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Migrant workers: स्‍पेशल ट्रेन व बसें नहीं, ट्रक और टेंपों से जाना चाहते हैं प्रवासी श्रमिक

Migrant workers प्रवासी श्रमिक ट्रेन व बसों से नहीं बल्कि ट्रक और टेम्पो जैसे वाहनों में यात्रा कर अपने घर लौटना चाहते हैं।

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 16 May 2020 11:44 AM (IST)Updated: Sat, 16 May 2020 11:57 AM (IST)
Migrant workers: स्‍पेशल ट्रेन व बसें नहीं, ट्रक और टेंपों से जाना चाहते हैं प्रवासी श्रमिक
Migrant workers: स्‍पेशल ट्रेन व बसें नहीं, ट्रक और टेंपों से जाना चाहते हैं प्रवासी श्रमिक

मुंबई, पीटीआइ। महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में फंसे प्रवासी श्रमिकों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिये सरकार निरंतर प्रयासरत है और उनके लिये स्‍पेशल श्रमिक ट्रेन, बसें चलवा रहीं है। लेकिन अधिकांश प्रवासी श्रमिक को शारिरिक दुराव के नियम का उल्‍लंघन करते हुए ट्रक और टेम्पो जैसे वाहनों में यात्रा करना ही अच्‍छा लग रहा है। 

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प्रवासियों को ट्रक और टेम्पो बस और ट्रेन से ज्‍यादा सुविधाजनक लग रहे हैं क्‍योंकि ये उन्‍हें उनके अपने राज्य में घर के करीब छोड़ देते हैं, इसके विपरीत बस केवल राज्य की सीमा तक पहुंचाती है, जबकि ट्रेनें उन्हें उनके गृह राज्य तक पहुंचाती हैं, जहां से उन्हें अपने घरों तक पहुंचने के लिए खुद व्यवस्था करनी होती है।

हालांकि, ट्रकों और टेम्पो में कोरोना संक्रमण के इस समय उनका यात्रा करना सुरक्षित नहीं है क्योंकि ये वाहन लगभग हमेशा जरूरत से ज्‍यादा लोगों से भरे होते हैं। छोटे टेम्पो में लगभग 20 व्यक्तियों को ले जाते हैं, जबकि मध्यम आकार के 25 से 40 लोग बैठे होते हैं। छोटे ट्रक में 40 से 60 और बड़े ट्रक में 100 या इससे अधिक तक लोगों का बैठा देखा गया है। मिली जानकारी के अनुसार ट्रक चालक मुंबई और आसपास के स्थानों से अपने मूल स्थानों की दूरी के आधार पर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड की यात्रा के लिए प्रति व्यक्ति 1,500 से 4,500 रुपये तक शुल्‍क वसूल रहे हैं।

पीटीआई से बात करते हुए, कई प्रवासी मजदूरों ने कहा कि वाहन संचालक एमपी के लिए 1,500-2,000 रुपये, यूपी के लिए 3,000-3,500 रुपये और बिहार के लिए 3,000-4,500 रुपये लेते हैं। प्रवासियों ने बताया कि वे अपने मूल स्थानों पर वापस जाने के लिए ट्रकों और टेम्पो को पसंद करते हैं क्योंकि ट्रक उन्हें उनके गांवों के करीब छोड़ देते हैं, जबकि बसें उन्हें राज्य की सीमा तक छोड़ती हैं, जहां से उन्हें घर पहुंचने के लिए परिवहन का कोई दूसरा तरीका खोजना पड़ता है। 

उनमें से कई ने कहा कि उन्हें ट्रकों में मजबूरी में यात्रा कर रहे हैं क्‍येांकि श्रमिक विशेष ट्रेनों की अनुमति के लिए उन्‍होंने काफी प्रयास किया लेकिन अनुमति नहीं मिल पायी। लखनऊ की ओर जा रहे कल्याण के एक मिठाई की दुकान में काम करने वाले उमेश कुमार मौर्य ने बताया कि, “ट्रेन यात्रा के लिए, मैंने पहले ऑनलाइन आवेदन किया था और बाद में तीन बार कल्याण के स्थानीय पुलिस स्टेशन का दौरा किया। हालांकि, मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली और इसलिए मैंने सड़क मार्ग से जाने का फैसला किया।”

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