आधुनिक खेती कर स्वावलंबन का संदेश दे रहे शेखर
रायबरेली : हौसला यदि बुलंद हो तो मुश्किल से मुश्किल राह आसान हो जाती है। नरसवां गांव के युव
रायबरेली : हौसला यदि बुलंद हो तो मुश्किल से मुश्किल राह आसान हो जाती है। नरसवां गांव के युवक ने भी कुछ ऐसा कर दिखाया। लाखों का पैकेज छोड़ खेती को पेशा बनाया। साथ ही खेती से मुंह मोड़ रहे युवाओं के सामने भी नजीर पेश की।
डलमऊ विकास खंड के नरसवां गांव निवासी शेखर चौधरी क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणा श्रोत बने हुए हैं। अपनी मेहनत और लगन से मौसम के विपरीत खेती कर स्वावलंबी बनने का संदेश भी दे रहे हैं। 28 वर्षीय शेखर ने बीएससीए धातु विज्ञान से बीटेक व डीफार्मा की डिग्री ली। पढ़ाई के दौरान ही शेखर का चयन उड़ीसा स्थित भूषण स्टील प्लांट में बतौर असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर हुआ था। पांच वर्षों तक नौकरी की, लेकिन खेती की उपेक्षा होता देख निराश हो गए। नौकरी छोड़कर गांव आ गए और आधुनिक खेती करने का मन बनाया। स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की।
आज इसके पौधे लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। नागपुर से स्ट्रॉबेरी के पौधे लाकर शेखर ने मं¨चग विधि से रोपाई की। इनसेट
ऐसे लगाए स्ट्रॉबेरी के पौधे
शेखर ने खेत में पहले आलू की तरह नालियां बनवाई और पॉलीथिन से उन्हें ढक दिया। नालियों की मेड़ों पर छह इंच की दूरी पर पॉलीथीन काट कर इंस्ट्राबेरी के पौधों की रोपाई की, ताकि इसका फल मिट्टी के संपर्क में आकर सड़ने न लगे। दूसरी ओर पॉलीथीन के कारण पानी भी कम लगता है। पौधों की ¨सचाई झरना विधि से करते हैं। कहते हैं कि एक बीघा में करीब 50 हजार का खर्च आता है, लेकिन मुनाफा दो से तीन लाख तक का होता है। मटका खाद का करते हैं प्रयोग
शेखर बाजारों में उपलब्ध खाद का प्रयोग नहीं करते, बल्कि स्वयं मटका खाद बनाकर फसलों में डालते हैं। बतौर शेखर चौधरी मटका खाद के प्रयोग से फसलें रोग मुक्त और हरी भरी बनी रहती हैं। एक मटके में बेसन, गोमूत्र, गाय का गोबर, बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी, केंचुआ खाद, पानी आदि का मिश्रण रखकर एक सप्ताह के लिए घूरे, गोबर के ढेर के नीचे दबाया जाता है। एक सप्ताह बाद उक्त मिश्रण को खेतों व फसलों में प्रयोग किया जाता है।