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    जीएसटी चोरी का अनोखा मामला: 512 करोड़ रुपये के फर्जी बिल, 150 बैंक एकाउंट्स यूज; जानिए पूरी कहानी

    उसने बताया कि वह वर्ष 2009 से फर्जी आइडी नकली नाम जैसे नीलू सोनकर एनके खरे का उपयोग कर विभिन्न फर्जी फर्मों एवं शेल कंपनियों के नाम से फर्जीवाड़ा किया था। सहाय ने संचालित कंपनियों के नेटवर्क के माध्यम से उसने 512 करोड़ रुपये के फर्जी (बोगस) बिलिंग विभिन्न नामों से दिखाई थी।

    By Jagran News Edited By: Abhishek Pratap Singh Updated: Mon, 30 Jun 2025 10:00 PM (IST)
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    जीएसटी फर्जीवाड़े का अनोखा मामला, 512 करोड़ रुपये के मिले फर्जी बिल

    राज्य ब्यूरो, भोपाल। फर्जी तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) लेकर जीएसटी चोरी के प्रकरण में जांच एजेंसी मध्य प्रदेश आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने बड़ा फर्जीवाड़ा पकड़ा है। जांच में 512 करोड़ रुपये के फर्जी बिल मिले हैं, जिनका उपयोग आइटीसी लेने के लिए किया जाता था। अभी तक 130 करोड़ रुपये की जीएसटी चेारी सामने आई है।

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    मुख्य आरोपित जबलपुर का रहने वाला विनोद सहाय है। उसने जाली दस्तावेजों 23 फर्जी फर्में बना ली थी। फर्जीवाड़े में 150 बैंक खातों को उपयोग किया गया, जिन्हें सहाय या उसके सहयोगी संचालित करते थे। ईओडब्ल्यू ने उसे झारखंड के रांची से 25 जून को गिरफ्तार किया था। न्यायालय से उसे दो जुलाई तक के लिए पुलिस रिमांड पर भेज दिया है। फिलहाल पूछताछ की जा रही है, जिसमें नई-नई जानकारियां सामने आ रही हैं।

    सील, परिवहन की फर्जी रसीदें और जीएसटी बिल बुक बरामद

    सहाय के घर से विभिन्न विभागों की सील, परिवहन की फर्जी रसीदें, जीएसटी बिल बुक, दूसरे लोगों के पैन कार्ड, आधार कार्ड व अन्य प्रमाण पत्र जब्त किए गए हैं। उसने कर्ज दिलाने के नाम से उनके दस्तावेज व सिम कार्ड लेकर फर्जी फर्मे बनाई थी। इनमें जबलपुर के एक पीड़ित प्रताप सिंह लोधी की शिकायत और वाणिज्यिक कर विभाग जबलपुर के सहायक आयुक्तों की रिपोर्ट के आधार पर विनोद सहाय, अन्य लोग और फर्मों को मिलाकर 14 के विरुद्ध 21 जून को ईओडब्ल्यू ने एफआइआर पंजीबद्ध की थी।

    पूछताछ में सहाय ने क्या बताया?

    पूछताछ में उसने बताया कि वह वर्ष 2009 से फर्जी आइडी, नकली नाम जैसे नीलू सोनकर, एनके खरे का उपयोग कर विभिन्न फर्जी फर्मों एवं शेल कंपनियों के नाम से फर्जीवाड़ा किया था। सहाय ने संचालित कंपनियों के नेटवर्क के माध्यम से उसने 512 करोड़ रुपये के फर्जी (बोगस) बिलिंग विभिन्न नामों से दिखाई थी, जबकि जांच में पता चला कि वास्तव में किसी वस्तु या सेवा का क्रय-विक्रय नहीं हुआ था। इसका उद्देष्य खरीददार कंपनियों को फर्जी आइटीसी का लाभ देना था।

    विनाेद सहाय खुद करता था फर्जी फर्मों का संचालन

    फर्जी लेनदेन में सामने आईं कंपनियां नर्मदा ट्रेडर्स, नमामि टेडर्स, अभिजीत टेडर्स, मां रेवा ट्रेडर्स, अंकिता स्टील एंड कोल, जगदम्बा कोल कैरियर्स, महक इंटरप्राइजेज, केडी. सेल्स कारपोरेशन, कोराज टेक्निक, महामाया ट्रेडर्स आदि का संचालन विनोद सहाय खुद करता था या उसने अन्य नामों के माध्यम से नेटवर्क फैला रखा था।

    जीएसटी पोर्टल पर इन कंपनियों से कर योग्य आपूर्ति (आउटवार्ड सप्लाई) के रूप में दिखाया गया 512 करोड़ रुपये से अधिक है, जिसमें से अधिकांश पर इनपुट टेक्स केडिट (आईटीसी) पास किया गया। इससे सरकार को सीधे 130 करोड़ रुपये की कर हानि हुई। 

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