महाराष्ट्र में तीन भाषा नीति का प्रस्ताव रद, विरोध के बाद सरकार ने लिया फैसला; जानिए इससे क्या बदलेगा
3-Language Policy महाराष्ट्र सरकार ने तीन भाषा नीति के प्रस्ताव को रद्द कर दिया है। विपक्ष ने सरकार पर हिंदी भाषा को थोपने का आरोप लगाया था और इस प्रस्ताव को मराठी अस्मिता के खिलाफ बताया था। माशेलकर समिति ने तीन भाषा नीति को लागू करने के लिए सुझाव दिए थे।

पीटीआई, मुंबई। महाराष्ट्र में हिंदी 'थोपने' के खिलाफ बढ़ते आक्रोश के बीच सरकार द्वारा नियुक्त सलाहकार समिति ने प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी पढ़ाने के फैसले को वापस लेने का आग्रह किया है।
सरकार को मराठी भाषा के संबंध में अनुशंसा करने वाली भाषा सलाहकार समिति ने शुक्रवार को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें मांग की गई कि कक्षा पांच से पहले हिंदी समेत कोई तीसरी भाषा न पढ़ाई जाए। यह प्रस्ताव पुणे में आयोजित एक बैठक के दौरान पारित किया गया।
मुख्यमंत्री से वापस लेने का आग्रह
इसमें समिति के 27 में से 20 सदस्यों ने भाग लिया। बैठक के दौरान मराठी भाषा विभाग के सचिव किरण कुलकर्णी भी मौजूद थे। समिति ने स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री से इसे वापस लेने का आग्रह किया है।
समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि यह पहली बार है, जब सरकार समर्थित निकाय ने सरकार के फैसले के खिलाफ ऐसा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि हम हिंदी या किसी दूसरी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे शुरुआती स्कूली शिक्षा में लागू करना न तो शैक्षणिक रूप से सही है और न ही सांस्कृतिक रूप से ही उचित है।
फैसले पर जताई थी चिंता
- शुरुआती वर्षों में भाषा सीखने में मजबूत आधारभूत कौशल के लिए मातृभाषा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि समिति ने पहले भी हिंदी को प्राथमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने के सरकार के फैसले के बाद चिंता जताई थी, लेकिन उनकी आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया था।
- सरकार ने हाल ही में एक संशोधित आदेश जारी कर मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक के छात्रों को हिंदी को 'सामान्य रूप से' तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने को कहा है। इस आदेश के अनुसार, यदि किसी स्कूल में प्रति कक्षा 20 छात्र कोई अन्य भारतीय भाषा पढ़ना चाहते हैं, तो उस कक्षा में हिंदी नहीं पढ़ाई जा सकती।
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