इंदौर के युवाओं ने खोज निकाला किसानों की समस्या का हल, तैयार की ये खास डिवाइस; पानी और समय को होगी बचत
Indore News किसानों की इस समस्या का इंदौर के युवाओं ने हल खोज निकाला है। उन्होंने एक ऐसा आटोमेटिक वाल्व तैयार किया है जो पानी के साथ-साथ समय की भी बचत करना है। दो साल पहले शुरू हुआ यह स्टार्टअप आज काफी सफल है और मध्यप्रदेश के साथ ही गुजरात और महाराष्ट्र के किसान इस वाल्व का उपयोग कर रहे हैं।

भरत मानधन्या, इंदौर। किसी भी फसल की खेती में सर्वाधिक समय सिंचाई को देना पड़ता है। कई बार रात में बिजली आने के कारण किसानों को आधी रात में खेतों में जाना पड़ता है और एक-एक क्यारी में पानी छोड़ने के लिए लंबे समय तक वे खेत में ही रुकते हैं। किसानों की इस समस्या का इंदौर के युवाओं ने हल खोज निकाला है।
उन्होंने एक ऐसा ऑटोमेटिक वाल्व तैयार किया है, जो पानी के साथ-साथ समय की भी बचत करना है। दो साल पहले शुरू हुआ यह स्टार्टअप आज काफी सफल है और मध्यप्रदेश के साथ ही गुजरात और महाराष्ट्र के किसान इस वाल्व का उपयोग कर रहे हैं। एके फार्मिंग नामक स्टार्टअप ही यह उपलब्ध करवा रहा है।
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भारत में अधिकतर खेतों में क्यारियां बना कर की जाती है सिंचाई
अजय सोलंकी, शुभम काग और विशाल परिहार द्वारा शुरू किए गए इस स्टार्टअप का नाम एके फार्मिंग है। स्टार्टअप के फाउंडर अजय सोलंकी ने बताया कि उत्तर भारत में अधिकतर खेतों में क्यारियां बना कर सिंचाई की जाती है। इसके माध्यम से करीब 90 प्रतिशत किसान फ्लड इरिगेशन करते हैं, जिससे काफी पानी बर्बाद होता है।
रात में सिंचाई करने की स्थित में देर रात तक किसानों को जागना पड़ता है, क्योंकि एक क्यारी में पानी छोड़ने के कुछ समय बाद दूसरी क्यारी में भी पानी छोड़ा जाता है, इसके लिए किसानों को लंबा इंतजार करना पड़ता है।
गर्मी के समय यह समस्या और बढ़ जाती है। इस समस्या के चलते उन्होंने एक ऐसा आटोमेटिक वाल्व तैयार किया है, जिसमें समय सेट किया जा सकता और एक साथ दस क्यारियों में भी सिंचाई की जा सकती है। कुएं या बोरिंग से जैसे ही पानी छोड़ा जाएगा, ये वाल्व शुरू हो जाएगा और समय सीमा खत्म होते ही वाल्व बंद हो जाएगा। इस वाल्व में बैटरी और बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये वाल्व पोर्टेबल है, जिसे एक क्यारी से दूसरी क्यारी में स्थानांतरित किया जा सकता है।

कोरोना काल के बाद शुरू किया काम
अजय सोलंकी के अनुसार, 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोरोना काल आ गया था और उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी। चूंकि वे किसान परिवार से आते थे और उन्होंने सिंचाई के दौरान उनकी समस्या को करीब से देखा था, तब उन्होंने इस प्रकार का वाल्व बनाना शुरू किया। शुरुआत में सेंसर वाले डिवाइस बनाए, लेकिन ये सफल नहीं हुए। बाद में उन्होंने उक्त डिवाइस बनाकर मार्केट में उतारा, जो काफी सफल रहा। वे खुद ही इसका निर्माण और विपरण करते हैं।
पानी की होती है बचत
अजय सोलंकी की मानें तो बूंद-बूंद ड्रिप प्रणाली और स्प्रिंकल प्रणाली से होने वाली खेती से पानी की तो बचत होती है, लेकिन यह काफी खर्चीली है। ऐसे में किसान फ्लड इरिगेशन करते हैं, जिससे काफी अधिक पानी बर्बाद होता है।
उन्होंने बताया कि उन्होंने मध्यप्रदेश में सिंचाई से संबंधित डाटा निकाला था, जिसमें सामने आया कि प्रदेश में ज्यादा फ्लड इरिगेशन के कारण पानी अधिक बहता है, जिससे मिट्टी को भी नुकसान होता है। इसके कारण एक साल में फ्लड इरिगेशन के कारण इतना पानी बह जाता है कि उसे आठ करोड़ लोग एक दिन में उपयोग कर सकते हैं। उनका वाल्व किफायती होने के साथ पानी की बर्बादी को भी बचाता है।
ये रही चुनौतियां
अजय बताते हैं कि उनका इंजीनियरिंग बैकग्राउंड नहीं था। ऐसे में इसका प्रोटोटाइप बनाने में उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता। उन्होंने पीवीसी के पाइप से प्रोटोटाइप बनाए। आठ से दस प्रोटोटाइप फेल हुए और अंत में वे सफल रहे। इसके साथ ही मैन्यूफैक्चरिंग भी काफी जटिल कार्य था।
अजय के अनुसार, इस डिवाइस का पेटेंट करवाया जा चुका है। उन्होंने इसे गांव में तैयार किया और मैन्यूफैक्चरिंग शुरू की थी। फिलहाल वे एसजीएसआइटीएस के इनक्यूबेशन सेंटर से जुड़े हैं, जिसके माध्यम से उन्हें स्टार्टअप सीडी फंड योजना के तहत लोन भी मिला है।

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