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    पैतृक संपत्ति मामले सैफ अली खान को झटका, हाईकोर्ट ने खारिज किया ट्रायल कोर्ट का फैसला; फिर से शुरू होगी सुनवाई

    जबलपुर हाई कोर्ट ने अभिनेता सैफ अली खान के परिवार की 15 हजार करोड़ की पैतृक संपत्ति के मामले में भोपाल ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। ट्रायल कोर्ट ने सैफ अली खान और उनके परिवार को संपत्तियों का मालिक माना था। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को पुन सुनवाई कर एक वर्ष के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया है।

    By Jagran News Edited By: Swaraj Srivastava Updated: Sat, 05 Jul 2025 11:30 PM (IST)
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    भोपाल ट्रायल कोर्ट के दो दशक पुराने फैसले को निरस्त कर दिया है (फोटो: पीटीआई)

    जेएनएन, जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अभिनेता सैफ अली खान और उनके परिवार की 15 हजार करोड़ की पैतृक संपत्ति के मालिकाना मामले में भोपाल ट्रायल कोर्ट के दो दशक पुराने फैसले को निरस्त कर दिया है।

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    ट्रायल कोर्ट ने सैफ अली खान, उनकी मां शर्मिला टैगोर और उनकी बहनों को संपत्तियों का मालिक माना था। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को पुन: सुनवाई कर एक वर्ष के भीतर मामले का निपटारा करने के लिए निर्देशित किया है।

    मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार बंटवारे की मांग

    मामला नवाब हमीदुल्लाह से संबंधित है, जो भोपाल रियासत के अंतिम शासक थे। उनकी तीन बेटियों में से एक साजिदा ने इफ्तिखार अली खान पटौदी से विवाह किया और उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी, जो भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान रहे, ने शर्मिला टैगोर से विवाह किया।

    नवाब की सबसे बड़ी बेटी आबिदा के पाकिस्तान चले जाने के बाद साजिदा इन संपत्तियों की मालिक बन गईं। इस मामले में दो अपीलें दायर की गई थीं, जिनमें से एक बेगम सुरैया राशिद और दूसरी नवाब मेहर ताज साजिदा सुल्तान द्वारा की गई थी। अपीलकर्ताओं ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को अनुचित बताया और कहा कि संपत्तियों का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार होना चाहिए था।

    न्यायमूर्ति द्विवेदी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को मामला नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस भेजा जाता है। अदालत ने आदेश दिया कि यदि आवश्यक हो तो ट्रायल कोर्ट बाद के घटनाक्रम और बदली हुई कानूनी स्थिति के मद्देनजर पक्षों को आगे सबूत पेश करने की अनुमति दे सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने मामले के अन्य पहलुओं पर विचार किए बिना ही मुकदमों को खारिज कर दिया, वह भी उस फैसले पर भरोसा करते हुए जिसे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

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