सोनभद्र जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर 16 वर्ष से नहीं बैठा अनारक्षित वर्ग का अध्यक्ष

सोनभद्र जिला पंचायत अध्यक्ष पद की कुर्सी पर पिछले 16 वर्ष से एक भी अनारक्षित वर्ग का व्यक्ति नहीं बैठा है। इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अनारक्षित है इससे उम्मीद की जा रही है कि शायद कोई अनारक्षित वर्ग का सदस्य इस बार इसपर बैठ जाए।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 21 May 2021 09:20 AM (IST) Updated:Fri, 21 May 2021 09:20 AM (IST)
सोनभद्र जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर 16 वर्ष से नहीं बैठा अनारक्षित वर्ग का अध्यक्ष
पिछले 16 वर्ष से एक भी अनारक्षित वर्ग का व्यक्ति नहीं बैठा है।

सोनभद्र, जेएनएन। जिला पंचायत अध्यक्ष पद की कुर्सी पर पिछले 16 वर्ष से एक भी अनारक्षित वर्ग का व्यक्ति नहीं बैठा है। इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अनारक्षित है, इससे उम्मीद की जा रही है कि शायद कोई अनारक्षित वर्ग का सदस्य इस बार इसपर बैठ जाए, लेकिन राजनीतिक समीकरण को देखकर ऐसा नहीं लगता है। जिले में जिला पंचायत सदस्य पद की 31 सीट है, जिसमें छह सीट अनारक्षित वर्ग का है तो वहीं 25 सदस्य आरक्षित वर्ग के हैं। प्रमुख राजनीतिक दलों में भी इसको लेकर अंदरखाने में विवाद गहरा रहा है। जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर अंतिम बार अनारक्षित वर्ग से वर्ष 2000 से 2005 तक देवेंद्र शास्त्री रहें हैं। इसके बाद वर्ष 2010 से 2015 तक भी अनारक्षित सीट पर आरक्षित वर्ग के ही अध्यक्ष रहें हैं।

निर्दली सदस्य बनेंगे निर्णायक

इस बार जिला पंचायत सदस्य पद पर सबसे अधिक निर्दली सदस्यों ने बाजी मारी है। जबकि सबसे बड़े दल के रूप में समाजवादी पार्टी के सदस्य जीत हासिल किया है। बावजूद सबको पता है कि जिला पंचायत सदस्य पद के समर्थित प्रत्याशी पार्टी के सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ते इसलिए उनके दल-बदल का नियम लागू नहीं होता। जिसका फायदा प्रदेश में सत्ताशीन राजनीतिक पार्टी हमेशा फायदा उठाती रही है। इस बार भी सत्ता में बैठी भाजपा के जिला स्तरीय पदाधिकारी ऐसी ही मंशा संजोये बैठे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर सपा के लोग अपने गठबंधन को मजबूत करने में लगे हुए हैं।

अनारक्षित दावेदारी पर मंथन

जहां सबसे अधिक सदस्य पद जीतने वाली सपा के अंदर दो सदस्य ऐसे हैं जो अध्यक्ष पद के लिए सबसे प्रमुख चेहरा हैं। पहला पूर्व अध्यक्ष जो आरक्षित वर्ग से आते हैं तो वहीं दूसरी तरफ बभनी से अनारक्षित वर्ग से जीत प्राप्त करने वाले अनारक्षित वर्ग के एक चर्चित चेहरा। पार्टी के अंदर इस असमंजस में समन्वय बैठाना भी पार्टी के आला पदाधिकारियों के लिए टेढ़ी खीर साबित होने वाला है। वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष के पास अध्यक्ष पद के लिए सीमित चेहरे हैं। जिसको लेकर जमकर अंदरूनी घमासान मचा हुआ है।

आंकड़ों में वर्षवार दावेदारी

- 1995 से 2000 अनसूचित सीट पर बसंती पनिका

- 2000 से 2005 अनारक्षित सीट पर देवेंद्र शास्त्री

- 2005 से 2010 अनसूचित सीट पर शिव शंकर घसिया

- 2010 से 2012 अनारक्षित सीट पर दिलीप मौर्य

- 2012 से 2015 अविश्वास में अनीता राकेश

- 2015 से 2018 पिछड़ी सीट पर अनिल यादव

- 2018 से 2020 अविश्वास में अमरेश पटेल

- 2021 से अनारक्षित सीट

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