'ओबीसी की अनदेखी महायुति गठबंधन के लिए खतरे की घंटी', दैनिक जागरण से बोले महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल
Maratha Reservation मराठा और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के बीच आरक्षण को लेकर टकराव भले ही महाराष्ट्र में चल रहा है लेकिन आने वाले समय में देशभर में इसका व्यापक असर होने वाला है। लोकसभा चुनाव में एनडीए को महाराष्ट्र में अपेक्षित सफलता न मिलने के पीछे एक कारण यह भी बताया जा रहा है। इसी साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाला है।
जागरण न्यूज नेटवर्क, मुंबई। OBC Reservation Protest: मराठा और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के बीच आरक्षण को लेकर टकराव भले ही महाराष्ट्र में चल रहा है, लेकिन आने वाले समय में देशभर में इसका व्यापक असर होने वाला है। लोकसभा चुनाव में एनडीए को महाराष्ट्र में अपेक्षित सफलता न मिलने के पीछे एक कारण यह भी बताया जा रहा है।
इसी साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाला है। ऐसे में यह मुद्दा गरम बना रहेगा और इसके संकेत महाराष्ट्र के खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण मंत्री व ओबीसी नेता छगन भुजबल ने साफ तौर पर दे दिए हैं। ओबीसी हितों के संरक्षण के लिए उन्होने अखिल भारतीय महात्मा फुले समता परिषद की स्थापना की और वह संस्था के अध्यक्ष भी हैं। दो बार मुंबई के महापौर, छह बार विधायक, एक बार विधान परिषद सदस्य, दो बार उपमुख्यमंत्री और विधान परिषद में विपक्ष के पूर्व नेता 76 वर्षीय भुजबल अपने राजनीतिक कौशल के लिए जाने जाते हैं।
उन्होंने इस मामले के हल करने के लिए जातीय सर्वेक्षण का सुझाव दिया है। साथ ही आगाह भी किया है कि ओबीसी की अनदेखी भाजपानीत गठबंधन (महायुति) के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। अब तक जातीय सर्वेक्षण का विरोध करती आ रही भाजपा नीत गठबंधन सरकार क्या इसके लिए राजी होगी?
महाराष्ट्र के साथ-साथ अन्य राज्यों का रुख क्या होगा? आर्थिक आरक्षण का विरोध क्यों हो रहा है? इस आंदोलन के बहाने ऐसे कई सवाल उठ खड़े हुए हैं? इस मामले का हल निकालने के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा 29 जून को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक से पहले विवाद से जुड़े हर पहलू को टटोलते हुए दैनिक जागरण के मुंबई ब्यूरो प्रमुख ओमप्रकाश तिवारी ने उनसे विस्तार में बातचीत की।
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प्रस्तुत है प्रमुख अंश:-
महाराष्ट्र में दो बड़े समुदायों मराठा और ओबीसी के बीच आरक्षण को लेकर चल रहे टकराव को आप कैसे देखते हैं?
महाराष्ट्र में मराठा समाज की संख्या बड़ी है, लेकिन ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की संख्या सबसे बड़ी है, क्योंकि ओबीसी एक जाति नहीं है। महाराष्ट्र में कम से कम 375 जातियां इसमें शामिल हैं। इसमें माली, कोली, वंजारी, बंजारा, घुमंतू, तेली, धनगर, कुम्हार, सोनार जैसी अनेकानेक जातियां शामिल हैं।
देश भर में इन जातियों की संख्या औसतन 54 प्रतिशत है। बिहार में जब जातीय जनगणना हुई, तो वहां तो इनकी संख्या 63 प्रतिशत निकली। हमें 54 का आधा, यानी 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। अब ये मराठा समाज कह रहा है कि हमको ओबीसी कोटे में ही आरक्षण चाहिए। ये कैसे संभव है।
आप महायुति सरकार द्वारा स्थिति से निपटने के तरीके से परेशान दिख रहे हैं?
मैं परेशान नहीं हूं। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के नतीजे इसका नुकसान दिखा चुके हैं। ओबीसी वोटर गठबंधन से दूर हो गया है। पिछले कुछ महीनों से सरकार मनोज जरांगे पाटिल की अतार्किक मांगों के आगे झुकती दिख रही है।
ओबीसी समुदाय का आरक्षण खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है। राजनीतिक रूप से कहें तो ओबीसी के अलग-थलग होने से भाजपा की राजनीतिक स्थिति कमजोर होगी। लोकसभा की बैठकों से पहले ही मैंने भाजपा, शिवसेना (शिंदे) और राकांपा(अजीत) के नेतृत्व को ओबीसी समुदाय के नाराज होने के बारे में बता दिया था।
तो आप क्या चाहते हैं?
हमारी एकमात्र मांग यह है कि ओबीसी कोटे के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए और इसके लिए जातिगत सर्वेक्षण होना चाहिए।
इसका उपाय क्या है?
मैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध करूंगा कि वे एक व्यापक अखिल भारतीय जाति सर्वेक्षण के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करें। सत्ता पक्ष और विपक्ष में ऐसे राजनीतिक दल हैं, जो जाति सर्वेक्षण के पक्ष में हैं। एनडीए में भाजपा के दो महत्वपूर्ण सहयोगी- बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार ने बिहार में जाति सर्वेक्षण पूरा कर लिया है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी जाति सर्वेक्षण की मांग की है। एक व्यापक जाति सर्वेक्षण ही सच्चाई को सामने ला सकता।
आप मराठा आरक्षण पर आपत्ति क्यों कर रहे हैं?
मैं विस्तार से समझाता हूं। पहली बात तो यह कि हम मराठों को आरक्षण दिए जाने के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि मराठों के ओबीसी कोटे में पिछले दरवाजे से प्रवेश के खिलाफ हैं। कुनबी (मराठों की एक उपजाति, जो मुख्य रूप से कृषि में लगी हुई है) को ओबीसी कोटे के अंतर्गत पहले से शामिल किया गया है।
हम उसके भी खिलाफ नहीं हैं, लेकिन जरांगे-पाटिल पुराने रिकार्ड के आधार पर सभी मराठों (28 प्रतिशत) को कुनबी के तहत आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं, और सरकार ने ‘कुनबी-मराठा’ और ‘मराठा-कुनबी’ श्रेणी बनाकर, अब तक 55 लाख से अधिक प्रमाण-पत्र बांट दिए हैं, जबकि ऐसी कोई जाति है ही नहीं। जरांगे-पाटिल चाहते हैं कि इन सभी के सगे-संबंधियों को भी कुनबी प्रमाण-पत्र देकर उन्हें ओबीसी कोटे के अंतर्गत आरक्षण दे दिया जाए। यदि ऐसा हुआ तो ओबीसी समाज क्या करेगा ? कहां जाएगा ?
सरकार ने पहले ही मराठों को दे दिया आरक्षण
महाराष्ट्र में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण विधेयक 2024, राज्य विधानमंडल में पारित हो गया है। इससे मराठा समाज के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ हो चुका है। इससे ओबीसी वर्ग पर कोई असर नहीं पड़ता। मराठों को दिए गए उस आरक्षण से हमें कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि, कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट इसी तरह के कानून को खारिज कर चुका है।
जिस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मराठों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, क्या आप उससे सहमत हैं?
अगर आप महाराष्ट्र को देखें, तो अधिकांश मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से रहे हैं। 50 प्रतिशत से ज्यादा सांसद, विधायक और मंत्री भी मराठा समुदाय से आते हैं। ग्राम पंचायत से लेकर जिला परिषद और राज्य सरकार तक मराठा शासक समुदाय हैं। सारी चीनी मिलें मराठा नेताओं की हैं।
सारे सहकारी बैंकों पर आपका ही आधिपत्य है। सभी आर्थिक, सामाजिक संस्थाओं पर मराठा समाज का वर्चस्व है। गांव हो या शहर, हर जगह आपर ‘रूलिंग कम्युनिटी’ में हैं। मनी पावर (धन), मसल पावर (बाहुबल) और पॉलिटिकल पावर (राजनीतिक शक्ति) सब इन्हीं के पास है। फिर भी इन्हें पिछड़ा कैसे माना जा सकता है।
क्या आप विस्तार से बता सकते हैं कि मराठा बनाम ओबीसी मुद्दे ने महाराष्ट्र में भाजपा और उसके सहयोगियों पर क्या प्रभाव डाला?
वास्तव में शिंदे सरकार जरांगे पाटिल के चक्कर में फंस गई और उन्होंने जो मांगा वह देते चले गए। इससे हमारे साथ-साथ सरकार के सामने भी बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। लोकसभा चुनाव के नतीजे खुद ही सब कुछ बयां कर रहे हैं। महायुति को 17 सीटें मिलीं, जबकि महाविकास अघाड़ी को 31 सीटें मिलीं। 2014 और 2019 के नतीजे देखिए और अब देखिए।
भाजपा की संख्या क्या है ? 23 सीटों से वे 9 पर आ गई। बीड की एक सीट पर ही नजर डालिए, जहां से भाजपा की पंकजा मुंडे हार गईं। वे ओबीसी नेता हैं और उनकी हार से पता चलता है कि ओबीसी नाराज हैं, यानी मराठा को तो आप अपने साथ ले नहीं पाए और जो ओबीसी वर्ग पहले से आपके साथ था, वह आपसे दूर चला गया। लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान महायुति को उठाना पड़ा है।
इसमें किसकी गलती मानते हैं आप? चूक कहां हो गई?
चूक सरकार के स्तर पर हुई है। सरकार मराठों की मसीहा बन गई। मराठे जो मांगते गए, वह सरकार देती गई। बार-बार उनके पास मंत्रियों को भेजा जाता रहा। न्यायाधीशों और उच्च अधिकारियों को उनके पास भेजा जाता रहा। उस समय फडणवीस को डटकर कहना था कि नहीं होगा। ये गलत है, लेकिन वह पीछे हट गए। इसलिए भाजपा का जो मूल ओबीसी वोट बैंक था, वह उससे दूर चला गया।
क्या अब विधानसभा चुनाव से पहले भाजपानीत गठबंधन इस गलती को सुधार पाएगा? वह किसको छोड़े और किसको साथ ले?
सुधारना ही पड़ेगा। मराठा वोट तो वैसे भी आपको नहीं मिल रहे हैं। ओबीसी 54 प्रतिशत है। उनका समर्थन करने वाले दलित भी हैं। अनुसूचित जनजातियां भी उन्हीं के साथ हैं। ब्राह्मण भी इसी समूह के साथ हैं, क्योंकि इन सभी को लगता है कि मराठा हर जगह इन्हें दबाते हैं।
आपने इसी मुद्दे पर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था?
हां, इस मुद्दे पर मैं अकेला लड़ता रहा और पिछले साल ही मैंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि उन्होंने अभी तक इसे स्वीकार नहीं किया है। अगर वे मुझसे विधायक पद से इस्तीफा देने के लिए कहेंगे, तो मैं वह भी खुशी-खुशी दे दूंगा। मैंने तो ओबीसी के पक्ष में शिवसेना छोड़ दी थी, वरना उस समय (1990 में) तो मैं बालासाहब ठाकरे का राइट हैंड (सबसे करीबी) था। तो अभी भी मेरे लिए कोई पद मायने नहीं रखता।
आरक्षण के मुद्दे पर बालासाहब ठाकरे से क्या मतभेद हुआ था?
बालासाहब ठाकरे उस समय ओबीसी आरक्षण के पक्ष में नहीं थे। वह कहा करते थे कि पेट की कोई जाति नहीं होती। आरक्षण आर्थिक आधार पर दिया जाना चाहिए। मेरा कहना था कि आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता, क्योंकि संविधान में ऐसी व्यवस्था नहीं है।
आर्थिक आधार पर आरक्षण देना क्यों संभव नहीं है?
वह इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि कोई व्यक्ति आज गरीब है, कल अमीर हो सकता है या कोई आज अमीर है, कल गरीब हो सकता है। तो क्या उसका आरक्षण हटा लेंगे। अमीरी-गरीबी तो आने-जाने वाली बात है। आरक्षण समाज में 5000 वर्षों से चली आ रही सामाजिक असमानता को ध्यान में रखकर दिया गया है।
ये गरीबी हटाओ का कार्यक्रम नहीं है। उसके लिए तो सरकार में और भी कई योजनाएं बनाई गई हैं। नि:शुल्क शिक्षा है, किसानों को मदद दी जाती है, रास्ते बनाए जाते हैं, पानी दिया जाता है, फीस में रियायत दी जाती है, लेकिन आरक्षण तो समाज में पिछड़े लोगों के लिए दिया गया है।
आप लोकसभा और राज्यसभा में नजरअंदाज किये जाने से भी परेशान हैं। क्या यह सही है?
मुझे तो पता ही नहीं था। हमारे नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को बताया कि मुझे चुनाव लड़ना चाहिए। उन्होंने मेरे भतीजे समीर भुजबल का नाम प्रस्तावित किया, जो सांसद रह चुके हैं।
हालांकि, शाह चाहते थे कि 'मंत्री भुजबल' नासिक से चुनाव लड़ें। तो मैंने चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन उसके बाद एक माह तक भी मेरा नाम घोषित नहीं किया। तो मैंने अपमानित महसूस कर चुनाव से दूरी बनाने का फैसला कर लिया। फिर मुझे बताया गया कि मौजूदा शिवसेना सांसद हेमंत गोड़से चुनाव लड़ना चाहते थे। अंत में नामांकन से एक दिन पहले गोड़से का नाम घोषित किया गया, लेकिन गोड़से के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी। इसका नुकसान महायुति को उठाना पड़ा।
यदि आपको टिकट दे दिया जाता, तो क्या फर्क पड़ता?
मुझे टिकट दिए जाने का असर नासिक और उसके आसपास की कई सीटों के अलावा महाराष्ट्र की कई ओबीसी बहुल सीटों पर पड़ता। चूंकि मैं ओबीसी समाज का नेता हूं। इसलिए इसका प्रतीकात्मक असर पूरे राज्य में होता, और महायुति को इतना नुकसान नहीं उठाना पड़ता। बल्कि महायुति की छह-सात सीटें बढ़ जातीं।
आप राज्यसभा के लिए भी दावेदार थे?
हां, मैं प्रफुल्ल पटेल के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर राज्यसभा जाना चाहता था, लेकिन पार्टी ने सुनेत्रा पवार को उम्मीदवार बनाने का फैसला किया, तो अब मैं पार्टी के फैसले के साथ हूं।
ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि भुजबल साहब एनसीपी और महायुति छोड़ देंगे। क्या यह सही है?
जैसा कि आपने कहा कि ये अटकलें हैं। अटकलों को अटकलें ही रहने दें। हमारा काम नुकसान की भरपाई करना है, अन्यथा हमने देखा है कि लोकसभा चुनावों में क्या हुआ। अगर चीजें ठीक नहीं हुईं तो विधानसभा चुनावों में क्या होने वाला है, यह खतरे की घंटी है।
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