फोटो-वीडियो में पैचिंग की नहीं चलेगी चालाकी, पकड़ लेगा एआइ एल्गोरिदम
भोपाल के आइसर के वैज्ञानिकों ने एक नया एआइ एल्गोरिदम बनाया है जो फोटो और वीडियो में किए गए नकली बदलावों की पहचान कर सकता है। यह तकनीक AI के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम है जो सुरक्षा और डिजिटल मीडिया की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने में मदद करेगा। यह एल्गोरिदम वीडियो और फोटो के विश्लेषण में एआइ और डीप लर्निंग तकनीक का उपयोग करता है जिससे साइबर अपराधों पर रोक लगेगी।

अंजली राय, भोपाल। तकनीक की दुनिया में लगातार हो रहे नवाचार अब सुरक्षा और भरोसे को नए आयाम दे रहे हैं। भोपाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आइसर) के विज्ञानियों ने एक नया एआइ एल्गोरिदम तैयार किया है, जो फोटो और वीडियो में किए गए नकली बदलावों यानी “पैच” की सटीक पहचान कर सकता है।
यह शोध न केवल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) की दिशा में बड़ी उपलब्धि है, बल्कि आने वाले समय में सुरक्षा, निगरानी और डिजिटल मीडिया की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण साबित होगा। इस एल्गोरिदम को आइसर भोपाल के डाटा साइंस विभाग के सहायक प्राध्यापक डा. अक्षय अग्रवाल और शोधार्थी विशेष कुमार ने मिलकर विकसित किया है।
वीडियो और फोटो के विश्लेषण में एआइ और डीप लर्निंग तकनीक का प्रयोग कर तैयार की गई यह प्रणाली उस स्थिति में भी काम करती है, जब कोई दुर्भावनापूर्ण तत्व छवि या वीडियो पर प्राकृतिक दिखने वाला पैच जोड़ दे। यह पैच कभी किसी चेहरे को छिपाने, कभी आब्जेक्ट बदलने या फिर गलत संदेश देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
वीडियो में दिखाई गई तकनीक यह दर्शाती है कि कैसे एआइ एल्गोरिदम फ्रेम दर फ्रेम छवि की गहराई से जांच करता है और उन असामान्य हिस्सों को पहचान लेता है, जिन्हें सामान्य आंखें पकड़ नहीं पातीं। इस तरह यह तकनीक भविष्य में ड्रोन निगरानी, चालक रहित वाहन, चेहरा पहचान प्रणाली, स्वचालित बैंकिंग प्रक्रिया और स्वास्थ्य सेवाओं में बेहद उपयोगी साबित हो सकती है।
पैच अटैक खतरनाक चुनौती
डा. अग्रवाल बताते हैं कि पैच अटैक सबसे खतरनाक चुनौती बनते जा रहे हैं। कोई भी साधारण दिखने वाली वस्तु जैसे सड़क का साइन बोर्ड, कपड़े का पैटर्न या यहां तक कि मोबाइल का कवर को दुर्भावनापूर्वक पैच के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इन पैच का मकसद मशीन को भ्रमित करना है।
उदाहरण के लिए सेल्फ-ड्राइविंग कार किसी साइन बोर्ड को गलत पढ़ ले तो दुर्घटना हो सकती है। नई तकनीक इस खतरे को कम करती है। यह कोई पहली बार नहीं है जब डा. अक्षय अग्रवाल ने एआइ तकनीक में बड़ा योगदान दिया है। इससे पहले भी वे डीपफेक डिटेक्टर और कान से बायोमेट्रिक डिटेक्शन सिस्टम बना चुके हैं, जिनके लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं। इनमें आइआइटी दिल्ली से बेस्ट डिजर्टेशन अवार्ड और इनोवेशन रिसर्च एंड डेवलपमेंट पुरस्कार प्रमुख हैं।
डिजिटल प्लेटफार्म्स पर मजबूत होगा भरोसा
इस शोध का महत्व केवल वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं,बल्कि आम उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा से भी जुड़ा है। आज के दौर में जब फर्जी वीडियो और फोटो सोशल मीडिया के जरिए तेजी से फैलते हैं तो यह तकनीक सच और झूठ की पहचान में मदद करेगी। इससे न केवल साइबर अपराधों पर रोक लगेगी बल्कि डिजिटल प्लेटफार्म्स पर भरोसा भी मजबूत होगा।
विज्ञानियों का कहना है कि आने वाले समय में इस एल्गोरिदम को और बेहतर बनाकर रियल-टाइम एप्लीकेशन में उतारा जाएगा। यानी भविष्य में हर कैमरा, मोबाइल या सुरक्षा प्रणाली में यह एआइ फीचर मौजूद हो सकता है, जो तुरंत बता देगा कि किसी तस्वीर या वीडियो से छेड़छाड़ हुई है या नहीं।
आटोनोमस सिस्टम में एआइ एल्गोरिदम बहुत ही सहायक सिद्ध होगा। इससे वीडियो व फोटो में जोड़े गए पैच को पहचानने में आसानी होगी। भविष्य में यह ड्रोन निगरानी, चालक रहित वाहन, चेहरा पहचान प्रणाली, स्वचालित बैंकिंग प्रक्रिया और स्वास्थ्य सेवाओं में बेहद उपयोगी साबित हो सकती है।
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