दरवाजा गिरने से घायल होने पर उपचार में हुए खर्च की भरपाई के लिए हर्जाना के रूप में डेढ़ लाख रुपये का भुगतान करने के आदेश किया है।
क्या है मामला?
पिछले वर्ष हुई दुर्घटना में एटीएम का दरवाजा खोलते ही कांच की दीवार उपभोक्ता के ऊपर गिर गई। इसकी वजह से उसकी कलाई की नसें क्षतिग्रस्त हुईं। उपचार पर 1.36 लाख रुपये खर्च हो गया। पीड़ित संतोष कुमार श्रीवास्तव ने जिला उपभोक्ता आयोग में भारतीय स्टेट बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक के खिलाफ नवंबर, 2024 में याचिका दायर की थी।
बताया कि वह बैंक की जेपी अस्पताल शाखा स्थित एटीएम से रात नौ बजे पैसा निकालने गए। एटीएम के अंदर प्रवेश करते समय दरवाजे से लगी कांच की दीवार उनके ऊपर गिर गई। इससे उनकी कलाई कट गई। वह बेहोश हो गए। साथियों ने अस्पताल पहुंचाया। जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि कलाई की सभी नसें क्षतिग्रस्त हो गई हैं। कांच के छोटे-छोटे टुकड़े उसमें घुस गए हैं, जिसे सर्जरी कर निकालना पड़ेगा। इलाज के लिए उन्हें सात दिन अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। इलाज पर 1.36 लाख रुपये खर्च हो गए।
एसबीआई का क्या कहना था?
बैंक से शिकायत की तो उसने जिम्मेदारी लेने से इन्कार कर दिया। मामला उपभोक्ता आयोग पहुंचा। एसबीआई का कहना था कि एटीएम का प्रबंधन एफएसएस एजेंसी करती है। वह बैंक से अलग है, इसलिए दुर्घटना की जिम्मेदारी उनकी नहीं है।
बैंक के तर्कों को खारिज करते हुए जिला आयोग ने कहा कि उपभोक्ता बैंक का खाताधारक है। आयोग ने बैंक को आदेशित किया कि वह उपभोक्ता के इलाज पर खर्च राशि सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से अदा करे। साथ ही मानसिक रूप से हुई परेशानियों के लिए 15 हजार रुपये क्षतिपूर्ति के तौर पर देने का भी आदेश दिया।

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