Move to Jagran APP

Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल को 15 अगस्त तक का समय दिया

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस में मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी करने के लिए मध्यस्थता पैनल को और 15 अगस्त तक का समय दे दिया है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 09 May 2019 06:32 PM (IST)Updated: Fri, 10 May 2019 11:08 AM (IST)
Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल को 15 अगस्त तक का समय दिया
Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल को 15 अगस्त तक का समय दिया

नई दिल्ली, माला दीक्षितअयोध्या राम जन्मभूमि मामले में मध्यस्थता पैनल ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है। पैनल ने मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी करने के लिए शुक्रवार को शीर्ष अदालत से और समय दिए जाने की मांग की जिसे अदालत ने स्‍वीकार करते हुए पैनल को दिया और 15 अगस्त तक का समय दे दिया है। 

loksabha election banner

मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने की। पीठ के अन्य न्यायाधीश एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर हैं। सुनवाई करते हुए मुख्‍य न्‍यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि हम यह नहीं बताने जा रहे हैं कि मध्‍यस्‍थता मामले में अब तक क्‍या प्रगति हुई, यह गोपनीय है। इससे पहले, पीठ ने आठ मार्च को पिछली सुनवाई पर दशकों से अदालत की चौखट पर घूम रहे विवाद का समाधान बातचीत के जरिये तलाशने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल भेजा था।

पैनल को आठ सप्ताह का वक्त दिया गया था और चार सप्ताह में प्रगति रिपोर्ट मांगी गई थी। मध्यस्थता पैनल में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू सदस्य हैं। कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल की कार्यवाही पूरी तरह गोपनीय रखने की बात कही थी ताकि मध्यस्थता प्रक्रिया प्रभावित न हो। मध्यस्थता पैनल के गठन को दो महीने का वक्त पूरा हो गया है और पैनल ने आदेशानुसार अपनी अंतरिम रिपोर्ट दाखिल कर दी है। इसके बाद कोर्ट ने गुरुवार को वेबसाइट पर नोटिस जारी कर अयोध्या मामले की सुनवाई शुक्रवार को होने की सूचना दी।

मालूम हो कि शीर्ष कोर्ट ने 26 फरवरी को मामला बातचीत के जरिये हल करने के लिए मध्यस्थता के लिए भेजने का प्रस्ताव दिया था। कोर्ट का कहना था कि जब तक अनुवाद की जांच होकर मामला सुनवाई के लिए तैयार होता है, उस बीच आठ सप्ताह में मध्यस्थता के जरिये इसे हल करने की कोशिश की जा सकती है। निर्मोही अखाड़ा को छोड़कर रामलला विराजमान और अन्य हिंदू पक्षकारों ने मामला मध्यस्थता के लिए भेजने का विरोध किया था। जबकि मुस्लिम पक्षकार और निर्मोही अखाड़ा ने सहमति जताई थी। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामला मध्यस्थता को भेज दिया था।

कोर्ट का कहना था कि उन्हें मामला बातचीत के जरिये हल करने के लिए मध्यस्थता को भेजने में कोई कानूनी बाधा नजर नहीं आती। तकनीकी पहलुओं पर कोर्ट का कहना था कि यह स्थिति तब आएगी जब पक्षकार किसी समझौते पर पहुंच जाते हैं। ऐसे में उचित समय आने पर इसे तय किया जाएगा।

यह है मामला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में फैसला देते हुए विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने जमीन को रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बांटने का आदेश दिया था। साथ ही साफ किया था कि रामलला विराजमान को वही हिस्सा दिया जाएगा जहां वह विराजमान हैं। हाई कोर्ट के इस फैसले को सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल यथास्थिति कायम है।

मध्‍यस्‍थता की पहल
सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने राम जन्मभूमि विवाद का बातचीत के जरिये आपसी सहमति से हल निकालने के लिए गत 1 मार्च को मामला मध्यस्थता को भेज दिया था। कोर्ट ने तीन सदस्यों का मध्यस्थता पैनल बनाया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एफएम इब्राहिम कलीफुल्ला को अध्यक्ष व आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर व वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू को सदस्य नियुक्त किया था। कोर्ट ने आठ सप्ताह में मध्यस्थता के जरिए सुलह के रास्ते तलाशने को कहा था।

फैजाबाद में ही मध्यस्थता
कोर्ट ने मध्यस्थता की सफलता सुनिश्चित करने के लिए इसे फैजाबाद में करने का आदेश दिया था। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार से इसके लिए तत्काल सभी जरूरी इंतजाम करने को कहा था ताकि मध्यस्थता एक सप्ताह में शुरू हो जाए। इन्तजाम में मध्यस्थता की जगह, मध्यस्थों के ठहरने,आने जाने और सुरक्षा आदि शामिल थी।

मध्यस्थता प्रक्रिया गोपनीय
कोर्ट ने आदेश दिया था कि मध्यस्थता इन कैमरा होगी और उसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए उसमें पूरी तरह गोपनीयता बरती जाएगी। मध्यस्थता के दौरान पक्षकारों और यहां तक कि मध्यस्थ द्वारा रखे गए विचारों को भी गोपनीय रखा जाएगा और किसी भी व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं दी जाएगी।

मीडिया न करे मध्यस्थता की रिपोर्टिग
कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता प्रक्रिया की इलेक्ट्रानिक या प्रिंट मीडिया में रिपोर्टिग नहीं होनी चाहिए। हालांकि कोर्ट ने मीडिया रिपोर्टिग पर रोक लगाने का कोई आदेश पारित नहीं किया लेकिन मध्यस्थता पैनल को जरूरत पड़ने पर रिपोर्टिग रोकने के लिए आदेश पारित करने की छूट दी है।

चार सप्ताह में मांगी थी प्रगति रिपोर्ट
कोर्ट ने पैनल से तय समय आठ सप्ताह में मध्यस्थता पूरी करने को कहा था साथ ही मध्यस्थता शुरू होने के चार सप्ताह में प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। पीठ ने मध्यस्थता पैनल के अध्यक्ष से कहा था कि अगर उन्हें इस काम में कोई दिक्कत पेश आती है तो वह सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को उसके बारे में सूचित कर सकते हैं। कोर्ट ने उनसे जल्दी से जल्दी काम पूरा करने को कहा था।

अयोध्या पैकेज : ये है इतिहास
1528 : अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। समझा जाता है कि मुगल सम्राट बाबर ने ये मस्जिद बनवाई थी, जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।
1853 : हिंदुओं ने आरोप लगाया कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई।
1859 : ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ ख़़डी कर विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिंदुओं को अलग--अलग प्रार्थना की इजाजत दे दी।
1885 : मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में विवादित बाबरी मस्जिद से लगे राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।
23 दिसंबर, 1949 : करीब 50 हिंदुओं ने विवादित मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।
16 जनवरी, 1950 : गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा--अर्चना की विशेष इजाजत मांगी। उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की भी मांग की।
05 दिसंबर, 1950 : महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और विवादित बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया।
17 दिसंबर, 1959 : निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।
18 दिसंबर, 1961 : उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
1984 : विश्व हिंदू परिषषद (वीएचपी) ने विवादित स्थल के ताले खोलने और एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। एक समिति का गठन किया गया।
01 फरवरी, 1986 : फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।
जून 1989 : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू कर मंदिर आंदोलन को नया जीवन दिया।
01 जुलाई, 1989 : भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवां मुकदमा दाखिल किया गया।
09 नवंबर, 1989 : तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने विवादित स्थल के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।
25 सितंबर, 1990 : भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथयात्रा निकाली।
नवंबर 1990 : आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सिंह ने वाम दलों और भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी। बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
छह दिसंबर, 1992 : हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचा ढहा दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया।
16 दिसंबर, 1992 : विवादित स्थल में तोड़फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एमएस लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।
जनवरी 2002 : प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।
अप्रैल 2002 : अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।
मार्च--अगस्त 2003 : इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खोदाई की।
जुलाई 2005 : आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आतंकियों को मार गिराया।
जुलाई 2009 : लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
28 सितंबर, 2010 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाई कोर्ट को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।
30 सितंबर, 2010 : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
21 मार्च, 2017 : राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की पेशकश की है। तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा है कि अगर दोनों पक्ष राजी हों तो वो कोर्ट के बाहर मध्यस्थता करने को तैयार हैं।
08 मार्च, 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया। 

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.