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    Ganesh Chaturti 2022: मिट्टी की गणेश प्रतिमा की स्‍थापना ही सर्वश्रेष्‍ठ, पुराणों में बतायी गई ये वजह

    By Babita KashyapEdited By:
    Updated: Mon, 29 Aug 2022 11:36 AM (IST)

    Ganesh Chaturti 2022 31 अगस्त से 09 सितंबर तक दस दिन गणेशोत्‍सव मनाया जाएगा। ऐसी मान्‍यता है कि मिट्टी की गणेश प्रतिमाओं से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। मिट्टी में अंतर्निहित शुद्धता होती है। इसमें प्रकृति के पांच तत्व भूमि-जल-वायु-अग्नि और आकाश हैं।

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    Ganesh Chaturti 2022: 31 अगस्त से 10 दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव शुरू होने जा रहा है।

    जबलपुर, सुरेंद्र दुबे। Ganesh Chaturti 2022: दस दिवसीय गणेशोत्सव शुरू होने जा रहा है। गणेशोत्सव 31 अगस्त से 09 सितंबर तक रहेगा, पहले दिन यानी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणपति घर-घर विराजमान होंगे। ये मूर्तियांं पीओपी, मिट्टी, अन्‍य रसायन और धातु से भी बनायी जाती है लेकिन श्री शिव महापुराण

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    में कहा गया है कि मिट्टी की गणेश प्रतिमाओं की स्‍थापना करना ही सर्वश्रेष्‍ठ होता है क्‍यों‍कि इससे सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मिट्टी में अंतर्निहित शुद्धता होती है। इसमें प्रकृति के पांच तत्व भूमि-जल-वायु-अग्नि और आकाश हैं। इसलिए प्रथम पूज्य भगवान गणपति का भूमि में आह्वान कर उनके प्राण प्रतिष्‍ठा करने से कार्य सिद्ध होता है।

    POP की मूर्तियोंं में नहीं आ पाता भगवान का अंश

    इसके विपरीत प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) और अन्य रसायनों से बनी गणेश मूर्तियों को भगवान का अंश नहीं मिलता और इससे गुण भी दूषित होते हैं। यह कहना है संस्कारधानी निवासी आध्यात्मिक विषयों के विद्वान अस्मित गुप्ता 'किंशु' का। उन्होंने शिव महापुराण सहित अन्य ग्रंथों का गहन अध्ययन कर अपना शोध प्रस्तुत किया।

    बातचीत के दौरान उन्हें बताया गया कि श्री शिव महापुराण में कथा के अनुसार माता पार्वती ने पुत्र की इच्छा से दैहिक-मिट्टी से एक सुंदर पुत्र का पुतला बनाया था। भगवान शिव की कृपा से उस अद्भुत पुतला में प्राण-प्रतिष्ठा की गई थी।

    मिट्टी की मूर्तियों से नहीं होता जल प्रदूषित

    हमारी परंपरा में धातुओं के स्थान पर पार्थिव मूर्ति की पूजा का बहुत महत्व है। इनका निर्माण निराकार मिट्टी को साकार मूर्ति के रूप में आकार देने के भारतीय दर्शन से जुड़ा है और विसर्जन के बाद साकार रूप निराकार में समा जाता है।

    जब मिट्टी की मूर्तियों को नदियों आदि में विसर्जित किया जाता है, तो वे प्रदूषण का कारक नहीं बनती हैं। प्रकृति और नदियों को स्वच्छ रखने के लिए इस दिशा में जागरूकता जरूरी है।

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