टर्निंग प्वाइंट : देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए उच्च शिक्षा व शोध पर हो जोर
अमृत काल में देश को विकसित राष्ट्र बनाने की राह पर आगे बढ़ाने के लिए गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षा एवं शोध पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि हमारे युवा ज्यादा कुशल हों और देश को नवाचार व विकास की राह पर आगे बढ़ा सकें...

प्रो. हिमांशु राय । मानव सभ्यता की उत्पत्ति से ही भारत अपनी शिक्षा तथा दर्शन के लिए प्रसिद्ध रहा है। हमारी शिक्षा प्रणाली विश्वभर में प्रशंसनीय है और इसी का परिणाम है कि भारतीय संस्कृति ने संसार का सदैव पथ-प्रदर्शन किया है। देश के विकास में भारतीय संस्कृति और परंपराओं की अनन्य भूमिका रही है। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में उन देशों को विकसित माना जाता है, जहां आधारभूत संरचना सुदृढ़ हो और जनता को ईज आफ लाइफ यानी जीवनयापन की बेहतर सुविधाएं प्राप्त हो सकें। शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन सहित दिन-प्रतिदिन की उपयोगी सुविधाएं समस्त जनों को समुचित दरों पर और उच्च गुणवत्ता वाली मिलें। ये सब सुविधाएं तभी उपलब्ध हो सकती हैं जब हमारे पास सक्षम, कुशल, निष्ठावान और समर्पित मानव संसाधन, जनशक्ति, प्रबंधक और कार्यकर्ता मौजूद हों। निस्संदेह यह लक्ष्य केवल उच्च शिक्षा के माध्यम से हासिल किया जा सकता है।
मुझे इस संदर्भ में जापान की विकास यात्रा स्मरण आती है। जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ, तो जापान में विद्वानों की एक बैठक में राष्ट्राध्यक्ष ने पूछा कि जापान को पुनः विकसित बनाने के लिए क्या किया जाए। तब सभी ने एक स्वर में कहा कि हमें लगभग बीस से पच्चीस वर्ष तक उच्च शिक्षा पर विशेष जोर देना होगा। 1945 के बाद लगभग पच्चीस वर्ष तक जापान की सरकार ने उच्च शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया और उसी का परिणाम था कि 1970 में जापान फिर से विकसित देशों की पंक्ति में आकर खड़ा हो गया। आज जापान भले ही राजनैतिक और भौगौलिक दृष्टि से छोटा है, लेकिन आर्थिक समृद्धि और विकास के मामले में वह उन्नत राष्ट्रों के समकक्ष है। उसके पास विश्वस्तरीय प्रौद्योगिकी और वे सारे संसाधन हैं जो एक विकसित देश को प्रगति पथ पर आगे बढ़ने में मदद करते हैं।
हमारे देश में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए 'मेक इन इंडिया’ अभियान को सफल बनाने या विकसित राष्ट्र के गंतव्य पर पहुंचने के लिए बनाई गई रणनीति को मजबूत करने का एकमात्र रास्ता उच्च शिक्षा ही है। स्वाभाविक है कि यदि हमारे देश में उच्च शिक्षित युवा होंगे तो हम श्रेष्ठ स्तरीय चिकित्सा सेवा उपलब्ध करा सकेंगे और स्वस्थ जनशक्ति भी मौजूद होगी। यदि हमारे पास अग्रवर्ती उद्यमिता की शिक्षण सुविधाएं होंगी, प्रशिक्षण की व्यवस्था होगी, तो मेक इन इंडिया के माध्यम से नये कारखाने, उद्यम, व्यवसाय इत्यादि देश में स्थापित हो सकेंगे। उच्च शिक्षा के माध्यम से कुशल प्रबंधकों का निर्माण हो सकेगा, जिससे राष्ट्र के प्राकृतिक, मानवीय, आर्थिक और अन्य संसाधनों का अधिकतम कुशलता से उपयोग हो सकेगा। इसके साथ ही, निपुण और प्रशिक्षण प्राप्त कार्यकर्ताओं की सहायता से कारखानों में सक्षम मानव शक्ति कार्य करने के लिए उपलब्ध होगी। यह कार्य केवल उच्च शिक्षा से इसलिए संभव है, क्योंकि विद्यार्थी को प्रशिक्षण देने के लिए भी अत्यंत उच्च शिक्षित और विद्वान शिक्षकों की जरूरत होती है। देश को ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है, जिन्हें न सिर्फ अपने-अपने विषय में महारत प्राप्त हो, बल्कि जो विद्यार्थियों को अपने कौशल की पहचान करने, लक्ष्य तय करने और उनके सपनों को पूरा करने के लिए उचित प्रोत्साहन और मार्गदर्शन दे सकें। इसके साथ ही शिक्षक विद्यार्थियों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बना सकें, जिससे देश में संवेदनशील युवा पीढ़ी का निर्माण हो सके। इसके लिए आवश्यक है कि गुरु-शिष्य में सहजता का भाव हो, शिष्य सीखने के लिए तत्पर हों और शिक्षक उन्हें वास्तविक जीवन से परिचित कराने के साथ विभिन्न विषयों में पारंगत करने के लिए प्रतिबद्ध हों। इस संबंध में सरकार ने नई शिक्षा नीति में भी एक साथ विभिन्न विषयों में शिक्षा ग्रहण करने के लिए अवसर प्रदान किए हैं, जो भविष्य की पीढ़ी को ‘मल्टी-टास्किंग’ बनाएंगे और देश को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षण के साथ ही प्रासंगिक विषयों पर गहन शोध भी होते हैं और निरंतर बदलती हुई परिस्थितयों के अनुसार नवीन शोध कर उन्हें व्यावहारिक जीवन में लागू करने के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करना आवश्यक है। नये शोध के माध्यम से आमजन के लिए उपयोगी उत्पाद बनाना, सुविधाएं जुटाना और उनके लिए उचित रास्ता दिखाना, यह कार्य निपुण प्राध्यापक ही कर सकते हैं। अतः देश में उच्च शिक्षा का जोर मात्र शिक्षा और पुस्तकीय ज्ञान पर ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक शिक्षण और प्रशिक्षण पर भी होना आवश्यक है।
समाज के लिए उपयोगी बने ‘शोध’
माननीय प्रधानमंत्री ने शोध को सामाज के लिए उपयोगी बनाने पर बल दिया है। इसका भी मुख्य उद्देश्य यही है कि शोध ऐसा हो, जिससे प्राप्त परिणाम देश के लोगों के लिए उपयोगी बन सकें। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी, संसाधनों का समुचित उपयोग करने वाली प्रणाली, पर्यावरण को संरक्षण देने वाली तकनीक और उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलित उपयोग करने वाली रणनीति केवल उच्च शिक्षा के माध्यम से ही संभव हो सकती है। इसलिए उच्च शिक्षा देश को विकास के पथ पर ले जाने का एकमात्र मार्ग है।
-प्रो. हिमांशु राय
निदेशक, आइआइएम इंदौर
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।