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    'यह असंवेदनशीलता है', पुणे के अस्पताल ने गर्भवती महिला को नहीं किया भर्ती; CM फडणवीस ने जांच समिति गठित की

    Updated: Sat, 05 Apr 2025 11:41 AM (IST)

    गर्भवती महिला को अस्पताल में भर्ती नहीं करने के मामले में महाराष्ट्र सीएम ने जांच समिति बनाने का आदेश दिया है। भाजपा एमएलसी अमित गोरखे ने एक वीडियो जारी किया। इसमें उन्होंने दावा किया कि उनके निजी सहायक की पत्नी तनीषा भिसे को अस्पताल ने भर्ती करने से मना कर दिया था। उन्हें दूसरे अस्पताल ले जाया गया जहां जुड़वां बच्चों को जन्म देने के बाद उनकी मौत हो गई।

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    महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस। ( फाइल फोटो )

    पीटीआई, मुंबई। महाराष्ट्र के पुणे स्थित दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल पर एक गर्भवती महिला को भर्ती नहीं करने का आरोप लगा है। महिला की मौत के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक समिति का गठन करने का आदेश दिया है। अब यह समिति मामले की जांच करेगी।

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    आरोप है कि 10 लाख रुपये की राशि जमा न करने पर अस्पताल ने महिला को भर्ती करने से मना कर दिया था। जुड़वां बच्चों को जन्म देने के बाद महिला की जान चली गई।

    समिति में कौन-कौन होगा?

    मुख्यमंत्री कार्यालय ने अपने बयान में कहा कि घटना को गंभीरता से लिया गया है। पुणे के संयुक्त आयुक्त (चैरिटी) की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित करने का आदेश दिया है। समिति में विधि एवं न्याय विभाग के उप सचिव या अवर सचिव समिति के सदस्य सचिव होंगे।

    चैरिटी रोगी योजना लागू करें सभी अस्पताल

    सीएम कार्यालय ने विधि एवं न्याय विभाग के प्रधान सचिव और चैरिटी आयुक्त को निर्देश दिया है कि वे सुनिश्चित करें कि उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार तैयार की गई चैरिटी रोगी योजना को सभी चैरिटी अस्पतालों द्वारा प्रभावी रूप से लागू किया जाए। सभी धर्मार्थ अस्पतालों को गरीब और कमजोर समूहों के मरीजों के लिए आरक्षित बिस्तर उपलब्ध कराने के लिए ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से 'चैरिटी हॉस्पिटल हेल्प डेस्क' से अनुमोदन लेना चाहिए।

    अस्पताल की असंवेदनशीलता

    सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि गर्भवती महिला को भर्ती करने से इनकार करना अस्पताल की असंवेदनशीलता है। उन्होंने माना कि इस घटना को लेकर लोगों में काफी गुस्सा है। सीएम ने कहा कि मेडिकल एथिक्स की जरूरत है। मुख्यमंत्री के चिकित्सा प्रकोष्ठ ने भी हस्तक्षेप किया, मगर अस्पताल ने कोई कदम नहीं उठाया।

    हताशा में परिवार ने आरोप लगाए: अस्पताल

    मंगेशकर अस्पताल ने अपने आंतरिक जांच रिपोर्ट में दावा किया कि 10 लाख रुपये का भुगतान न करने पर भर्ती करने से मना करने का आरोप भ्रामक है। परिवार ने हताशा में आकर यह आरोप लगाए हैं।

    सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने की दी थी सलाह

    अस्पताल ने कहा कि महिला की गर्भावस्था उच्च जोखिम की श्रेणी में थी। सात माह के दोनों भ्रूण कम वजन के थे और पुरानी बीमारी के इतिहास के कारण उन्हें कम से कम दो माह तक नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में इलाज की जरूरत थी। इलाज के लिए 10 से 20 लाख रुपये की आवश्यकता थी। परिवार को सलाह दी गई थी कि धन की कमी कारण वे मरीज को जटिल सर्जरी के लिए सरकारी ससून जनरल अस्पताल में भर्ती करा सकते हैं।

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