ज्ञान की भट्ठी में तप कर कुंदन बन रहा भविष्य

बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए अलग तरीके से कराई जा रही पढ़ाई। विद्यालय में मौजूद हैं तकरीबन पांच सौ बच्चे।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 26 Apr 2018 01:48 PM (IST) Updated:Thu, 26 Apr 2018 01:48 PM (IST)
ज्ञान की भट्ठी में तप कर कुंदन बन रहा भविष्य
ज्ञान की भट्ठी में तप कर कुंदन बन रहा भविष्य

मेरठ (जेएनएन)(नवनीत कांबोज)। इरादे फौलादी हों और मन में कुछ कर गुजरने की प्रबल और दृढ़ इच्छाशक्ति तो असंभव भी संभव हो जाता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है परिषदीय विद्यालय की प्रधानाध्यापिका रश्मि मिश्रा ने। उन्होंने संसाधनों की कमी के बावजूद परिषदीय विद्यालय को न केवल सीबीएसई पैटर्न पर ढाला, बल्कि बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई कराकर यह भी साबित कर दिया कि पढ़ाने के लिए इच्छाशक्ति सबसे अहम् है।

परिषदीय विद्यालयों का जिक्र आते ही एक अजीब से तस्वीर मन में उभरती है, लेकिन उस तस्वीर को संवारने का काम किया है सिखेड़ा के परिषदीय विद्यालय ने। परिषदीय विद्यालय में पंखे लगे कमरे, विद्युत की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए जनरेटर, अंग्रेजी माध्यम के पैटर्न वाले विद्यालयों की तरह प्रोजेक्टर से पढ़ाई, बैठने के लिए अच्छी बेंच, वाटर कूलर का ठंडा पानी सब कुछ बच्चों के लिए उपलब्ध है। ऐसे बदली स्कूल की सूरत

विद्यालय की प्रधानाध्यापिका रश्मि मिश्रा ने बताया कि जब वह स्थानांतरित होकर विद्यालय में आई थीं तो यह भी आम परिषदीय विद्यालय की तरह ही था। उनके दिमाग में शुरू से ही सरकारी विद्यालयों की बनी बनाई छवि को बदलने की इच्छा थी। जब उन्हें प्रधानाध्यापिका के रूप में यह मौका मिला तो निजी प्रयासों से उन्होंने विद्यालय में कुछ बदलाव कराए। बताया कि इसमें जनपद के कुछ उद्योगपतियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मदद की। गुलशन पॉलीओल्स की ओर से विद्यालय को पांच लाख रुपये का फर्नीचर दान दिया गया। इससे स्कूल के सभी बच्चों को नीचे बैठने से निजात मिल गई। इसके अलावा कई अन्य संस्थाओं ने भी विद्यालय को उच्चस्तरीय बनाने में मदद की। प्रोजेक्टर से पढ़ाई, आरओ का पानी

विद्यालय के छात्र-छात्राएं सीबीएसई स्कूलों की तरह प्रोजेक्टर से पढ़ाई करते हैं और आरओ का पानी पीते हैं। विद्यालय में उच्चस्तरीय टायलेट का निर्माण कराया गया है, जबकि सरकारी विद्यालयों में शौचालय की समस्या आम रहती है। बिजली जाते ही जनरेटर चल जाता है। विद्यालय के किसी भी कोने में बैठे बच्चों को साउंड सिस्टम के माध्यम से निर्देशित किया जाता है। बच्चे बोलते गुड मार्निग, मे आइ कम इन

सिर्फ रहन-सहन और फर्नीचर ही नहीं, बल्कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों पर पढ़ाई का असर भी दिखने लगा है। दूसरे परिषदीय विद्यालयों के माहौल से इतर विद्यालय के बच्चे गुड मार्निग, मे आइ कम इन और मे आइ गो टू वाटर आदि अंग्रेजी वाक्य सामान्य तौर से बोलते हैं। किताबी ज्ञान के साथ बच्चों की बोलचाल लोगों को सुहा रही है। खाली होते जा रहे गांव के स्कूल

आम बोलचाल की भाषा अंग्रेजी होने के साथ पढ़ाई का स्तर ऊंचा होने तथा विद्यालय का स्टैंडर्ड बढ़ने से गांव और आसपास के निजी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे भी सिखेड़ा के विद्यालय में प्रवेश ले रहे हैं। करीब पांच किमी दूर से बच्चे पढ़ने के लिए विद्यालय में आ रहे हैं। अपने बच्चों की तरह दे रहीं दुलार

प्रधानाध्यापिका रश्मि मिश्रा का कहना है कि वे और अन्य शिक्षक विद्यालय में पढ़ने आने वाले बच्चों को अपने बच्चों की तरह ही दुलार देते हैं। यदि कभी कोई बच्चा स्कूल नहीं आता तो पता किया जाता है कि न आने का क्या कारण रहा। बताया कि विद्यालय में पांच सौ बच्चे हैं।

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