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    MP News: खजुराहो में बन रहा ऐसा आदिवासी गांव, जहां सात जनजातियों की संस्कृति झलकेगी; पीएम मोदी करेंगे शुभारंभ

    By Jagran NewsEdited By: Sachin Kumar Mishra
    Updated: Sun, 20 Nov 2022 09:38 PM (IST)

    MP News खजुराहो में ऐसा आदिवासी गांव बसाया जा रहा जहां सात जनजातियों की संस्कृति झलकेगी। खासियत यह है कि यहां सातों जनजातियों के रहवास और उनकी कला संस्कृति को उसी जनजाति के कलाकार ने तैयार किया है।

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    खजुराहो में बन रहा ऐसा आदिवासी गांव, जहां सात जनजातियों की संस्कृति झलकेगी, पीएम मोदी करेंगे शुभारंभ

    छतरपुर, अब्बास अहमद। MP News: यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल खजुराहो (Khajuraho) में ऐसा आदिवासी गांव बसाया जा रहा, जहां सात जनजातियों की संस्कृति झलकेगी। खासियत यह है कि यहां सातों जनजातियों के रहवास और उनकी कला संस्कृति को उसी जनजाति के कलाकार ने तैयार किया है। जनवरी, 2023 में इंदौर में होने वाले प्रवासी भारतीय सम्मेलन और ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) इसका वर्चुअल शुभारंभ करेंगे।

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    आदिवर्त रखा गया गांव का नाम

    मध्य प्रदेश के इस गांव का नाम आदिवर्त (Adivart) रखा गया है। इसमें भील, गोंड, भारिया, कोल, सहरिया, बैगा और कोरकू जनजाति के रहवास बनाए जा रहे हैं। यहां इनकी पूरी संस्कृति है। उपकरण से लेकर वाद्य यंत्र तक रखे जा रहे हैं। 3.5 एकड़ में निर्माण एक सितंबर 2021 से शुरू किया गया था। जनजातीय लोककला संग्रहालय के क्यूरेटर अशोक मिश्रा बताते हैं करीब सात करोड़ रुपये की लागत से निर्माण कार्य 80 प्रतिशत से ज्यादा पूरा हो चुका है। यहां एक प्रदर्शनी दीर्घा भी रहेगी। प्रत्येक माह में 15 दिन जनजाति कलाकार यहां अपनी कला का प्रदर्शन कर पाएंगे। वे सीधे ग्राहक को अपने उत्पाद भी बेच पाएंगे।

    गांव में होगी मां नर्मदा की जीवंत कथा

    आदिवर्त जनजातीय कला राज्य संग्रहालय के प्रबंधक भास्कर पाठक ने बताया प्रदेश में सात जनजातियों में पांच जनजाति नर्मदा नदी के किनारे बसती हैं। पानी से इनका गहरा नाता है। ऐसे में यहां दीवारों पर मां नर्मदा की जीवंत कथा पें¨टग के माध्यम से उकेरी जाएगी। गोंड जनजाति से आने वाली पद्मश्री दुर्गाबाई व्योम नर्मदा की कथा बना रही हैं। गोंड चित्रांकन में उद्गम से लेकर नर्मदा के प्रमुख घाट रहेंगे। भील जनजाति की पद्मश्री भूरी बाई खुद 24 पें¨टग के माध्यम से अपनी जीवन कहानी दर्शाएंगी। राष्ट्रीय तुलसी सम्मान से सम्मानित तिलकराम नायलोन की रस्सी से शाजा का वृक्ष बना रहे हैं। जनजातियों के लिए यह वृक्ष बरगद और पीपल की तरह पूज्यनीय होता है।

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