रेडियोएक्टिव तत्व और एरोसोल के संयोग पर हुआ शोध

कमरे के अंदर मौजूद रेडियोएक्टिव तत्व और एरोसोल के संयोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर किया गया शोध कार्यशाला में मौजूद शोधार्थियों सबसे ज्यादा आकर्षित कर रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 23 Oct 2018 03:46 PM (IST) Updated:Tue, 23 Oct 2018 03:46 PM (IST)
रेडियोएक्टिव तत्व और एरोसोल के संयोग पर हुआ शोध
रेडियोएक्टिव तत्व और एरोसोल के संयोग पर हुआ शोध

श्रीनगर गढ़वाल, पौड़ी [जेएनएन]: कमरे के अंदर मौजूद रेडियोएक्टिव तत्व और एरोसोल के संयोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर किया गया गुरुकुल कांगड़ी विवि हरिद्वार के शोधार्थी अंकुर कुमार का शोध कार्यशाला में मौजूद शोधार्थियों और छात्रों को सबसे ज्यादा आकर्षित कर रहा है। 

शोधार्थी अंकुर कुमार ने बताया कि रेडियोएक्टिव तत्व और एरोसोल मिलकर जो भारी कण बनते हैं, वह फेफड़ों तक नहीं पहुंच पाते। इससे शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव भी कम हो जाते हैं। लेकिन, जैसे-जैसे स्थान की ऊंचाई बढ़ती जाती है, रेडियोएक्टिव तत्वों और एरोसोल के संयोग होने की दर में भी बदलाव होने लगता है। यहां दोनों का अटैचमेंट कम होने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

शोधार्थी अंकुर कुमार ने पिछले तीन सालों के दौरान किए गए शोध के परिणामों की चार्ट के माध्यम से सविस्तार जानकारी दी। बताया कि उत्तराखंड का बागेश्वर जिला उनके शोध कार्य का क्षेत्र रहा है। गुरुकुल कांगड़ी विवि हरिद्वार के प्रो. पीपी पाठक के दिशा-निर्देशन में उन्होंने यह शोध किया। जबकि, राजकीय महाविद्यालय नई टिहरी के डॉ. कुलदीप सिंह उनके को-गाइड रहे। उन्होंने फील्ड सहयोगियों पूनम सेमवाल, प्रखर सिंह व तुषार कंडारी के सहयोग से अपना शोध कार्य पूर्ण किया।

कम मानवीय हस्तक्षेप बनाता है प्राकृतिक अनुकूलन

हिमालयी क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन और एरोसोल विषय पर गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के चौरास परिसर में चल रही कार्यशाला के दूसरे दिन विषय विशेषज्ञों ने व्याख्यान व पावर प्रजेंटेशन के साथ ही अपने कार्य अनुभव भी साझा किए। श्रीराम इंस्टीट्यूट फॉर इंडस्ट्रीयल रिसर्च दिल्ली के वरिष्ठ पर्यावरण विज्ञानी डॉ. पवन कुमार भारती ने अंटार्टिका में किए गए शोध से संबंधित अनुभव साझा करते हुए कहा कि जिन स्थानों पर मानवीय हस्तक्षेप कम हुआ है, वहां आज भी प्राकृतिक अनुकूलन बना हुआ है। इस मौके पर गढ़वाल विवि के भौतिक विज्ञान विभाग की ओर से कैंसर के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए बायो मेडिकल रिसर्च सेंटर ग्वालियर के निदेशक डॉ. एसके भटनागर को लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया गया। विभाग के अध्यक्ष प्रो. एससी भट्ट और अन्य फैकल्टियों ने उन्हें यह सम्मान प्रदान किया। 

कार्यशाला में आइआइटीएम (भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान) पुणे के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसडी पंवार ने एरोसोल(पर्यावरण में धूल के कण) पर आकाशीय विद्युत से पडऩे वाले प्रभावों की जानकारी दी। कार्यशाला के आयोजक डॉ. आलोक सागर गौतम ने कहा कि गढ़वाल केंद्रीय विवि के भौतिक विज्ञान विभाग में आकाशीय विद्युत आघात को समझने और उस पर शोध करने के लिए डॉ. पंवार की ओर से उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं।  नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी दिल्ली के निदेशक डॉ. डीके असवाल ने वायु प्रदूषण से दैनिक जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से परिचित कराया। राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी इंदौर में सॉल्यूशन क्रिस्टल ग्रोथ लैब के हेड डॉ. केएस बड़थ्वाल ने कहा कि नैनो प्रौद्योगिकी से आने वाले समय में उत्तम संसाधन उपलब्ध होंगे। दार्जिलिंग से आए वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत चटर्जी ने ब्लैक कॉर्बन से संबंधित शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की। बायो मेडिकल रिसर्च सेंटर ग्वालियर के निदेशक डॉ. एसके भटनागर ने बताया कि वातावरण में एरोसोल की उपस्थिति फेफड़ों के कैंसर के लिए भी उत्तरदायी है। आइआइटी रुड़की के प्रो. राजेश श्रीवास्तव, साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स कोलकाता के डॉ. मानवेंद्र मुखर्जी, आइआइटीएम दिल्ली के डॉ. सुरेश तिवारी, आइआइटीएम पुणे के डॉ. पीडी सफाइ, आइआइटी मद्रास के डॉ. सचिन एस.गुंठे, बोस इंस्टीट्यूट कोलकाता के डॉ. अभिजीत चटर्जी, दून विवि के डॉ. विजय श्रीधर, गढ़वाल विवि के प्रो. पीडी सेमल्टी, प्रो. टीसी उपाध्याय व प्रो. आशीष शर्मा ने भी विचार साझा किए।

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