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    बांग्लादेश चुनाव: एकतरफा मुकाबले की तैयारी पर भारत की नजर, संबंधों पर क्या होगा असर? Inside Story

    By Jayaprakash RanjanEdited By: Deepak Gupta
    Updated: Fri, 26 Dec 2025 08:55 PM (IST)

    बांग्लादेश में 2026 के आम चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल गरमा गया है। आवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जबकि तारिक रहमान 17 साल बाद निर्वासन से ल ...और पढ़ें

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    पीएम मोदी और मोहम्मद युनूस। (फाइल)

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अभूतपूर्व आंतरिक अनिश्चतता के बावजूद बांग्लादेश में 12 फरवरी 2026 को होने वाले आम चुनावों को लेकर राजनीतिक माहौल गरमा रहा है।

    कुछ ही घंटे के अंतराल में पड़ोसी देश बांग्लादेश में पहले आवामी लीग को चुनाव में हिस्सा लेने से प्रतिबंधित किया गया और फिर ढाका के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बीएनपी की पूर्व प्रमुख खालिदा जिया के बेटे और वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान का जबरदस्त स्वागत किया गया है।

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    17 साल के निर्वासन के बाद ढाका लौटे रहमान

    रहमान 17 साल के निर्वासन के बाद 25 दिसंबर को ढाका लौटे हैं और आगामी चुनाव में बीएनपी की बागडोर संभालेंगे। जानकार मान रहे हैं कि आवामी लीग को प्रतिबंधित करने के बाद आगामी चुनाव तकरीबन वैसे ही माहौल में होने जा रहा है जैसे पिछले तीन चुनाव हुए थे यानी प्रमुख विपक्षी दल को चुनाव मैदान में उतरने ही नहीं दिया गया था। एक तरह से निष्पक्ष और लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं।

    बीएनपी ने वर्ष 2014 में बहिष्कार किया था जबकि 2024 में आवामी लीग को चुनाव लड़ने से बैन किया गया था। जबकि वर्ष 2018 में उनकी मुखिया खालिदा जिया समेत अधिकांश बड़े नेता चुनाव नहीं लड़ पाये थे। बल्कि बाद में उन्हें भ्रष्टाचार के मामले मे जेल में डाला गया था और तबीयत खराब होने पर हाउस अरेस्ट किया गया था।

    शेख हसीना के बंग्लादेश से भागकर भारत आने के बाद यूनूस सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल से तारिक रहमान की वापसी पर सवाल पूछा गया तो उनका जवाब था कि, “हम इस घटनाक्रम को बांग्लादेश में आगामी चुनाव के समावेशी होने से जोड़ कर देख रहे हैं।''

    जायसवाल ने भारत की यह मांग दोहराई कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को वहां निष्पक्ष व स्वतंत्र तरीके से चुनाव कराने चाहिए जिसमें सभी को हिस्सा लेने का मौका मिले। वह यह भी कहते हैं कि भारत वहां के हर राजनीतिक गतिविधि पर बहुत ही करीबी नजर बनाये हुए है।

    कूटनीति में किसी भी विकल्प के लिए दरवाजे बंद नहीं होते- विदेश मंत्रालय

    विदेश मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि कूटनीति में किसी भी विकल्प के लिए दरवाजे बंद नहीं होते। बीएनपी के साथ भारत ने पूर्व में भी काम किया है। उक्त अधिकारी के मुताबिक प्रोफेसर मोहम्मद युनूस की अंतरिम सरकार के साथ कई मुद्दों पर मतभेद होने के बावजूद भारत वहां के हर राजनीतिक दल के साथ संपर्क बना कर रखे हुए है।

    बंग्लादेश में इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है। शेख हसीना के 15 साल के शासन में बीएनपी की गतिविधियों को दबाया गया और अब वैसे ही आवामी लीग को हाशिए पर धकेला जा रहा है। आवामी लीग के साथ ही इसके छात्र संगठन को भी प्रतिबंधित किया जा चुका है।

    भारत-विरोधी गतिविधियों से जुड़ा रहा बीएनपी का इतिहास

    कुछ अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक विशेषज्ञों ने आकलन किया है कि बांग्लादेश चुनाव एकतरफा होने की तरफ अग्रसर है। यह स्थिति भारत के रणनीतिक हितों को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं। बीएनपी का इतिहास भारत-विरोधी गतिविधियों से जुड़ा रहा है और पूर्व में जब भी वह सत्ता में आई है तो भारत के हितों के खिलाफ कदम उठाया है।

    भारत के लिए चुनौतीपूर्ण रहा खालिदा जिया का कार्यकाल

    वर्ष 2001-06 का खालिदा जिया का कार्यकाल भारत के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण रहा था। वह दो बार (कुल 12 वर्ष) पीएम रही लेकिन भारत का दौरा सिर्फ एक बार किया। जबकि पाकिस्तान का दो बार दौरा किया था।

    पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) ने इस दौरान बांग्लादेश को भारत-विरोधी गतिविधियों का केंद्र बनाया। पूर्वोत्तर भारत के अलगाववादी संगठनों जैसे, असम के यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के नेता अनूप चेतिया और परेश बरुआ जैसे आतंकी नेताओं को बांग्लादेश में सुरक्षित ठिकाने दिए गए।

    उल्फा, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) और अन्य संगठनों को हथियार, ट्रेनिंग और लॉजिस्टिकल सपोर्ट प्रदान किया गया। वर्ष 2004 में चटगांव बंदरगाह पर 10 ट्रक हथियारों की खेप पकड़ी गई थी जिसके तार आईएसआई और उल्फा से जुड़े हुए थे। उनके शासन में भारत-बांग्लादेश सीमा पर तनाव बढ़ा, जहां बांग्लादेशी राइफल्स (बीडीआर) की ओर से गोलीबारी की घटनाएं आम थीं।

    गंगा जल बंटवारे पर कड़ा रुख अपना कर फरक्का बैराज विवाद को बढ़ाया था। बीएनपी के कार्यकाल में ही जमाते-इस्लामी को बढ़ावा मिला जिसकी वजह से हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले का सिलसिला शुरू हुआ जो आज तक जारी है।