उत्‍तराखंड: अब हरीश रावत के अगले कदम पर निगाहें

राज्यसभा चुनाव में भी विजयी पताका फहरा चुके मुख्यमंत्री हरीश रावत के अगले कदम पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं।

By sunil negiEdited By: Publish:Mon, 13 Jun 2016 11:50 AM (IST) Updated:Mon, 13 Jun 2016 11:53 AM (IST)
उत्‍तराखंड: अब हरीश रावत के अगले कदम पर निगाहें

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: दस विधायकों की बगावत से उपजे सियासी झंझावात से सफलतापूर्वक निकलने के बाद राज्यसभा चुनाव में भी विजयी पताका फहरा चुके मुख्यमंत्री हरीश रावत के अगले कदम पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं। खासकर, मंत्रिमंडल में दो रिक्त स्थानों को भरने को लेकर सियासी गलियारों में उत्सुकता का माहौल है। चर्चा यह भी चल रही है कि मुख्यमंत्री राज्य में समय पूर्व चुनाव का मास्टर स्ट्रोक खेल विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं, हालांकि उनकी टीम के वरिष्ठ सदस्य इस संभावना को फिलहाल खारिज कर रहे हैं।

पढ़ें:-उत्तराखंड की सियासत और कांग्रेस के भीतर एक बार फिर हरदा का सियासी कद बढ़ा


मुख्यमंत्री हरीश रावत गुजरी 10 मई को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के जरिए सत्ता में वापसी के बाद अब शनिवार को राज्यसभा चुनाव में भी जीत दर्ज चुके हैं। विधायकों को संतुष्ट करने के लिए उन्होंने राज्यसभा चुनाव परिणाम आते ही आनन-फानन उन्हें सभा सचिव के रूप में कैबिनेट मंत्री के दर्जे से नवाज दिया। अब सबकी निगाहें इस ओर लगी हैं कि वह मंत्रिमंडल में रिक्त दो पदों पर किन चेहरों को और कब मौका देते हैं। लगातार सरकार के साथ खड़े प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट में केवल बसपा के ही दो विधायक मंत्री पद से वंचित हैं तो लाजिमी तौर पर वे मंत्री पद के दावेदार हैं ही। इनके अलावा कांग्रेस के भी कई वरिष्ठ विधायक मंत्रिमंडल में जगह पाने वालों की कतार में हैं।

पढ़ें:-उत्तराखंड : राज्यसभा चुनाव में प्रदीप टम्टा विजयी


उधर, सियासी गलियारों में यह चर्चा भी चल निकली है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत अब कभी भी विधानसभा भंग कर चुनाव की सिफारिश कर सकते हैं। वैसे, अभी राज्य की मौजूदा तीसरी निर्वाचित विधानसभा का लगभग आठ माह का कार्यकाल शेष है, लेकिन जिस तरह की राजनैतिक परिस्थितियां बन रही हैं, उसमें जल्द चुनाव की संभावना को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता।

सूबा इन दिनों नियमित बजट की बजाए केंद्र द्वारा पारित लेखानुदान पर चल रहा है और इस वजह से लोकलुभावन घोषणाओं के मामले में सरकार के हाथ बंधे हुए हैं। हालांकि दो महीने बाद सरकार नियमित बजट ला सकती है मगर उसके बाद शेष पांच-छह महीनों में विकास योजनाओं की तस्वीर बहुत अधिक बदलने वाली नहीं।

पढ़ें-उत्तराखंडः भीमलाल आर्य व रेखा आर्य पर गिरी दलबदल कानून की गाज, सदस्यता निरस्त


लिहाजा, अगर राज्य में जल्द चुनाव होते हैं तो कांग्रेस विकास में अवरोध का पूरा ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ सकती है। कांग्रेस लगातार भाजपा पर सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाती रही है। 18 मार्च की बगावत के बाद इसी वजह से राज्य में लगभग डेढ़ महीने सियासी अस्थिरता और राष्ट्रपति शासन रहा। मुख्यमंत्री इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहरा जनमत से सहानुभूति की उम्मीद कर रहे हैं और पार्टी की जनतंत्र बचाओ यात्रा इसी रणनीति का अहम हिस्सा है। इसके अलावा इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है निर्धारित समय पर चुनाव की स्थिति में सहानुभूति की बजाए कांग्रेस को एंटी इनकमबेंसी का सामना न करना पड़े।


कांग्रेस में मार्च में हुई बगावत के बाद अंदरूनी हालात ठीकठाक नजर नहीं आ रहे। हाल ही में राज्यसभा चुनाव के दौरान पीडीएफ और कांग्रेस के दो मंत्रियों की नाराजगी किसी तरह दूर की गई तो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने सरकार के प्रति तल्ख तेवर अपना लिए, जो अब भी बदस्तूर कायम हैं। फिर मंत्रिमंडल में स्थान देने और नए जिलों को लेकर भी कांग्रेस के कई विधायक मुख्यमंत्री पर दबाव बनाए हुए हैं। अगर जल्द चुनाव होते हैं तो मुख्यमंत्री को इस तरह आंतरिक दबाव से निजात मिल सकती है।

इन तमाम परिस्थितियों पर गौर किया जाए तो कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री राज्य में समय पूर्व चुनाव का दांव खेल भी सकते हैं। हालांकि यह बात दीगर है कि रावत कैबिनेट के कई सदस्यों ने इस तरह के कदम को नामुमकिन बताया। उनका कहना है कि न तो इस तरह की जल्दबाजी की कोई जरूरत है और न इस विषय पर अभी कैबिनेट में कोई चर्चा ही हुई है।

पढ़ें-उत्तराखंडः मुख्यमंत्री की हवाई यात्रा पर भाजपा का हमला

chat bot
आपका साथी