UP : उन्नाव का युवा लिख रहा समग्र विकास की पटकथा, वैश्विक लक्ष्य से जोड़ ग्रामोदय को दे रहा सशक्त आधार

नानाजी देशमुख से प्रेरित अनुराग त्रिवेदी गांवों में शिक्षा लैंगिक समानता स्वावलंबन संग पर्यावरण संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। वह किसानों के लिए ऑनलाइन फार्मिंग क्लास चलाते हैं। वह राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र पद्मश्री भारत भूषण और कॉर्पोरेट्स से भी जुड़े हुए हैं।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Wed, 21 Dec 2022 07:40 PM (IST) Updated:Wed, 21 Dec 2022 07:40 PM (IST)
UP : उन्नाव का युवा लिख रहा समग्र विकास की पटकथा, वैश्विक लक्ष्य से जोड़ ग्रामोदय को दे रहा सशक्त आधार
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गांव से निकला युवा गांवों के समग्र विकास की लिख रहा पटकथा

नई दिल्ली, महेश शुक्ल। ग्रामोदय से राष्ट्रोदय की परिकल्पना करते समय नानाजी देशमुख ने कहा था कि हम अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हैं। गांवों में विकास और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करने के लिए जो अभियान उन्होंने शुरू किया था, उससे आज असंख्य युवा जुड़े हैं। ऐसा ही एक नाम है, उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले के पड़री कलां गांव के निवासी अनुराग त्रिवेदी।

पढ़ाई और करियर की तलाश में पहले कानपुर और फिर दिल्ली का रुख करने वाले अनुराग ने ग्रामोदय के संकल्प को संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के साथ जोड़कर गांवों में शिक्षा, स्वावलंबन, लैंगिक समानता के साथ पर्यावरण संरक्षण की मुहिम छेड़ी है। गांवों में बहुउद्देश्यीय पुस्तकालय खोले हैं जो शाम को किसानों के लिए ऑनलाइन फार्मिंग क्लास का काम भी करते हैं।

बच्चों को पढ़ाई के साथ कंप्यूटर दक्षता और खेलों का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। कोरोना काल में आरंभ हुई मुहिम से केंद्र का राष्ट्रीय जैविक कृषि केंद्र और जीरो बजट खेती के विशेषज्ञ पद्मश्री भारत भूषण त्यागी भी इससे जुड़े हैं। अनुराग बताते हैं कि वह कानपुर स्थित दीनदयाल विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गए। यहीं वर्ष 2016 में उन्होंने एक कोचिंग संस्थान खोला जो चल निकला।

उन्होंने कहा कि मन में गांव में कुछ करने की इच्छा थी, इसी को ध्यान में रखकर वर्ष 2019 में कुछ साथियों संग मिलकर कुछ काम इस दिशा में आरंभ किया। इसके तुरंत बाद कोरोना आ गया और हमने गांवों से शहरों में आकर बसे परिवारों का दर्द देखा। हमने कई परिवारों की मदद की और यहीं से उस भाव को बल मिला कि सुविधाओं के लिए गांव वाले शहर आएं, इसके बजाय ऐसी व्यवस्था हो कि गांवों तक ही सुविधाएं पहुंचें।

इसी विचार को ऋत रूरल फाउंडेशन नाम की संस्था बनाकर औपचारिक रूप प्रदान किया। इसी के माध्यम से अब हम गांवों में काम कर रहे हैं। ग्रामोदय के साथ संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को मिलाने के बारे में वह कहते हैं कि गांवों में बहुमुखी विकास के लिए यह अवधारणा विकसित की है। जब बच्चों को गांव में ही सब मिलेगा तो उनका जुड़ाव भी गांवों से बना रहेगा और ग्रामोदय को मजबूती देने के लिए एक शृंखला बनती जाएगी।

अनुराग बताते हैं कि उनके अभियान में गांव वाले रुचि ले रहे हैं। 146 गांवों से हमारे पास प्रस्ताव हैं। हम अब तक छह ऐसे केंद्र बना चुके हैं जो आसपास के गांवों की सेवा कर रहे हैं। चार केंद्र बन रहे हैं। हमारे अभियान से अब तक 18 सरकारी विद्यालय जुड़ चुके हैं। करीब 55 गांवों में हमारे अभियान का प्रभाव है। जहां हम पुस्कालय बना चुके हैं ताकि पठन-पाठन का अभ्यास और रुचि विकसित हो। लगभग 8-10 हजार बच्चे इन पुस्कालयों से लाभ ले रहे हैं।

संस्था लैंगिक समानता पर भी विशेष ध्यान दे रही है क्योंकि गांवों में यह एक बड़ी समस्या है। इसके लिए बालिकाओं के लिए विशेष कक्षाओं के आयोजन के साथ खेलकूद में भी उनकी सहभागिता बढ़ाई जा रही है। कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें सम्मानित करने के साथ ट्रैक सूट व प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है। अनुराग कहते हैं कि गांवों में साक्षरता का स्तर आधुनिक समय के अनुसार करने के लिए कॉर्पोरेट सेक्टर भी हमारे साथ जुड़ा है। हमने पुस्कालयों और विद्यालयों में कंप्यूटर शिक्षा भी आरंभ की है।

इस अभियान के अंतर्गत बने पुस्कालय दरअसल एक साथ तीन काम कर रहे हैं। इन्हीं का प्रयोग गांव की महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित करने में भी किया जा रहा है। सिलाई-बुनाई और घरेलू उत्पाद बनाने के प्रशिक्षण देकर उन्हें दक्ष किया जा रहा है ताकि वे आय अर्जित कर परिवार की और गांव की आर्थिकी बेहतर करें। अब इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए शाम को इन पुस्कालयों को ऑनलाइन फार्मिंग क्लास में बदल दिया गया है। इसमें ऑनलाइन माध्यम से दिल्ली व देश के अन्य शहरों में बैठे कृषि विज्ञानी व विशेषज्ञ किसानों को जीरो बजट खेती के तरीके सिखाते हैं।

इस पूरे कार्यक्रम का निर्देशन उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि सलाहकार भारत भूषण त्यागी करते हैं। उद्देश्य यह है कि रासायनिक खादों का प्रयोग न हो ताकि मिट्टी की गुणवत्ता कायम रहे और लोगों को स्वास्थ्यवर्धक रसायन मुक्त खाद्य पदार्थ मिलें। लागत कम होने से किसानों की आय में भी वृद्धि हो ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि बढ़े। यह अभियान गंगा किनारे के गांवों में ले जाने का भी लक्ष्य है ताकि पतित पावनी में रासायनिक खादों के कारण होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके।

गांव में बदलने लगी है तस्वीर

उन्नाव जिले के बीघापुर विकास खंड के बारा हरदो गांव की प्रधान शांति कहती हैं कि ऋत रूरल फाउंडेशन के माध्यम से हमारे गांव में पुस्कालय खुला है। इसका लाभ प्राइमरी व इंटर कालेज के बच्चे ले रहे हैं। आसपास के गांवों के बच्चे भी अध्ययन के लिए आते हैं। वहीं बिछिया विकासखंड के अड़ेरुवा के प्रधान नन्हकई कहते हैं कि अभियान के साथ जुड़कर हमारे गांव के बच्चों को काफी लाभ मिल रहा है। पंचायत भवन में संस्था द्वारा बनवाए गए पुस्कालय में बच्चे ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। विभिन्न विषयों की पुस्तकें उपलब्ध हैं।

ग्रामोदय का विचार समस्त ग्रामीण संस्कृति के उत्थान से ही संभव है। शिक्षा में संस्कार, गांव की अर्थव्यवस्था और खेती को गांव व सतत विकास लक्ष्य का आधार बनाकर संस्था काम कर रही है, जिससे आधारभूत अवसंरचना के साथ-साथ व्यक्ति-चरित्र निर्माण भी हो रहा है। यही ग्रामोदय का आधार है। -पद्मश्री भारत भूषण त्यागी, जीरो बजट खेती विशेषज्ञ

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