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    Subhash Chandra Bose Jayanti 2025: आजादी के महानायक सुभाष चंद्र बोस ने सिविल सर्विस एग्जाम में किया था टॉप

    Updated: Thu, 23 Jan 2025 10:26 AM (IST)

    सुभाष चंद्र बोस की जयंती को बतौर पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत साल 2021 से हुई थी। इस साल महान योद्धा की 128वीं जयंती मनाई जा रही है। नेताजी ने जर्मनी में आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना की थी। बताते हैं कि महात्मा गांधी और बोस के बीच में वैचारिक मतभेद था। बोस गीता से बेहद प्रभावित थे।

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    Parakram Diwas 2025: नेता जी की जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है।

    एजुकेशन डेस्क, नई दिल्ली। देश के इतिहास में जनवरी का महीना खास है। 26 जनवरी को जहां, हम गणतंत्र दिवस के रूप में सेलिब्रेट करते हैं तो वहीं, आज यानी कि 23 जनवरी, 2025 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक सुभाष चंद्र बोस की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले इस योद्धा की जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है। इसके तहत, ओडिशा के कटक में तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। वहीं, देश भर के अलग-अलग हिस्सों में महान नेता के जन्मदिन को सेलिब्रेट किया जाता है। इस मौके पर स्कूल- कॉलेजों और अन्य शिक्षण संस्थानों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। ऐसे में हम भी आज आपको आजादी के महानायक से जुड़े कुछ फैक्ट्स बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।

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    बंगाली परिवार में हुआ था जन्म 

    सुभाष चंद्र बोस का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम जानकीनाथ था और वे एक प्रतिष्ठित वकील थे। मां का नाम प्रभावती देवी था। कहते हैं कि, नेता जी की मां ने ही उनके भीतर देशभक्ति को भावना को जगाया था।

    पढ़ाई में थे बेहद शानदार

    स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के सामने सीना चौड़ा खाकर डटे रहने वाले निर्भीक बोस पढ़ाई में बेहद अच्छे थे। उन्होंने, स्कूल और विश्वविद्यालय में लगातार टॉप रैंक हासिल की थीं। साल 1918 में दर्शनशास्त्र में डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी।

    1919 में क्रैक की थी सिविल सेवा परीक्षा

    स्वतंत्रता सेनानी पढ़ाई में बेहद शानदार थे, उनका ये रिकॉर्ड आगे भी कायम रहा। इसी क्रम में उन्होंने साल 1919 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में टॉप किया था। उन्होंने इस एग्जाम में चौथी रैंक हासिल की थीं। हालांकि, साल 1921 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि वह ब्रिटिश सरकार की हुकूमत में काम नहीं कर सकते थे, जो उनके साथी देशवासियों पर अत्याचार कर रही थी।

    आज़ाद हिंद रेडियो की थी स्थापना 

    भारतीयों तक स्वतंत्रता के महत्व को समझाने और अपने नजरिए को समझाने के लिए नेताजी ने जर्मनी में आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना की। साथ ही, उन्होंने कई देशभक्ति के नारे दिए गए थे, जिनमें ‘जय हिंद’, ‘दिल्ली चलो’, और "तुम मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ शामिल हैं, जो आज भी भारतीयों के बीच गूंजते हैं।

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