'मैं अपनी गर्भावस्था जारी रखने के लिए तैयार हूं', यौन उत्पीड़न की शिकार लड़की ने बॉम्बे HC से ऐसा क्यों कहा?
पिछले सप्ताह हाईकोर्ट ने लड़की को सरकारी जे.जे. अस्पताल के मेडिकल बोर्ड के पास भेज दिया था। अस्पताल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं है और इस स्तर पर भले ही गर्भावस्था को समाप्त कर दिया जाए बच्चा जीवित पैदा होगा। इसमें कहा गया है कि इतनी देर से गर्भावस्था को समाप्त करने से भविष्य में लड़की को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

पीटीआई. मुंबई। यौन उत्पीड़न की शिकार 18 वर्षीय एक युवती ने बॉम्बे उच्च न्यायालय को बताया कि वह अपनी गर्भावस्था जारी रखने के लिए तैयार है। युवती ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने अपनी राय दी है कि उन्नत अवस्था में गर्भपात कराने से जटिलताएं उत्पन्न होंगी और उसके भविष्य के गर्भधारण पर असर पड़ेगा।
लड़की ने इस महीने की शुरुआत में बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर 32 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी थी। उसका दावा है कि यह उसके एक रिश्तेदार द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न का परिणाम है।उनकी याचिका के अनुसार, फरवरी में भी उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
गर्भावस्था को समाप्त करना युवती की भविष्य के लिए खतरा
पिछले सप्ताह हाईकोर्ट ने लड़की को सरकारी जे.जे. अस्पताल के मेडिकल बोर्ड के पास भेज दिया था। अस्पताल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं है और इस स्तर पर, भले ही गर्भावस्था को समाप्त कर दिया जाए, बच्चा जीवित पैदा होगा। इसमें कहा गया है कि इतनी देर से गर्भावस्था को समाप्त करने से भविष्य में लड़की को चिकित्सा और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
अदालत ने किशोरी और उसकी मां से की बातचीत
मेडिकल बोर्ड की राय के बाद न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने सोमवार को लड़की और उसकी मां से मुलाकात की तथा गर्भावस्था के इतने आगे के चरण में गर्भपात कराने पर अपनी चिंता व्यक्त की। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किशोरी और उसकी मां को स्थिति समझा दी गई है।
अदालत ने कहा, "शुरू में याचिकाकर्ता और उसकी मां ने गर्भपात कराने पर जोर दिया। हालांकि, जब चिकित्सकीय स्थिति बताई गई तो याचिकाकर्ता ने अपना मन बदल लिया और अगले चार सप्ताह तक गर्भावस्था जारी रखने पर सहमत हो गई।" हालांकि, लड़की ने अदालत को बताया कि उसे वित्तीय और चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होगी।
बच्चा पैदा हो जाए तो याचिकाकर्ता उसे गोद ले सकती है: कोर्ट
इसके बाद पीठ ने जेजे अस्पताल को निर्देश दिया कि वह हर सप्ताह और/या डॉक्टर की सलाह के अनुसार उसकी जांच करे और फिर प्रसव के समय उसे भर्ती करे।
अदालत ने आदेश दिया कि राज्य सरकार प्रसव और अन्य सभी चिकित्सा व्यय वहन करे। पीठ ने कहा कि जब बच्चा पैदा हो जाए तो यदि याचिकाकर्ता चाहे तो वह उसे गोद दे सकती है और राज्य सरकार तब बच्चे की जिम्मेदारी लेगी।

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