भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल... जहरीले कचरे पर मची रार, 10 Points में जानिए निपटान में क्यों लगा इतना लंबा वक्त
भोपाल गैस त्रासदी के बाद अभी भी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में कचरे का अंबार फैला था। इसको हटाने के लिए बुधवार से प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस कचरे को शहर से बाहर ले जाने की कवायद शुरू कर दी गई है। जहरीले कचरे को 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में भरकर 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र भेजा जा रहा है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल गुजर गए हैं। इस भयानक त्रासदी के बाद बंद पड़ी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पड़े 377 टन ज़हरीले कचरे को शहर से बाहर ले जाने का सिलसिला बुधवार से शुरू हो गया है। इस बचे जहरीले कचरे को 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में भरकर भोपाल से करीब 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र भेजा गया।
कचरे के ट्रांसफर के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया, इस दौरान इन 12 ट्रकों के साथ पुलिस बल, एंबुलेंस, डॉक्टर, फायर ब्रिगेड और क्विक रिस्पांस की टीम मौजूद रही। कचरे के निपटान के लिए पिछले कई साल में कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ी। अब हाई कोर्ट के आदेश के बाद 6 जनवरी तक कचरे को हटाने की प्रक्रिया चल रही है।
जानिए दस बड़ी बातें
यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पड़े 377 टन जहरीले कूड़े को हटाने के लिए 21 साल की कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ी। आइए आपको 10 पॉइंट्स में बताते हैं इस कानूनी लड़ाई में कब क्या हुआ।
- सबसे पहले साल 2004 के अगस्त महीने में भोपाल के रहने वाले आलोक प्रताप सिंह ने एमपी हाईकोर्ट में याचिका दायर की और यूनियन कार्बाइड परिसर में पड़े जहरीले कचरे को हटाने की गुहार लगाई। इसी के साथ पर्यावरण को हुए नुकसान के निवारण की मांग भी की।
- इसके बाद साल 2005 में हाईकोर्ट ने यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निपटान के संबंध में एक टास्क फोर्स की समिति का गठन किया। इस समिति के गठन का उद्देश्य था कि कचरे के सुरक्षित निपटान करने को लेकर अपनी सिफारिशें दें।
- आगे अप्रैल 2005 में केंद्रीय रसायन और पेट्रोलिकेमिकल्स मंत्रालय ने एक आवेदन दायर किया और उच्च न्यायालय से कहा कि कचरा हटाने में आने वाला पूरा खर्च उत्तरदायी कंपनी डाउ केमिकल्स, यूसीआईएल से ही वसूला जाए।
- इसके बाद जून 2005 में एमपी हाई कोर्ट ने आदेश दिया, इस आदेश के अनुपालन में गैस राहत विभाग ने कचरे को पैक करने और भंडारन करने के लिए रामकी एनवायरो फार्मा लिमिटेड को नियुक्त किया। इसी बीच परिसर में करीब 346 टन जहरीले कचरे की पहचान की गई।
- आगे अक्टूबर 2006 में एमपी हाईकोर्ट ने 346 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को अंकलेश्वर (गुजरात) भेजने का आदेश दिया था। वहीं, नवंबर 2006 में हाई कोर्ट ने पीथमपुर में टीएसडीएफ सुविधा के लिए 39 मीट्रिक टन चूना कीचड़ के परिवन का आदेश दिया।
- इसके अगले साल अक्टूबर 2007 में गुजरात सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखकर यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा अंकलेश्वर स्थित भरूच एनवायर्नमेंटल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में जलने में असमर्थता व्यक्त की।
- अक्टूबर 2009 में टास्क फोर्स की 18वीं बैठक पीथमपुर में 346 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को भेजने का फैसला किया गया। फैसले के बाद यह काम नवंबर से ही शुरू कर दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि अंकलेश्वर में कचरा भेजना असंभव लग रहा था।
- आगे अक्टूबर 2012 में मंत्रियों के समूह ने ट्रायल के तौर पर 10 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को पीथमपुर में टीएसडीएफ सुविधा में जलाने का फैसला लिया गया। इसके बाद अप्रैल 2014 में देश के शीर्ष न्यायालय ने पीथमपुर में 10 टन कचरा नष्ट करने की योजना बनाने के लिए आदेश दिया।
- इसके अगले साल दिसंबर 2015 में देश के शीर्ष न्यायालय ने 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को पीथमपुर में निपटाने का आदेश दिया। बाद में अप्रैल 2021 में मध्य प्रदेश की सरकार ने इस कचरे के निपटान के लिए टेंडर आमंत्रित किए। नवंबर 2021 में रामकी को टेंडर दे दिया गया।
- वहीं, दिसबंर 2024 में एमपी की हाई कोर्ट ने जहरीले कचरे में निपटान में हो रही देरी पर फटकार लगाई और कहा कि एक महीने के अंदर यहां से कचरा हटाया जाना चाहिए। कोर्ट के फटकार के बाद कवायद तेज की गई। जिसके बाद 6 जनवरी तक कचरे को हटाए जाने की तैयारी है।
क्या हुआ था 40 साल पहले
उल्लेखनीय है कि तीन दिसंबर 1984 की सुबह की घटना जब भी लोगों के जहन में आती है, एक डरावनी तस्वीर सामने आने लगती है। इस दिन भोपाल में स्थित एक यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के स्वामित्व वाली एक कीटनाशक फ़ैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक होने लगी। लीक हुई गैस की चपेट में हजारों लोग आए थे। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस हादसे में पांच हजार लोगों की जान गई थी। हालांकि, स्थानीय लोगों ने कहा था कि इस हादसे में इससे भी ज्यादा लोगों ने जान गवाईं थी।
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