महाराज ने कहा-ग्लेशियर की अनदेखी के मामले पर मांगे माफी, तो हरीश रावत ने किया पलटवार

केदारनाथ त्रासदी का सबब बने चौराबाड़ी ग्लेशियर को लेकर कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने एक बार फिर तत्कालीन जल संसाधन मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री रावत पर निशाना साधा है।

By Edited By: Publish:Sun, 26 Jul 2020 10:04 PM (IST) Updated:Mon, 27 Jul 2020 02:42 PM (IST)
महाराज ने कहा-ग्लेशियर की अनदेखी के मामले पर मांगे माफी, तो हरीश रावत ने किया पलटवार
महाराज ने कहा-ग्लेशियर की अनदेखी के मामले पर मांगे माफी, तो हरीश रावत ने किया पलटवार

देहरादून, राज्य ब्यूरो। जून 2013 में केदारनाथ त्रासदी का सबब बने चौराबाड़ी ग्लेशियर को लेकर पर्यटन और संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने एक बार फिर तत्कालीन जल संसाधन मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि इस ग्लेशियर की अनदेखी के मामले में हरीश रावत माफी मांगें। वहीं, हरदा ने भी महाराज के नहले पर दहला जड़ते हुए जवाब देने में देरी नहीं लगाई और कहा कि यह दायित्व तो राज्य सरकार का था। 

कैबिनेट मंत्री महाराज ने कहा कि प्रसिद्ध हिम विशेषज्ञों ने 2004 में चौराबाड़ी ग्लेशियर का सर्वेक्षण कर भविष्यवाणी की थी कि केदारनाथ धाम पर यह ग्लेश्यिर कहर बरपा सकता है। महाराज ने कहा कि तब कांग्रेस नेता हरीश रावत केंद्र में जल संसाधन मंत्री थे। उन्होंने रावत से पूछा कि जब चौराबाड़ी ग्लेशियर के इर्द-गिर्द झीलों की संख्या बढ़ रही थी और हिम विशेषज्ञ लगातार बड़ी त्रासदी की चेतावनी दे रहे थे, तो इसकी अनदेखी क्यों की गई। 

उनके द्वारा निष्क्रियता क्यों बरती गई। अगर रावत इस पर काम करते तो 2013 की त्रासदी को रोका जा सकता था। रावत को इस बड़ी गलती के लिए माफी नहीं मांगनी चाहिए। उधर, महाराज के आरोप का जवाब देने में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने देरी नहीं लगाई। हरदा ने सोशल मीडिया में चुटकी लेते हुए महाराज का नाम लिए बगैर उनके आध्यात्मिक और राजनैतिक व्यक्तित्व का जिक्र करते हुए इशारों ही इशारों में कहा कि वह पूछ रहे हैं कि चौराबाड़ी ग्लेशियर की चेतावनी पर मैंने क्यों अमल नहीं किया। 

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साथ ही कहा कि अब उन्हें कैसे समझाऊं कि वाडिया इंस्टीट्यूट की चेतावनी पर अमल करने का दायित्व तो राज्य सरकार का था। तब महाराज की पत्नी राज्य सरकार में मंत्री थीं। उन्होंने कहा कि शायद महाराज को यह जानकारी नहीं कि केंद्र में तब ग्लेशियरों का मामला जल संसाधन मंत्रालय के अधीन नहीं था। साथ ही कहा कि उनको यह कैसे समझाऊं कि केंद्र द्वारा जलवायु परिवर्तन को लेकर जो आठ मिशन प्रारंभ किए गए थे, उनमें ग्लेशियर और हिमालय भी सम्मिलित हैं।

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