Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    चंद्रमा पर ईंटों की दरारें भर सकते हैं बैक्टीरिया, भारतीय विज्ञान संस्थान शोधकर्ताओं ने ढूंढा तरीका

    By Agency Edited By: Jeet Kumar
    Updated: Wed, 02 Apr 2025 11:34 PM (IST)

    चंद्रमा का वातावरण ऐसा है कि वहां पर किसी भी तरह का स्थायी निर्माण करना मुश्किल है। 121 से लेकर -133डिग्री सेल्सियस तक तापमान में भारी अंतर और सौर्य वायु व गिरते उल्कापिंड किसी स्थायी ढांचे के निर्माण के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। ऐसे में आईआईएससी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा तरीका ढूंढा है जिससे वहां ढांचे बनाने के दौरान बैक्टीरिया ईंटों में पड़ने वाली दरारें भर सकते हैं।

    Hero Image
    चंद्रमा पर ईंटों की दरारें भर सकते हैं बैक्टीरिया- भारतीय विज्ञान संस्थान

    पीटीआई, नई दिल्ली। चंद्रमा का वातावरण ऐसा है कि वहां पर किसी भी तरह का स्थायी निर्माण करना मुश्किल है। 121 से लेकर -133 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में भारी अंतर और सौर्य वायु व गिरते उल्कापिंड किसी स्थायी ढांचे के निर्माण के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शोधकर्ताओं ने ढूंढा तरीका

    ऐसे में भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा तरीका ढूंढा है, जिससे वहां ढांचे बनाने के दौरान बैक्टीरिया ईंटों में पड़ने वाली दरारें भर सकते हैं। बेंगलुरु स्थित आइआइएससी के शोधकर्ताओं ने कहा कि चंद्रमा पर अध्ययन के लिए भविष्य की उड़ानें परंपरागत नहीं होंगी, बल्कि वहां पर नासा के आर्टेमिस मिशन की तरह स्थायी निवास का निर्माण किया जाएगा।

    हालांकि, वहां का वातावरण काफी कठोर है। वहां केवल एक दिन का तापमान ही करीब 150 डिग्री ऊपर-नीचे होता है। ऐसे वातावरण में ईंटों में दरारें पड़ सकती हैं, जिससे ढांचा कमजोर हो सकता है।

    ईंटों में कृत्रिम ढंग से पैदा किया गया

    फ्रंटियर्स इन स्पेस टेक्नोलाजीज नामक जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र में लेखकों ने समझाया है कि इन कमियों को ईंटों में कृत्रिम ढंग से पैदा किया गया और फिर इसमें स्पोरोसारसिना पेस्टुरी बैक्टीरिया, गुआर गम और चंद्रमा जैसी मिट्टी से बनी सामग्री का घोल डाला गया।

    ऐसे वातावरण में ये बैक्टीरिया यूरिया को विघटित कार्बोनेट और अमोनिया में बदल सकते हैं। ईंटों में मौजूद कैल्शियम, कार्बोनेट के साथ क्रिया कर कैल्शियम कार्बोनेट बना सकता है, जो गुआर गम के साथ भराव वाली सामग्री और सीमेंट जैसा बन जाता है और दरारें भर देता है।

    प्रबलित ईंटें 100 से 175 डिग्री तापमान सह सकती हैं

    शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रबलित (रीइंफो‌र्स्ड) ईंटें 100 से 175 डिग्री तापमान सह सकती हैं। शोध के प्रमुख लेखक और संस्थान में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर आलोक कुमार ने बताया कि बेहद मजबूत ईंटें बनाने के लिए सिंटरिंग प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें मिट्टी की तरह की सामग्री को पॉलीविनाइल एल्कोहल जैसे पॉलीमर के साथ काफी उच्च तापमान में मिलाया जाता है।

    आम ढांचे के लिए जरूरत से ज्यादा बेहतर होती हैं

    इस तरह बेहद मजबूत क्षमता वाली ईंटे बनाई जाती हैं और आम ढांचे के लिए जरूरत से ज्यादा बेहतर होती हैं। अब यह दल स्पोरोसारसिना पेस्टुरी बैक्टीरिया के नमूने को गगनयान मिशन के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष में भेजने का प्रस्ताव बना रहा है, जिससे वहां के वातावरण में इसके विकास और व्यवहार का अध्ययन किया जा सके।