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    Maharashtra: तीसरी पारी के लिए तैयार फडणवीस... बीते 5 साल में ऐसा क्या हुआ कि फिर 'समंदर' बनकर लौटे देवेंद्र

    Updated: Thu, 05 Dec 2024 11:50 AM (IST)

    देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरी बार शपथ ग्रहण करने जा रहे हैं। इसी के साथ महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर लगाए जा रहे कयासों पर आखिरकार विराम लग गया। बीते 5 सालों में फडणवीस ने संघ के कार्यकर्ता के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाई है और अब जाकर 2024 में उन्हें इसका इनाम दिया गया है।

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    देवेंद्र फडणवीस बनेंगे महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री (फोटो: पीटीआई)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में रस्साकशी खत्म हो गई है। देवेंद्र फडणवीस को विधायक दल का नेता चुन लिया गया है। आज गुरुवार को वह मुंबई के आजाद मैदान में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। लेकिन बीते 5 साल फडणवीस के लिए आसान नहीं थे।

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    कहानी की शुरुआत 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से होती है। भाजपा और तत्कालीन शिवसेना ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन के खाते मे 161 सीटें आई थीं, जिसमें से अकेले भाजपा ने 105 सीटें जीती थीं।

    उद्धव ने दिया था झटका

    देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन उद्धव ठाकरे के मन में कुछ और ही फितूर चल रहा था। काफी गहमागहमी और बैठकों के बाद ठाकरे ने शिवसेना को गठबंधन से अलग करने का फैसला किया। इस तरह महाविकासअघाड़ी अस्तित्व में आया, जिसमें शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस शामिल थे।

    उद्धव ठाकरे ने दिया था भाजपा को झटका

    (फाइल फोटो)

    ये भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं था। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 122 सीटों पर जीत मिली थी। ऐसे में 2019 के नतीजे ये बता रहे थे कि गठबंधन का असल फायदा शिवसेना को मिला है।

    फेल रहा ऑपरेशन लोटस

    देवेंद्र फडणवीस के एक बयान का अक्सर जिक्र होता है, जिसमें उन्होंने कहा था, 'मैं समंदर हूं, फिर लौटकर आऊंगा।' शिवसेना से मिले झटके के बाद फडणवीस ने इसकी तैयारी शुरू कर दी। महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस की कोशिश शुरू हुई।

    2019 में एनसीपी की तरफ से अजित पवार ने भाजपा के समर्थन का एलान कर दिया। सुबह-सुबह फडणवीस और अजित पवार का शपथ ग्रहण कार्यक्रम पूरा कर दिया गया। लेकिन ये कोशिश फेल हो गई। शरद पवार ने अजित के कदम से किनारा कर लिया और एनसीपी ने अपना समर्थन खींच लिया।

    अजित ने किया था समर्थन का एलान

    (फाइल फोटो)

    देवेंद्र फडणवीस को अब विधानसभा में अपना बहुमत साबित करना था। लेकिन उन्होंने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया। फिर इस बार की चर्चा उठी कि अगर फडणवीस समंदर है, तो क्या लौटकर फिर आएंगे।

    उद्धव बन गए मुख्यमंत्री

    उधर महाविकासअघाड़ी ने उद्धव ठाकरे को अपना नेता चुन लिया और वह मु्ख्यमंत्री बन गए। लेकिन फडणवीस ने हार नहीं मानी। भाजपा ने विपक्ष में होने के बावजूद कड़ी तलाशना जारी रखा।

    इसी क्रम में भाजपा को एकनाथ शिंदे का साथ मिला। शिवसेना में दो फाड़ हो गए। शिंदे गुट वाली शिवसेना ने भाजपा को समर्थन दे दिया और बदले में भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मु्ख्यमंत्री बना दिया। अब बारी एनसीपी की थी।

    एकनाथ शिंदे बने थे सीएम

    (फोटो: एएनआई)

    अजित पवार अपमान का घूंट पीकर बैठे थे। मौका मिलते ही उन्होंने बगावत कर दी और अपने विधायकों को लेकर भाजपा के साथ हो लिए। एक बार फिर से सत्ता की चाबी भाजपा के पास आ गई थी।

    भाजपा ने शिंदे को बनाया सीएम

    देवेंद्र फिर से मु्ख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन हाईकमान ने उन्हें संयम रखने को कहा। भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट किया। फडणवीस चुप रहे। उन्हें और अजित पवार को डिप्टी का पद ऑफर किया गया।

    फडणवीस ने अपने स्तर पर संगठन का काम जारी रखा। 2024 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए, तो 48 सीटों में से भाजपा को महज 9 पर जीत मिली। ये नतीजे फडणवीस के लिए भी चौंकाने वाले थे।

    सवाल अब फडणवीस के नेतृत्व पर भी उठने लगा था। लेकिन हाईकमान जो कहता रहा, फडणवीस चुपचाप मानते रहे। बीते 5 सालों में उनके सियासी जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन फडणवीस का संयम बरकरार रहा। इस संयम का तोहफा उन्हें 2024 विधानसभा चुनाव में मिला।

    महायुति को मिली शानदार जीत

    (फोटो: एएनआई)

    महाविकासअघाड़ी को मिली शिकस्त

    2024 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के जब नतीजे घोषित हुए, तब महायुति ने महाविकासअघाड़ी को शिकस्त दे दी। 132 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। नतीजे घोषित हो चुके थे, लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा फाइनल नहीं हो पा रहा था।

    अंत में देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लग गई। गौर करने वाली बात ये है कि फडणवीस संघ की विचारधारा के बीच पले-बढ़े हैं। उनके पिता भी संघ से जुड़े हुए थे। आरएसएस अपने 100 साल पूरे करने जा रहा है।

    जिस राज्य में संघ की नींव रखी गई, आज उसी की बागडोर स्वयंसेवक के हाथ में तीसरी बार दी जाने वाली है।