Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    महाराष्ट्र के मंदिरों में ड्रेस कोड, परंपरागत परिधानों में दिखे ज्यादातर लोग; कुछ बोले- जबरदस्ती लागू नहीं

    Updated: Sun, 13 Apr 2025 08:30 PM (IST)

    महाराष्ट्र के मंदिरों में लागू ड्रेस कोड पर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। मंदिर प्रबंधनों का यह भी कहना है कि ड्रेस कोड धार्मिक स्थानों पर पवित्रता बनाए रखने के लिए निर्धारित किए गए हैं। लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। पुणे में चिंचवाड़ देवस्थान ट्रस्ट के तहत संचालित होने वाले मंदिर और मोरगांव व थेउर के मंदिरों में ड्रेस कोड लागू किए गए हैं।

    Hero Image
    कई मंदिरों में उपयुक्त परिधान पहनने के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं (फोटो: पीटीआई/फाइल)

    पीटीआई, मुंबई। महाराष्ट्र के मंदिरों में परंपरागत परिधान पहनने का चलन बढ़ गया है। मंदिर प्रबंधनों के ड्रेस कोड लागू करने के साथ ही यहां आने वाले श्रद्धालु भी इसका सहजता से पालन कर रहे हैं। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि मंदिरों में उचित परिधान पहनना अच्छी बात है लेकिन इन दिशा-निर्देशों को जबरदस्ती लागू नहीं करना चाहिए।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मंदिर प्रबंधों ने धार्मिक स्थलों की शुद्धता और शुचिता को बनाए रखने के लिए वहां परंपरा अनुरूप ही ड्रेस कोड के पालन के आग्रह के बाद से मंदिरों में बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं को परंपरागत वेशभूषा में देखा जा सकता है।

    परंपरागत परिधान पहले दिखे लोग

    हालांकि, मंदिर प्रबंधनों का यह भी कहना है कि ड्रेस कोड धार्मिक स्थानों पर पवित्रता बनाए रखने के लिए निर्धारित किए गए हैं। लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। पुणे में चिंचवाड़ देवस्थान ट्रस्ट के तहत संचालित होने वाले मंदिर और मोरगांव व थेउर के मंदिरों में ड्रेस कोड लागू किए गए हैं।

    शुक्रवार को पुणे के मंदिरों, अहिल्यानगर के सिद्धटेक व पिंपरी चिंचवाड़ में मोर्या गोसावी संजीवन और रायगढ़ के खार नारंगी में उपयुक्त परिधान पहनने के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।

    अनिवार्यता पर लोगों ने उठाए सवाल

    • वहीं, पुणे की निवासी अदिति काने ने बताया कि आजकल लोग मंदिर के साथ ही अन्य स्थलों पर भी जाते हैं। आजकल जिस मंदिर में भी जाओ कुछ लोगों को छोड़कर अधिकांश लोग परंपरागत भारतीय परिधानों में ही रहते हैं।
    • मंदिर प्रबंधनों के ऐसे नियमों में कोई बुराई नहीं है, बस उनकी अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए। इस बीच, केरल के कासरगोड़ के भगवती मंदिर में बरसों पुरानी परंपरा को तोड़कर मंदिर के आंतरिक परिसर में श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं करने देने पर विरोध-प्रदर्शन हुए।

    यह भी पढ़ें: ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ से बिगड़े हालात; दर्शन के लिए लगी 1.5 KM की लंबी लाइन