विदेशों तक है मऊ के गोठा के गुड़ की मिठास, सजने लगी है मंडी

गोठा मंडी के गुड एवं भेली की मिठास प्रदेश या भारत तक ही नहीं सीमित है। इसकी मिठास अब यूरोपियन देशों तक जा पहुंची है। प्रतिवर्ष सैकड़ों की तादाद में विदेश सैलानी गुड़ का स्वाद चखते हैं तथा लेकर विदेश जाते हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sat, 11 Dec 2021 05:34 PM (IST) Updated:Sat, 11 Dec 2021 05:34 PM (IST)
विदेशों तक है मऊ के गोठा के गुड़ की मिठास, सजने लगी है मंडी
विदेशों तक है मऊ के गोठा के गुड़ की मिठास

जागरण संवाददाता, मऊ : गोठा मंडी के गुड एवं भेली की मिठास प्रदेश या भारत तक ही नहीं सीमित है। इसकी मिठास अब यूरोपियन देशों तक जा पहुंची है। प्रतिवर्ष सैकड़ों की तादाद में विदेश सैलानी गुड़ का स्वाद चखते हैं तथा लेकर विदेश जाते हैं।

दरअसल गोठा गांव सहित क्षेत्र के कुछ गांवों की मिट्टी की प्रकृति ऐसी है कि यहां की भेली का स्वाद एवं रंग दोनों ही अलग होता है। क्षेत्र के गन्ना किसानों के लिए गोठा ही प्राचीन एवं नजदीकी बाजार है। राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बाजार लगता है। इस मार्ग से वाराणसी से लुंबिनी तक बौद्ध धर्म के विदेशी अनुयाई एवं अन्य सैलानी गुजरते हैं। इनके विश्राम के लिए गोठा में माटल तथागत भी स्थापित है। इसके चलते विदेशी नागरिक गोठा मंडी की सुप्रसिद्ध भेली का भी स्वाद चखते हैं। भेली मुंह में जाते ही विदेशी ‘इट इज वेरी वेरी स्वीट डिश’ कहते हैं। इसकी मिठास एवं गुणवत्ता से प्रभावित होकर सैलानी काफी मात्रा में भेली लेकर अपने देश वापस जाते है। इन दिनों यहां पर इस भेली की कीमत प्रति किलोग्राम 90 रुपये से लेकर 120 रुपये है। भेली उत्पादक किसान ओमप्रकाश बताते हैं कि गन्ने की कोल्हू में पेराई कर रस निकाला जाता है। रस को बड़े कड़ाहे में पकाया जाता है। इसकी गंदगी निकालने के लिए फिटकरी डाला जाता है। चार-पांच घंटे के बाद भेली बनाने योग्य गुड़ तैयार होता है।

घटता जा रहा क्षेत्रफल

गोठा क्षेत्र में भेली उत्पादक किसानों की संख्या एवं गन्ने का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। इसके चलते मंडी में गुड़ एवं भेली की आवक काफी कम हो गई है। गुड़ उद्योग को बढ़ावा मिले तो फिर एक बार इस क्षेत्र में गुड़ उद्योग में क्रांति आ सकती है।

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