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    Mumbai News: विवाहित महिला से घर के काम के लिए कहना क्रूरता नहीं: बांबे हाई कोर्ट

    Mumbai News बांबे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने कहा कि विवाहित महिला से परिवार में घर के काम करने के लिए कहने की तुलना घरेलू सहायिका के काम से नहीं की जा सकती और यह क्रूरता भी नहीं मानी जाएगी।

    By AgencyEdited By: Sachin Kumar MishraUpdated: Thu, 27 Oct 2022 09:34 PM (IST)
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    विवाहित महिला से घर के काम के लिए कहना क्रूरता नहीं: बांबे हाई कोर्ट। फाइल फोटो

    मुंबई, एजेंसी। Mumbai News: महाराष्ट्र में बांबे हाई कोर्ट (Bombay High Court) की औरंगाबाद पीठ ने कहा कि विवाहित महिला से परिवार में घर के काम करने के लिए कहने की तुलना घरेलू सहायिका के काम से नहीं की जा सकती और यह क्रूरता भी नहीं मानी जाएगी। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने महिला द्वारा अपने पति और उसके माता-पिता के विरुद्ध दर्ज कराए गए घरेलू हिंसा व क्रूरता के मामले को रद कर दिया।

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    जानें, क्या है मामला

    प्रेट्र के मुताबिक, न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी व न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की खंडपीठ ने 21 अक्टूबर को उस व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज कर दिया। महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि शादी के बाद एक महीने तक उसके साथ अच्छा व्यवहार किया गया, लेकिन उसके बाद वे उसके साथ नौकरानी जैसा व्यवहार करने लगे। उसने यह भी दावा किया कि उसके पति और उसके माता-पिता ने शादी के एक महीने बाद चार पहिया वाहन खरीदने के लिए चार लाख रुपये की मांग करना शुरू कर दिया। महिला ने अपनी शिकायत में कहा कि इस मांग को लेकर उसके पति ने उसे मानसिक और शारीरिक प्रताड़ित किया।

    हाई कोर्ट ने कही ये बात

    हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने केवल यह कहा था कि उसे परेशान किया गया था, लेकिन उसने अपनी शिकायत में ऐसा कोई कार्य निर्दिष्ट नहीं किया था। अगर एक विवाहित महिला को परिवार के लिए घर का काम करने के लिए कहा जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि वह एक नौकरानी की तरह है। अगर उसे अपने घर के काम करने की कोई इच्छा नहीं थी, तो उसे शादी से पहले ही बता देना चाहिए था, ताकि दूल्हा खुद शादी के बारे में फिर से सोच सके। अगर यह शादी के बाद इस तरह की समस्या आ रही है, तो इसे पहले ही सुलझा लिया जाना चाहिए था। केवल मानसिक और शारीरिक रूप से उत्पीड़न शब्दों का उपयोग भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि इस तरह के कृत्यों का वर्णन नहीं किया गया हो।

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