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    अरावली क्षेत्र में प्रतिबंध की सरकार की अधिसूचना भ्रामक, नई परिभाषा में नहीं हुआ कोई बदलाव; कांग्रेस ने केंद्र पर लगाया आरोप

    By SANJAY MISHRAEdited By: Garima Singh
    Updated: Thu, 25 Dec 2025 09:00 PM (IST)

    कांग्रेस ने अरावली क्षेत्र की नई परिभाषा को पर्यावरण सुरक्षा के लिए खतरनाक बताते हुए सरकार पर निशाना साधा है। पार्टी का कहना है कि सरकार की अधिसूचना क ...और पढ़ें

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    कांग्रेस ने अरावली की नई परिभाषा को बताया खतरनाक

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अरावली की नई परिभाषा को पर्यावरण सुरक्षा के लिए खतरनाक बताते हुए कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार को लगातार सवालों के कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही।

    पार्टी ने इस क्रम में अरावली क्षेत्र में पटटा नहीं देने के केंद्र सरकार के अधिसूचना को डैमेज कंट्रोल का भ्रामक प्रयास बताते हुए दावा किया कि इसमें कुछ नया नहीं बल्कि केवल सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बात ही दुहराई गई है।

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    कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने सरकार पर निशाना साधते हुए यह भी दावा किया कि रमेश का पर्यावरण के संरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री जो वैश्विक संवाद (ग्लोबल टॉक) करते हैं और उनकी स्थानीय पहल (लोकल वॉक) में कोई जुड़ाव नहीं है।

    अरावली क्षेत्र में पटटा नहीं देने संबंधी सरकार के स्पष्टीकरण पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक्स पोस्ट में जयराम रमेश ने दावा किया कि नई परिभाषा से 90 प्रतिशत से ज्यादा पहाड़ असुरक्षित हो जाएंगे जिन्हें खनन तथा दूसरी गतिविधियों के लिए खोल दिया जाएगा।

    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बयान का समर्थन करते हुए जयराम ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार द्वारा तय की गई अरावली नई परिभाषा विशेषज्ञों की राय के खिलाफ ही नहीं बल्कि खतरनाक और विनाशकारी भी है।

    कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी अधिसूचना में अरावली क्षेत्र में “किसी भी नई खनन के आवंटन पर पूर्ण प्रतिबंध'' के लिए राज्यों को निर्देश जारी करने का दावा किया गया है।

    लेकिन यह दावा भ्रामक ह क्योंकि अरावली परिदृश्य की कोई कानूनी रूप से मान्य परिभाषा मौजूद नहीं है तथा अरावली की कोई एकल, अधिसूचित सीमा तय नहीं की गई है।

    राज्य अरावली को अलग अलग तरीके से परिभाषित करते हैं। खेड़ा ने दावा किया कि इस अधिसूचना का कोई व्यावहारिक महत्व नहीं और सरकार जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है।

    जयराम रमेश ने कहा कि एफएसआई के आंकड़ों के अनुसार 20 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली अरावली पहाडि़यों में से केवल 8.7 प्रतिशत ही 100 मीटर से अधिक ऊंची हैं। जबकि एफएसआई चिन्हित सभी अरावली पहाडि़यों को देखा जाए तो उनमें से एक प्रतिशत भी 100 मीटर से अधिक उंची नहीं है।

    उन्होंने दावा किया कि नई परिभाषा से अरावली का 90 प्रतिशत हिस्सा संरक्षण से बाहर हो गया है जो खनन, रियल एस्टेट तथा अन्य गतिविधियों के लिए खोला जा सकता है और यह साफ तौर पर पारिस्थितिक संतुलन पर सुनियोजित हमले का एक और उदाहरण है।

    इसी क्रम में जयराम रमेश ने पर्यावरणीय ¨चताओं के मामले में प्रधानमंत्री के वैश्विक मंचों पर दिए जाने वाले भाषणों और देश के भीतर जमीन पर किए जा रहे कार्यों में कोई तालमेल नहीं होने का तंज कसा।