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    तलाक के मामलों में कैसे तय हो गुजारा भत्ता? अतुल सुभाष केस के बीच SC ने दे दिया 8 सूत्रीय फॉर्मूला

    Updated: Thu, 12 Dec 2024 11:20 AM (IST)

    बेंगलुरु के सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष की खुदकुशी का मामला पूरे देश में चर्चा का विषय है। अतुल ने अपनी पत्नी और ससुराल पक्ष के लोगों पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था। अतुल सुभाष खुदकुशी केस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत ने तलाक के मामलों में गुजारा भत्ता तय करने का 8 सूत्रीय फॉर्मूला तय किया है।

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    गुजारा भत्ता के लिए सुप्रीम कोर्ट का फॉर्मूला

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष की खुदकुशी का मुद्दा आज हर किसी की जुबां पर है। पूरे देश में इसकी चर्चा हो रही है। अतुल ने अपनी पत्नी और ससुरालवालों पर मानसिक प्रताड़ना के आरोप लगाए थे। सुसाइड से पहले अतुल ने 24 पन्ने का नोट लिखा और करीब 80 मिनट का वीडियो भी रिकॉर्ड किया। अतुल की खुदकुशी के बाद देश में दहेज उत्पीड़न और इससे जुड़े कानूनों की समीक्षा की मांग की जा रही है।

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    इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए (दहेज उत्पीड़न) के दुरुपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि अदालतों को इन मामलों की सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए ताकि निर्दोष स्वजनों को परेशानी ना हो।

    लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने पिता के अपने बच्चे के भरण-पोषण और देखभाल के दायित्व पर जोर दिया। पीठ ने पिता को अपने वयस्क बेटे के भरण-पोषण और वित्तीय सुरक्षा के लिए एक करोड़ रुपये देने का भी आदेश दिया। साथ ही कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करने का 8 सूत्रीय फॉर्मूला तय किया है।

    सुप्रीम कोर्ट का 8 सूत्रीय फॉर्मूला

    • दोनों पक्षों की सामाजिक और वित्तीय स्थिति
    • पत्नी और आश्रित बच्चों की उचित जरूरतें
    • दोनों पक्षों की व्यक्तिगत योग्यताएं और रोजगार की स्थिति
    • आवेदक के स्वामित्व वाली स्वतंत्र आय या संपत्ति
    • वैवाहिक घर में पत्नी द्वारा भोगा जाने वाला जीवन स्तर
    • पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए किए गए किसी भी रोजगार के त्याग
    • गैर-कामकाजी पत्नी के लिए उचित मुकदमेबाजी की लागत
    • पति की वित्तीय क्षमता, उसकी आय, भरण-पोषण की जिम्मेदारियां और देनदारियां

    इससे पहले जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने कहा था कि वैवाहिक विवाद के मामलों में स्वजनों के नामों को तब शुरू में ही हटा देना चाहिए, जब उनके खिलाफ किसी विशेष सक्रियता का आरोप ना हो।

    पीठ ने कहा कि न्यायिक तजुर्बे से प्रमाणित होने के साथ यह सभी को पता है कि वैवाहिक मतभेद से उपजे घरेलू विवाद के मामलों में अक्सर पति के साथ सभी पारिवारिक सदस्यों को फंसाने का चलन है। ठोस सबूतों या विशेष आरोपों के ना होने पर ऐसे आम और व्यापक आरोप आपराधिक अभियोजन का आधार नहीं हो सकते। इसलिए अदालतों को कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग रोकने, निर्दोष स्वजनों को अनावश्यक शोषण और कानूनी कार्यवाही से बचाने के लिए सतर्कता जरूर बरतनी चाहिए।

    तेलंगाना हाईकोर्ट का फैसला खारिज

    अदालत ने यह टिप्पणी तेलंगाना कोर्ट के उस फैसले को खारिज करते हुए की जिसमें उसने एक व्यक्ति, उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के मामले को रद करने से इनकार कर दिया था।

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