नीतू वेल्डर ने एक हाथ से संवारा बहनों का भविष्य, पिता की बीमारी के चलते स्कूल छोड़ संभाली थी दुकान

सामान्य तौर पर वेल्डिंग और खराद का मेहनत भरा काम मर्द ही करते आए हैं। उत्तर प्रदेश के सैमर टोला गांव की नीतू वेल्डर अपवाद हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 10 Jan 2019 10:50 AM (IST) Updated:Thu, 10 Jan 2019 10:51 AM (IST)
नीतू वेल्डर ने एक हाथ से संवारा बहनों का भविष्य, पिता की बीमारी के चलते स्कूल छोड़ संभाली थी दुकान
नीतू वेल्डर ने एक हाथ से संवारा बहनों का भविष्य, पिता की बीमारी के चलते स्कूल छोड़ संभाली थी दुकान

सम्भल, संजू यादव। सामान्य तौर पर वेल्डिंग और खराद का मेहनत भरा काम मर्द ही करते आए हैं। उत्तर प्रदेश के सैमर टोला गांव की नीतू वेल्डर अपवाद हैं। पिता के बीमार पड़ने के कारण उन्हें इस काम का बोझ अपने कंधों पर उठाना पड़ा। बखूब उठाया। बहनों का भविष्य गढ़ने के साथ ही परिवार की जिम्मेदारी संभाली। दिव्यांग होने के बावजूद एक ही हाथ से इतना कठिन काम कर लेने पर लोग नीतू सिंह की हिम्मत की दाद देते हैं।

सम्भल, उत्तर प्रदेश के चन्दौसी क्षेत्र के इस गांव में कल्यानदास अपने घर के बाहर खराद की दुकान चलाकर चार बेटियों व पत्नी का पालन पोषण करते थे। एक दिन घर का निर्माण कराते समय गिरी दीवार के नीचे दबकर गंभीर रूप से घायल हो गए। तब से उन्होंने चारपाई पकड़ ली। उस वक्त नीतू की उम्र 14 वर्ष थी। परिवार में केवल बेटियां होने के कारण दुकान चलाने वाला भी कोई न था। दुकान बंद हो गई। परिवार आर्थिक संकट में घिर गया।

बेबस और मजबूर माता-पिता यही बात दोहराते कि काश एक बेटा होता तो कम से कम दुकान तो चला लेता। यह बात नीतू को गहरी चुभ गई। उसने बंद पड़ी दुकान को खोला और काम शुरू कर दिया। 14 साल की लड़की के लिए यह काम कतई आसान न था। लेकिन दिन रात मेहनत कर उसने खुद को इस लायक बना लिया। अपने हुनर को भी तराशा। देखते ही देखते दुकान फिर चलने लगी। लोग छोटा- मोटा काम देने लगे। समय बीतता गया और नीतू वेल्डर चारों और पहचान बनाने लगी।

आमदनी शुरू हुई तो उसने बहनों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया। पिता भी ठीक होने लगे। लेकिन, कम उम्र में भारी भरकम काम करने और दिन रात काम करने के कारण नीतू ऐसी बीमार हुई कि शरीर के एक हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। नीतू दिव्यांग हो गई। बावजूद इसके उसने हिम्मत नहीं हारी। एक हाथ से लाचार हो जाने के बाद भी काम फिर शुरू किया। आज नीतू पूरी दुकान चलाती है।

नीतू बताती हैं, जब दस बरस की थी तो पिता को लोहे-हथौड़े-वेल्डिंग का ये सारा काम करते देखा करती थी। उनसे कभी कहती कि मुझे भी ये करना है, तो वे बहुत जोर से हंसते। बोलते कि यह काम लड़कियों का नहीं पगली। तू घर में अम्मा के साथ रसोई में काम कर...। किसे पता था कि एक दिन मुझे पिता की वह सारी जिम्मेदारी उठानी होगी। नीतू यह काम गत 15 वर्ष से कर रही हैं।

उन्होंने बहनों को पढ़ाने और परिवार चलाने के लिए हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। बड़ी बहन रेनू ने एमए एलएलबी किया। उसकी शादी बदायूं में डॉक्टर से हुई है। छोटी बहन पूजा ने बीए किया और सबसे छोटी बहन मीनू बीए के बाद कंप्यूटर का कोर्स कर रही है। नीतू के पिता कल्यान दास व मां गुलाबवती को अब बेटा न होने का कोई गम नहीं है। नीतू पर उनको गर्व है। वे कहते हैं भगवान ऐसी बेटी सब को दे।

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