सरकार के अनुमान से कहीं ज्यादा 90 फीसद पुराने नोट बैंकों में हुए जमा
नोटबंदी की घोषणा के बाद करीब-करीब 14 लाख करोड़ रुपये वापस बैंकों में जमा किए जा चुके हैं।
नई दिल्ली (जेएनएन)। 8 नवंबर को पीएम मोदी द्वारा की गयी नोटबंदी की घोषणा करते समय पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ से इस बात का भरोसा दिया गया था कि 50 दिन बाद तकलीफें दूर हो जाएंगी। अब पचास दिन की अवधि खत्म होने को है। प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी के ऐलान के बाद 500 और 1000 के पुराने नोटों में 15.4 लाख करोड़ रूपयों की राशि में से 14 लाख करोड़ तक की राशि के नोट बैंकों में जमा किए जा चुके हैं जो सरकार के अनुमान से कहीं ज़्यादा है।
सरकार का अनुमान था कि तीन लाख करोड़ रूपए तक के नोट काले धन के तौर पर बैंकों में जमा नहीं हो सकेंगे। ऐसा होने पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया सरकार को अच्छा-खासा लाभांश देता। लेकिन, यह उम्मीद पूरी होती नहीं दिख रही है।
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नोटबंदी के तुरंत बाद यह था आरबीआई का बयान
नोट बंदी की घोषणा होने के तुरंत बाद बुलाई गई प्रेस कांफ्रेस में आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल ने बताया था कि देश में जितनी मुद्रा प्रचलन में है उनका 86 फीसद (लगभग 14.50 लाख करोड़ रुपया) 500 व 1000 रुपये के नोट के हैं। सरकार ने संसद में बताया था कि 29 नवंबर, 2016 तक 8.45 लाख करोड़ रुपये के पुराने नोट वापस आ गये हैं।
सरकारी आकलन को सही मानें तो अब नोटों की वापसी खत्म हो जानी चाहिए। पर सच्चाई यह है कि नोट वापसी अभी एक महीना और चलेगी। संभावना है कि प्रचलन में जितने भी बड़े पुराने नोट हैं वे सारे वापस आ जाये।
नए आंकड़ों से आरबीआई का अनुमान निकला गलत!
इसका सीधा सा मतलब यह होगा कि या तो काले धन का आकलन ही गलत था या फिर नोट बंदी के बाद काला धन रखने वालों ने अलग अलग माध्यम से इसे सफेद बना दिया। वजह जो हो, ऐसा हुआ तो राजनीतिक और आर्थिक दोनों मोर्चो पर सरकार को कुछ जवाब देने पड़ सकते हैं। विपक्षी दलों का हमला जहां तेज होगा वहीं वित्तीय स्तर पर सरकार कुछ फैसलों से चूक सकती है।
सरकार को बड़ी मात्रा में कैश जमा होने से ये है फायदा
लेकिन सरकार के एकमात्र खुशी की बात यह हो सकती है कि अब उसे 2.5 लाख रुपये की सीमा से ऊपर जमा किए गए रुपयों पर बड़ी मात्रा में टैक्स मिलेगा। घरों में रखी गई छोटी-छोटी बचत राशि के बैंकों में आ जाने से भी सरकार को एक फायदा नजर आ रहा है क्योंकि सरकार को लगता है कि इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना
सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना नाम से एक स्कीम भी जारी की थी जिसके तहत जिसके पास भी अघोषित आय है, उन्हें कर, जुर्माना और अधिभार के रूप में 50 प्रतिशत देकर पाक साफ होने का एक मौका दिया गया है। साथ ही उन्हें 25 प्रतिशत राशि बिना ब्याज वाले जमा योजना में चार साल के लिए लगानी होगी। 17 दिसंबर 2016 को खुली और लोग अघोषित आय के बारे में खुलासा 31 मार्च 2017 तक कर सकते हैं।
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नए नोट जारी
नोटबंदी की घोषणा के बाद 10 नवंबर से 10 दिसंबर के बीच 4.61 लाख करोड़ रुपये की कीमत के 21.8 अरब नोट बैंकों और एटीएम से जारी किए गए।
अघोषित आय जब्त
9 नवंबर से 20 के बीच आयकर विभाग ने 3300 करोड़ रुपये की अघोषित आय पकड़ी। इस दौरान 92 करोड़ रुपये के पुराने 500 और 2000 के नए नोट बरामद हुए।
हवाला कारोबार और जुर्म में कमी
दिल्ली, मुबंई, जयपुर और अहमदाबाद में हवाला कारोबार में 80 फीसदी की कमी आई। जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में भी कमी आई।
जानकारों की राय
भारत में काले धन पर काफी लंबे समय से काम करने वाले जेएनयू में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि उन्हें 11 लाख करोड़ रुपये की राशि के वापस सिस्टम में लौटने से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। काले धन को लेकर सरकार का आकलन हमेशा से गलत रहा है। उन्होंने कहा- 'मेरा अध्ययन कहता है कि भारत में जितना काला धन संचित होता है उसका बमुश्किल 1-2 फीसद ही नकदी में संचित रखा जाता है। जिसके पास काले धन के तौर पर नकदी थी उन्होंने जन धन खाते, चालू खाते, सोना व मकान खरीदने में लगा दिया है। इसके सबूत भी मिल रहे हैं।
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नोटबंदी का फैसला काला धन जहां से उत्पन्न हो रहा है वहां चोट नहीं करता है। यही वजह है कि जिसने नकदी संचित बतौर काला धन रखा भी है उसे बैंक में जमा करा रहे हैं लेकिन इससे काले धन के अर्थशास्त्र पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अधिकांश काला धन पहले ही रियल एस्टेट, सोना या अन्य स्त्रोतों में निवेश किया जा चुका है।'
नोट बंदी के सरकार के फैसले के प्रबल समर्थक व वित्त मंत्रालय के पूर्व सलाहकार व वरिष्ठ अर्थशास्त्री राजीव कुमार कहते हैं - 'अगर प्रचलन से पूरी राशि बैंकों में आ जाती है तो यह किसी के लिए भी बुरी तरह से चौंकाने वाली बात होगी। इसका यह भी मतलब होगा कि काला धन रखने वाले सरकार से भी ज्यादा माहिर हैं और उन्होंने इस दौरान तमाम तरीकों से अपने पैसे को सिस्टम में भेज दिया।
एक वजह यह भी हो सकता है कि रिजर्व बैंक के स्तर पर नोट मुद्रण का डाटा रखने में भी भारी गड़बड़ी हुई है। ऐसे में सरकार को बिना किसी देरी के राजनीतिक व नौकरशाही के स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कदम उठाना होगा। लेकिन नोट बंदी ने यह संदेश तो दे ही दिया है कि भारत में काला धन रखना अब खतरे से खाली नहीं है।'
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