स्वच्छता के लिए पर्यावरण हितैषी इंजीनियरिंग, शोधार्थियों ने तैयार किए सौ प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल डिस्पोजल
सिंगल यूज प्लास्टिक का काफी इस्तेमाल खाने-पीने के सामान की पैकिंग और उसे परोसने में भी किया जाता है। अब इंदौर में शोधार्थियों ने सौ प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल डिस्पोजेबल उत्पाद तैयार किए हैं। इनका इस्तेमाल पर्यावरण और सेहत दोनों के लिहाज से फायदेमंद है। ये उत्पाद तीस प्रतिशत बांस के फाइबर पांच प्रतिशत पराली पांच प्रतिशत घास और 60 प्रतिशत प्राकृतिक स्टार्च का उपयोग कर बनाया गया है।

जेएनएन, इंदौर। स्वच्छता और उसके लिए होने वाले नवाचार की दृष्टि से इंदौर की गिनती देश के अग्रणी शहर के रूप में होती है। देश के सबसे स्वच्छ शहर माने जाने वाले इंदौर में सिंगल यूज प्लास्टिक की समस्या से निपटने के लिए भी कई नवाचार हो रहे हैं।
सिंगल यूज प्लास्टिक का काफी इस्तेमाल खाने-पीने के सामान की पैकिंग और उसे परोसने में भी किया जाता है। जोकि बाद में स्वच्छता और पर्यावरण के लिहाज से चुनौती पेश करता है। इससे निपटने के लिए पराली और अन्य वस्तुओं से डिस्पोजेबल उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं, लेकिन उनमें भी अंदर से केमिकल की एक परत लगाई जाती थी।
सौ प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल मुश्किल पड़ाव
इस कारण यह भी सौ प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल नहीं होते थे। साथ ही सेहत व पर्यावरण की दृष्टि से भी सहज विकल्प नहीं बन पा रहे हैं। वहीं अब इंदौर में शोधार्थियों ने सौ प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल डिस्पोजेबल उत्पाद तैयार किए हैं। इनका इस्तेमाल पर्यावरण और सेहत दोनों के लिहाज से फायदेमंद है। शहरों में डिस्पोजेबल उत्पादों से होने वाली गंदगी से भी इससे बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है।
इंदौर के श्री गोविंदराम सेकसरिया प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (एसजीएसआइटीएस) में शोधार्थियों के इस नवाचार से तैयार उत्पाद बेहद टिकाऊ और सस्ते हैं। बांस के फाइबर, प्राकृतिक स्टार्च और थोड़ी सी पराली की मदद से तैयार हुए ये उत्पाद पूरी तरह पर्यावरण हितैषी है। ये उत्पाद तीस प्रतिशत बांस के फाइबर, पांच प्रतिशत पराली, पांच प्रतिशत घास और 60 प्रतिशत प्राकृतिक स्टार्च का उपयोग कर बनाया गया है।
पेटेंट की हो रही तैयारी
बायोडिग्रेडेबल प्लेट और ग्लास तैयार करने वाले एसजीएसआइटीएस के सहायक आचार्य डॉ. कृष्णकांत धाकड़, आदर्श जायसवाल व श्रीवर्द्धन भार्गव सहित एमटेक के छात्र चित्रांश बाथम अब इसका पेटेंट करवा रहे हैं। शोधार्थियों के अनुसार ये ऐसे पहले उत्पाद हैं जो सौ प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल हैं, यदि पशु इन्हें खा भी लेते हैं तो उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।
स्टार्च की परत बनाई तो बन गई बात
दरअसल डिस्पोजल प्लेट और ग्लास में मुख्य समस्या इसके अंदर बनी प्लास्टिक की परत होती है। पराली के जरिए पहले बायोडिग्रेडेबल प्रोडक्ट बनाने के प्रयास भी हुए हैं, लेकिन इनके अंदर की परत का विकल्प नहीं निकल सका और इसमें कहीं न कहीं प्लास्टिक और इपोक्सी रेसिन का उपयोग किया गया।
इंदौर में जब सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबंधित करने की शुरुआत हुई, तो हमें एक ऐसे उत्पाद पर काम करने का आइडिया आया जो पूर्ण रूप से प्लास्टिक का विकल्प हो। चूंकि हम पहले से ही प्लास्टिक के उत्पाद पर काम कर रहे थे, ऐसे में हमने डिस्पोजेबल प्रोडक्ट को पूर्ण रूप से प्लास्टिक मुक्त करने पर कार्य शुरू किया। तीन साल के शोध के बाद हमें बांस के फाइबर और स्टार्च की मदद से इस तरह के प्रोडक्ट बनाने में सफलता मिली है।
- डॉ. कृष्णकांत धाकड़, सहायक आचार्य, एसजीएसआइटीएस
एसजीएसआइटीएस की टीम ने इन उत्पादों को बनाने की प्रक्रिया में फाइबर को उबालने और रासायनिक बाइंडर का उपयोग करने के बजाय प्राकृतिक बाइंडिंग एजेंट यानी स्टार्च का उपयोग किया और एक विशेष मोल्ड में डालकर करीब 180 डिग्री सेल्सियस के तापमान और अन्य दबाव के माध्यम से अलग-अलग आकार में ढाला जाता है। बाद में ग्लास और प्लेट पर स्टार्च की परत उभर जाती है। यदि यह परत गर्म पेय या खाद्य पदार्थ में घुल भी जाती है, तो इससे स्वास्थ्य को नुकसान नहीं होगा। बाद में प्लेट और ग्लास का पूर्ण रूप से निस्तारण हो जाएगा।
टेस्ट में भी हुए पास
ग्लास और प्लेट की गुणवत्ता को परखने के लिए इस पर अलग-अलग टेस्ट किए गए, जिसमें मुख्य रूप से एएसडीएम यानी अमेरिकन सोसायटी फार टेस्टिंग एंड मैटेरियल टेस्ट था। इसमें ग्लास और प्लेट में अलग-अलग तापमान के तरल व अन्य खाद्य पदार्थों को निश्चित समय के लिए रखा गया। संस्था की लैब में हुए इस टेस्ट में सारे प्रोडक्ट पास हुए।
इनके औद्योगिक उत्पादन के लिए संबंधित उद्योगों से भी संपर्क किया गया है। शोधार्थियों के अनुसार, बायोडिग्रेडेबल उत्पाद तैयार करने में दो रुपये तक का खर्च आता है। यदि इसका व्यासायिक स्तर पर उत्पादन किया जाएगा तो इसकी लागत एक रुपये प्रति ग्लास अथवा प्लेट ही रह सकती है। इनकी गुणवत्ता भी काफी अच्छी है।
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