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महाराष्ट्र: कांग्रेस-NCP के लिए लोकसभा सीटों के बंटवारे की राह नहीं आसान, उद्धव गुट का दावा बन सकता है परेशानी

महाराष्ट्र में आगामी लोकसभा चुनाव करीब साढ़े तीन दशक के बाद दो बिल्कुल नए गठबंधनों के बीच होगा। एक गठबंधन भाजपा के साथ शिवसेना (शिंदे गुट) और NCP (अजीत गुट) का है तो दूसरा शिवसेना उद्धव गुट के साथ कांग्रेस एवं राकांपा (शरद पवार गुट) का है। शिवसेना उद्धव गुट के साथ खड़ी कांग्रेस और राकांपा के शरद पवार गुट की राष्ट्रीय राजनीति में रुचि जगजाहिर है।

By Jagran NewsEdited By: Mohd FaisalPublished: Tue, 12 Sep 2023 08:36 PM (IST)Updated: Tue, 12 Sep 2023 08:36 PM (IST)
महाराष्ट्र: कांग्रेस-NCP के लिए लोकसभा सीटों के बंटवारे की राह नहीं आसान (फाइल फोटो)

राज्य ब्यूरो, मुंबई। महाराष्ट्र में आगामी लोकसभा चुनाव करीब साढ़े तीन दशक के बाद दो बिल्कुल नए गठबंधनों के बीच होगा। एक गठबंधन भाजपा के साथ शिवसेना (शिंदे गुट) और NCP (अजीत गुट) का है, तो दूसरा शिवसेना उद्धव गुट के साथ कांग्रेस एवं राकांपा (शरद पवार गुट) का है।

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सीटों का बंटवारा है मुश्किल

भाजपानीत गठबंधन के लिए सीटों का बंटवारा ज्यादा मुश्किल इसलिए नहीं होगा, क्योंकि उसके साथ आए दोनों दलों की ज्यादा रुचि राज्य की राजनीति में है। लेकिन शिवसेना उद्धव गुट के साथ खड़ी कांग्रेस और राकांपा के शरद पवार गुट की राष्ट्रीय राजनीति में रुचि जगजाहिर है। राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के बाद प्रधानमंत्री पद की दावेदारी में सबसे आगे चल रही कांग्रेस किसी कीमत पर अन्य दो दलों से कम सीटों पर लड़ने को सहमत नहीं होगी।

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शिवसेना ने 18 सीटों पर दर्ज की थी जीत

ये और बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव में वह मुश्किल से एक सीट जीत सकी थी। राकांपा ने भी चार सीटें ही जीती थीं। उस समय शिवसेना ने राज्य की 18 सीटें जीती थीं। इसी आधार पर वह राज्य की 48 में से 18 सीटों पर लड़ने का दावा भी कर रही है। लेकिन उसकी इस मांग का सबसे मुखर विरोध कांग्रेस ही कर रही है। क्योंकि 2014 में मोदी लहर की शुरुआत होने से ठीक पहले 2009 में वह 19.68 प्रतिशत मतों के साथ 17 सीटें जीतकर अन्य दलों से ऊपर ही थी। तब उसकी सहयोगी राकांपा ने भी 19.28 प्रतिशत मतों के साथ आठ सीटें जीती थीं।

2014 के बाद से कांग्रेस और NCP की हालत हुई खस्ता

2014 में मोदी लहर की शुरुआत के बाद कांग्रेस और राकांपा दोनों के सितारे गर्दिश में जाते रहे और उन्हें क्रमश: दो और चार सीटें प्राप्त हुईं। जबकि शिवसेना-भाजपा को क्रमश: 18 और 23 सीटें प्राप्त हुईं। लोकसभा चुनावों के इतिहास में शिवसेना की यह अब तक की सबसे बड़ी सफलता थी। जिसे वह अपनी निजी सफलता मानकर छह माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे पर ऐसा अड़ी कि भाजपा के साथ उसका 25 साल पुराना गठबंधन ही टूट गया।

'विभाजित शिवसेना' लड़ेगी 2024 का लोकसभा चुनाव

हालांकि, चुनाव परिणाम आने के एक माह बाद ही वह पुन: फडणवीस सरकार में शामिल हो गई, लेकिन कटुता उसके मन से नहीं गई। जिसके परिणामस्वरूप 2019 का विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ लड़कर भी उसने सरकार उसके साथ नहीं बनाई और कांग्रेस-राकांपा के साथ जा मिली। अब 2024 के लोकसभा शिवसेना नहीं, बल्कि 'विभाजित शिवसेना' लड़ेगी। उसके 18 में 13 सांसद पहले ही शिंदे गुट में जा चुके हैं।

सीटों के बंटवारे को लेकर शिवसेना उद्धव गुट पर बना सकते हैं दबाव

पहले के चुनावों की तरह भाजपा की ताकत और मोदी लहर का प्रभाव भी उसके साथ नहीं होगा। ये बात आईएनडीआईए गठबंधन में उसके सहयोगी दल कांग्रेस और राकांपा भी भलीभांति समझ रहे हैं। सीटों के बंटवारे के लिए साथ बैठने पर वह यही बातें उठाकर शिवसेना उद्धव गुट पर दबाव भी बनाने की कोशिश करेंगे। फिलहाल तो ज्यादा सीटों पर लड़ने की सबसे मजबूत दावेदार अविभाजित कांग्रेस ही लग रही है। क्योंकि शिवसेना उद्धव गुट और राकांपा का शरद पवार गुट तो जमीन पर अपनी आधी से अधिक ताकत गंवा चुके हैं।

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