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    1962 में वायु सेना का इस्तेमाल करते तो... चीन से युद्ध को लेकर CDS अनिल चौहान ने कही बड़ी बात

    Updated: Thu, 25 Sep 2025 08:30 PM (IST)

    चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में वायु सेना का उपयोग चीनी हमले को रोकने में मददगार हो सकता था। उन्होंने लेफ्टिनेंट जनरल एसपीपी थोराट की आत्मकथा के विमोचन पर कहा कि लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के लिए एक जैसी अग्रिम नीति लागू नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि इन क्षेत्रों का इतिहास और भौगोलिक स्थिति अलग-अलग थी।

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    चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने बुधवार को कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान वायु सेना के उपयोग से चीनी हमले को काफी हद तक रोका जा सकता था। हालांकि, इसे उस समय 'युद्ध को भड़काने वाला' माना जा सकता था, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर से साबित हो गया है कि अब ऐसा नहीं है।

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    63 साल पहले चीन के साथ हुए युद्ध के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश (तत्कालीन नेफा) के लिए एक जैसी अग्रिम नीति लागू नहीं करनी चाहिए थी, क्योंकि इन दोनों क्षेत्रों के विवाद का इतिहास और भौगोलिक स्थिति अलग-अलग थी। ऐसे में एक जैसी नीतियां अपनाना गलत था।

    'बदल गया युद्ध का तरीका'

    दिवंगत लेफ्टिनेंट जनरल एसपीपी थोराट की आत्मकथा 'रेवेले टू रिट्रीट' के विमोचन के अवसर पर एक वीडियो संदेश में सीडीएस ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा की स्थिति बदल गई है और युद्ध का तरीका भी बदल गया है। लेफ्टिनेंट जनरल थोराट चीन-भारत युद्ध से पहले ईस्टर्न कमांड के जनरल आफिसर कमांडिंग-इन-चीफ थे।

    जनरल चौहान ने और क्या कहा?

    जनरल चौहान ने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल थोराट की आत्मकथा एक सैनिक की यादें होने के साथ-साथ नेतृत्व, रणनीति और भारत के सैन्य इतिहास के बारे में मूल्यवान जानकारी भी देती है।

    जनरल चौहान ने कहा कि उनसे 1962 के युद्ध के दौरान फारवर्ड पालिसी और वायु सेना का इस्तेमाल नहीं करने के बारे में बात करने का अनुरोध किया गया था। इस समय फारवर्ड पालिसी की सार्थकता या निरर्थकता पर टिप्पणी करना थोड़ा मुश्किल है। कई कारणों से हमारा दृष्टिकोण प्रभावित होगा, जैसे कि भूगोल पूरी तरह बदल गया है और भू-राजनीति भी बदल गई है। इन वर्षों में सुरक्षा की स्थिति बदल गई है और सेना की क्षमता भी बदल गई है। मैं बस इतना कह सकता हूं कि फॉरवर्ड पॉलिसी को लद्दाख और नेफा पर एक समान लागू नहीं किया जाना चाहिए था।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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