पदोन्नति पर शासन के रुख से कर्मचारियों में असंतोष, कहा- हितों को लेकर गंभीर नहीं सरकार

पदोन्नति नियमों में बदलाव कर्मचारियों को रास नहीं आ रहा है। इसलिए राज्याधीन सेवाओं में पदोन्नति का परित्याग नियमावली 2020 को लेकर कर्मचारी संगठनों में असंतोष बढ़ रहा है।

By Edited By: Publish:Sat, 08 Aug 2020 08:15 PM (IST) Updated:Sat, 08 Aug 2020 08:41 PM (IST)
पदोन्नति पर शासन के रुख से कर्मचारियों में असंतोष, कहा- हितों को लेकर गंभीर नहीं सरकार
पदोन्नति पर शासन के रुख से कर्मचारियों में असंतोष, कहा- हितों को लेकर गंभीर नहीं सरकार

देहरादून, जेएनएन। सरकार की ओर से पदोन्नति नियमों में किया गया बदलाव कर्मचारियों को रास नहीं आ रहा है। इसलिए उत्तराखंड राज्याधीन सेवाओं में पदोन्नति का परित्याग नियमावली 2020 को लेकर कर्मचारी संगठनों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। दरअसल, कुछ दिन पूर्व जब सरकार ने संशोधित नियमावली को लाने की घोषणा की, तब कर्मचारियों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि पदोन्नति का परित्याग करने पर न सिर्फ वरिष्ठता से वंचित होना पड़ेगा, बल्कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी हो सकती है। कर्मचारी संगठनों ने शासनादेश के दूरगामी असर को लेकर मंथन शुरू कर दिया है। 

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर प्रहलाद सिंह ने कहा कि सरकार ने कर्मचारियों पर शिकंजा कसने की नीयत से इस नियमावली को बनाया है। सरकार को पहले पदोन्नति की बिगड़ चुकी व्यवस्था को सुधारना चाहिए था। कई विभाग ऐसे हैं, जहां पदोन्नति होने में कई-कई साल लग जाते हैं। सेवानिवृत्त के कुछ साल पहले जब कर्मचारी को पदोन्नति के साथ दुर्गम में भेजा जाता है तो शारीरिक और पारिवारिक दिक्कतों के चलते वह पदोन्नति का त्याग करने को विवश होते हैं। उत्तराखंड एससी-एसटी इंप्लाइज फेडरेशन के प्रांतीय अध्यक्ष करमराम ने कहा कि सरकार कर्मचारियों के हितों को लेकर गंभीर नहीं है। 
पदोन्नति के सिस्टम को सुधार दिया जाए तो कोई भी कर्मचारी पदोन्नति का परित्याग क्यों करेगा, लेकिन सरकार ने यहां कर्मचारियों का हित नहीं देखा, बल्कि उन पर शिकंजा कसने का रास्ता निकाला है। यही वजह है, सरकार ने नियमावली बनाने और उसे लागू करने से पहले कर्मचारी संगठनों से बात नहीं की। उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष दीपक जोशी ने कहा कि जिस तरह प्रशासनिक अधिकारियों को समयबद्ध पदोन्नति मिल जाती है, उसी तरह सभी विभागों में पदोन्नति होनी चाहिए। शासनादेश के दूरगामी असर की समीक्षा की जा रही है। शिक्षक संघों में भी असंतोष पदोन्नति नियमों में हुए संशोधन से शिक्षक संगठनों में भी असंतोष है। 
शिक्षकों का कहना है कि सरकार को ऐसे नियम लागू करने से पहले अपनी व्यवस्थाएं दुरुस्त करनी चाहिए। यह नियम तभी लागू किया जाए, जब समयानुसार पदोन्नति मिले। राजकीय शिक्षक संघ के महामंत्री सोहन सिंह माझिला ने कहा कि प्रदेश में प्रवक्ता और एलटी मिलाकर करीब 27 हजार शिक्षक हैं, जबकि पदोन्नति के पद एक हजार भी नहीं हैं। ऐसे में पूरी सेवा में शिक्षकों को 20 से 25 साल की सेवा के बाद एक पदोन्नति मिलती है। 
लंबी सेवा के बाद अगर शिक्षक किसी कारण से पदोन्नति नहीं लेना चाहता तो यह उसका मत है, लेकिन उसपर कार्रवाई करना न्यायसंगत नहीं। प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रांतीय महामंत्री राजेंद्र बहुगुणा ने कहा कि दूसरे कार्मिकों को तीन पदोन्नतियां तक मिल जाती हैं, जबकि 80 फीसद से ज्यादा शिक्षक एक पदोन्नति के बाद ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं। इसके लिए यह जरूरी है कि पदोन्नति समय पर हो। जब तय समय पर पदोन्नति मिलेगी तो कोई कर्मचारी इसे छोड़ेगा क्यों।
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