'पति को नपुंसक बोलना मानहानि नहीं', तलाक के केस में बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज कर दी याचिका
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि तलाक की कार्यवाही में पत्नी द्वारा पति पर लगाए गए नपुंसकता के आरोप मानहानि नहीं हैं। जस्टिस एस एम मोदक ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ये आरोप तलाक के लिए वैध आधार हो सकते हैं। अदालत ने माना कि पत्नी को अपने हितों की रक्षा के लिए ऐसे आरोप लगाने का अधिकार है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि तलाक की कार्यवाही के दौरान पत्नी की ओर से पति के विरुद्ध लगाए गए नपुंसकता के आरोप मानहानि नहीं हैं और ऐसे दावे, जब महिला के हितों की रक्षा के लिए किए जाते हैं तो कानूनी प्रक्रिया का जरूरी हिस्सा हैं।
जस्टिस एस एम मोदक ने 17 जुलाई को दिए आदेश में एक शख्स की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत नपुंसकता के आरोप बहुत प्रासंगिक हैं और तलाक के लिए वैध आधार हो सकते हैं। हालांकि आदेश 17 जुलाई को दे दिया गया था लेकिन इसे सार्वजनिक शुक्रवार को किया गया। दरअसल, पत्नी से अलग रहे शख्स ने मानहानि का केस किया था।
अदालत ने क्या कहा?
जस्टिस मोदक ने कहा कि पत्नी को अपने हितों की रक्षा के लिए ये आरोप लगाने का अधिकार है और यह साबित करना है कि शादी में उसके सात क्रूरता हुई है। आदेश में कहा गया कि नपुंसकता के आरोपों को तलाक का आधार बनाना जरूरी है।
कोर्ट ने कहा, "अदालत का मानना है कि जब वैवाहिक रिश्ते में पति-पत्नी के बीच मुकदमेबाजी होता है तो पत्नी की ओर से अपने हितों के समर्थन में आरोप लगाना उचित है। इसे मानहानिकारक नहीं माना जा सकता है।"
याचिकाकर्ता का क्या कहना था?
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि उसकी पत्नी की तलाक और भरण-पोषण संबंधी याचिकाओं और एक अलग एफआईआर में किए गए दावे सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा बन गए हैं और इसलिए इससे उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। इस शख्स ने कहा था कि अलग रह रही पत्नी ने तलाक और भरण-पोषण की मांग करते हुए अपनी याचिकाओं के साथ-साथ दर्ज कराई गई एफआईआर में दावा किया था कि वह नपुंसक है।
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