Mumbai Train Blast Case: क्या ATS ने खुद अपने पैरों पर मारी कुल्हाड़ी, बॉम्बे HC के फैसले पर कही जा रही ये बात?
मुंबई उच्च न्यायालय के 7/11 मामले के फैसले में एटीएस द्वारा संदिग्ध गवाह पेश करने से मामले की विश्वसनीयता पर सवाल उठे। गवाह संख्या 74 जो पहले भी कई मामलों में पेश हो चुका था उसने मकोका अदालत को चर्चगेट स्टेशन पर दो संदिग्ध व्यक्तियों को देखने की गवाही दी। बचाव पक्ष ने गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए क्योंकि उसके दावों में विसंगतियां पाई गईं।

राज्य ब्यूरो, जागरण, मुंबई। अदालतों में दी गई कोई एक झूठी गवाही पूरे केस का सत्यानाश कर सकती है, इस बात का भी उदाहरण रहा है सोमवार को मुंबई उच्च न्यायालय से आया 7/11 मामले का फैसला। जिसमें संदिग्ध गवाह पेश करके मुंबई के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली।
1977 में आई फिल्म ‘ईमान-धरम’ में जिस प्रकार अमिताभ बच्चन एक झूठे गवाह की भूमिका निभाकर अलग-अलग मामलों में गवाही देने पहुंच जाते हैं, उसी प्रकार एटीएस ने 11 जुलाई, 2006 को हुए ट्रेन विस्फोट जैसे संवेदनशील मामले में भी सच्चे गवाहों के बजाय ऐसे गवाह पेश कर दिए, जो अलग-अलग अदालतों में गवाह के रूप में अक्सर पेश होते रहते थे।
बचाव पक्ष ने उठाए थे सवाल
अभियोजन पक्ष की ओर से इस मामले में पेश किए गए गवाह संख्या 74 ऐसा ही एक व्यक्ति था, जो पुलिस के लिए चार अन्य मामलों में भी पेश हो चुका था। बचाव पक्ष ने इस गवाह पर सवाल उठाते हुए अदालत से कहा कि यह पुलिस का तय गवाह है, इसे स्वतंत्र नहीं माना जा सकता।
मकोका ने अदालत को क्या बताया था?
बता दें कि इसी गवाह संख्या 74 ने विशेष मकोका अदालत को बताया था कि उसने दो लोगों को काले रैक्जीन बैग के साथ चर्चगेट रेलवे स्टेशन पर विरार की ट्रेन में चढ़ते हुए देखा था। उनमें से एक व्यक्ति एहतेशाम सिद्दीकी था, जो इस्लामी पुस्तकों के प्रकाशन एवं छपाई का काम करता था।
गवाह संख्या 74 की गवाही के आधार पर ही पुलिस ने एहतेशाम के ट्रेन में बम प्लांट करनेवाले एक व्यक्ति के रूप में आरोपित बनाया था। लेकिन जब बचाव पक्ष के वकीलों ने उक्त गवाह से स्वयं उसके चर्चगेट स्टेशन आने का कारण पूछा तो उसने जिन-जिन लोगों का नाम उस दिन चर्चगेट और दादर में हुई खुद से मुलाकात में लिया, वो लोग उस दिन उस स्थान पर मौजूद ही नहीं थे। इसने कोर्ट के सामने उक्त गवाह की विश्वसनीयता को संदेह के घेरे में ला दिया था।
क्यों एटीएस ठोस तथ्य प्रस्तुत करने में नाकाम रहा?
अभियोजन पक्ष द्वारा की गई ऐसी और भी कई गलतियां रहीं, जिनके कारण उसकी और उसके द्वारा अदालत में प्रस्तुत तथ्यों की विश्वसनीयता जाती रही।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले के कई पन्नों में अभियोजन पक्ष की ऐसी त्रुटियों को इंगित किया है, जिनके कारण एक हाई प्रोफाइल मामले के अभियुक्तों के विरुद्ध एटीएस ठोस तथ्य प्रस्तुत करने में नाकाम रहा, और कोर्ट को उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी करना पड़ा।
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