हाई कोर्ट पहुंची पत्नी ने अंत्येष्टि के लिए मांगा पति का शव, दो माह पूर्व खदान में डूबा था कर्मी, कोर्ट ने मांगा जवाब
जबलपुर हाई कोर्ट ने सुरक्षा मानकों के बिना खदान में मिट्टी डालने से कर्मी की मौत के मामले में जवाब मांगा है। कोर्ट ने भारत सरकार, एसईसीएल प्रबंधन, ठेक ...और पढ़ें

मप्र हाईकोर्ट भवन (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। मप्र हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने बिना सुरक्षा मानक खदान में मिट्टी डालने से कर्मी की मौत के मामले में जवाब-तलब कर लिया है। इस सिलसिले में भारत सरकार, एसईसीएल प्रबंधन, ठेका कंपनी आरकेटीसी, थाना प्रभारी धनपुरी, शहडोल, कलेक्टर शहडोल, डीजीएमएस, जबलपुर को नोटिस जारी किए गए हैं। याचिकाकर्ता पत्नी ने अंत्येष्टि के लिए पति का शव मांगा है।
याचिकाकर्ता मऊगंज जिला अंतर्गत ग्राम खजुरहन निवासी आरती कुशवाहा की ओर से अधिवक्ता मनोज कुशवाहा व कौशलेंद्र सिंह ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता के पति अनिल कुशवाहा की 11 अक्टूबर, 2025 को साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के सोहागपुर एरिया की अमलई ओसीएम में प्रबंधन की लापरवाही से मौत हो गई थी। वे ट्रिपर हाइवा चालक थे।
एसईसीएल के द्वारा आरकेटीसी कंपनी को ठेका दिया गया था। याचिकाकर्ता के पति ठेका कंपनी के अंतर्गत कार्य कर रहे थे। उस दिन काफी बारिश हुई थी। इसके बावजूद प्रबंधन व ठेका कंपनी द्वारा टार्गेट पूरा करने बिना सुरक्षा मानकों के मिट्टी डालने के कार्य में लगा दिया। वह खदान 15 वर्ष पूर्व बंद हो गई थी। 90 फीट गहरी थी। उसमें बारिश का पानी भरा था। बारिश के कारण मिट्टी की सतह ठोस नहीं थी। इसलिए वे ट्रिपर सहित नीचे गिर गए। इस वजह से मौत हो गई।
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एसडीआरएफ-एनडीआरएफ भी खोजने में नाकाम
एनडीआरएफ और एसडीआरएफ द्वारा 72 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन किया गया। अंतत: मृत घोषित कर प्रमाण पत्र दे दिया गया। ओसीएम में कोयला उत्पादन के बाद क्लोजर प्लान के अनुसार मिट्टी से भरकर पौधारोपण करना चाहिए, जो नहीं किया गया। एसईसीएल के सोहागपुर प्रबंधन ने कोयला निकालने के बाद खदान को प्लान के अनुसार बंद नहीं किया। साथ ही भारत सरकार द्वारा समय-समय पर खदान के बंद करने के संबंध में दिशा-निर्देश जारी नहीं किया गया। घटना के समय कोई भी सुरक्षा संबंधी उपाय नहीं किए गए थे।
कंकाल तक नहीं मिला
प्रबंधन द्वारा सात दिन के अंदर मृतक की अवशेष अर्थात कंकाल सौंपने का भी आश्वासन दिया गया था। पंचनामा बनाया था, किंतु संपूर्ण पानी की निकासी नहीं हो सकी। यहां तक कि थाना धनपुरी द्वारा केवल पांच लोगों के खिलाफ मामूली धाराओं में एफआइआर दर्ज की गई हैं। जो घटना के प्रमुख जिम्मेदार थे, उनको आरोपित नहीं बनाया गया।
याचिका में माइंस एक्ट के अंतर्गत जांच की मांग, भारत सरकार कोल मंत्रालय द्वारा घोषित 40 लाख मुआवजा की राशि, आरोपितों के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत एफआइआर दर्ज करने, मृतक का शव सुपुर्द करने व खदान को क्लोजर प्लान के अनुसार बंद करने की राहत चाही गई है, ताकि भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो।

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