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    भारत में सर्जरी के बाद हर साल संक्रमण की चपेट में आते हैं 15 लाख मरीज, ICMR की रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे

    ICMR की एक हालिया रिपोर्ट में बड़ी जानकारी सामने आई है। अध्ययन में पता चला है कि प्रत्यक वर्ष औसतन 15 लाख मरीज संक्रमण की चपेट में आते हैं। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद एसएसआई को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है। एसएसआई उस वक्त होता है जब सर्जरी के दौरान लगाए गए चीरे में बैक्टेरिया उसे संक्रमण देते हैं।

    By Jagran News Edited By: Abhinav Tripathi Updated: Mon, 13 Jan 2025 06:00 AM (IST)
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    सर्जरी के बाद हर साल संक्रमण की चपेट में आते हैं 15 लाख मरीज (फोटो- जागरण)

    एएनआई, नई दिल्ली। भारत में सर्जरी के बाद हर साल औसतन लगभग 15 लाख मरीज संक्रमण की चपेट में आते हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की एक हालिया रिपोर्ट में सर्जरी के बाद होने वाले संक्रमण यानी सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) को लेकर यह चिंताजनक स्थिति सामने आई है।

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    दरअसल, एसएसआई तब होता है जब सर्जरी के दौरान लगाए गए चीरे में घुस कर बैक्टीरिया उसे संक्रमण कर देते हैं। आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सर्जरी के बाद मरीजों के एसएसआई से संक्रमित होने की दर 5.2 प्रतिशत है जो कई विकसित देशों से अधिक है।

    रिपोर्ट में सामने आई कई बातें

    रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हड्डियों, मांसपेशियों से संबंधित सर्जरी या आर्थोपेडिक सर्जरी के मामलों में एसएसआई की दर 54.2 प्रतिशत है, जो बेहद चिंता की बात है। इस समस्या से निपटने के लिए आईसीएमआर ने एसएसआई निगरानी नेटवर्क लॉन्च किया है।

    इसका उद्देश्य ऐसे संक्रमणों को रोकने के लिए देश भर के डाक्टरों की मदद करना है। आईसीएमआर ने तीन प्रमुख अस्पतालों- एम्स दिल्ली, कस्तूरबा अस्पताल, मणिपाल और टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई में 3,090 मरीजों की सर्जरी पर यह अध्ययन किया।

    इन मरीजों में सबसे ज्यादा एसएसआई होने का खतरा

    अध्ययन में पता चला कि ऑर्थोपेडिक सर्जरी कराने वाले मरीजों में एसएसआई होने का खतरा अधिक पाया गया। कुल मरीजों में 161 मरीज (5.2 प्रतिशत) सर्जरी के बाद एसएसआई की चपेट में आए। आमतौर पर 120 मिनट यानी दो घंटे से अधिक समय तक चलने वाली सर्जरी के बाद मरीजों में एसएसआई का जोखिम बढ़ता है।

    अध्ययन में कहा गया है कि एसएसआई की पहचान करने के लिए मरीजों के डिस्चार्ज के बाद उनकी निगरानी जरूरी है। 66 प्रतिशत मामलों में मरीजों के अस्पताल छोड़ने के बाद एसएसआई का पता चला। डिस्चार्ज के बाद निगरानी से एसएसआई के 66 प्रतिशत मामलों का पता लगाने में मदद मिली।

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