जीवाश्म कार्बन नष्ट होने से पर्यावरण पर आंच

By Edited By: Publish:Tue, 26 Apr 2011 08:09 PM (IST) Updated:Fri, 18 Nov 2011 01:13 PM (IST)
जीवाश्म कार्बन नष्ट होने से पर्यावरण पर आंच

मेरठ : कृषि संपन्नता के लिए मशहूर मेरठ मंडल में जमीन की उर्वरा शक्ति दम तोड़ रही है। यह पर्यावरण के लिए खतरनाक संकेत हैं। पौधों को रसायन झुलसा रहे हैं। पर्यावरण में खतरनाक गैसों की मात्रा बढ़ रही है। जमीन में जीवाश्म कार्बन स्तर गिरने से 80 फीसदी केंचुए नष्ट हो चुके हैं।

मंडल की भूमि परीक्षण प्रयोगशाला में मिट्टी के 2858 नमूनों पर शोध किया गया, जिस पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। मेरठ सहित आसपास के जिलों में मिट्टी में जीवाश्म कार्बन की मात्रा .2 से .4 के बीच दर्ज की गई। जबकि आदर्श स्थिति में यह मात्रा .8 प्रतिशत होना चाहिए। अंधाधुंध उत्पादन लेने की होड़ में लगातार रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से कृषि भूमि पर बंजर में तब्दील होने का खतरा बढ़ गया है।

पर्यावरण वैज्ञानिक रजत भार्गव का कहना है कि रसायनों के उपयोग से जहां खाद्य पदार्थ विषाक्त हो चुका है, वहीं वातावरण में खतरनाक गैसों का भी उत्सर्जन हो रहा है।

क्षेत्रीय भूमि परीक्षण प्रयोगशाला के अध्यक्ष सीबी सिंह ने बताया कि कीटनाशकों एवं रसायनों ने 80 फीसदी केंचुओं को भी मार दिया है। इससे भूमि वायुमंडल से उर्वरा शक्ति सोखने में अक्षम होती जा रही है।

क्या कहते हैं अधिकारी

डीएफओ ललित वर्मा का कहना है कि आसपास बड़ी मात्रा में फलों की खेती में रसायनों के छिड़काव से वातावरण दूषित हो रहा है। पौधों की आक्सीजन उत्सर्जन क्षमता भी गिरी है। जागरुकता ही एक मात्र इलाज है।

मेरठ मंडल के संयुक्त कृषि निदेशक एमपी सिंह कहते हैं कि भूमि में तत्व सूचकांक की गिरावट से विभाग चिंतित है। जमीन में उपयोगी सूक्ष्म जीवाणुओं की उपस्थिति बढ़ाने के लिए किसानों को दलहनी फसलों, व ढैंचा के प्रयोग के लिए जागरूक किया जा रहा है।

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