रेयर डिजीजी के इलाज में SGPGI बना उत्‍कृष्‍ट सेंटर, Treatment के लिए 20 लाख तक की होगी मदद

भारत सरकार की रेयर डिजीज के इलाज के लिए देश के आठ सेंटर को मान्यता दी है जिसमें संजय गांधी पीजीआइ को भी शामिल किया गया है। इन मरीजों के इलाज के लिए एक बार में 15 से 20 लाख की जरूरत पड़ती है।

By Rafiya NazEdited By: Publish:Fri, 09 Apr 2021 07:00 AM (IST) Updated:Fri, 09 Apr 2021 11:41 AM (IST)
रेयर डिजीजी के इलाज में SGPGI बना उत्‍कृष्‍ट सेंटर, Treatment के लिए 20 लाख तक की होगी मदद
एसजीपीजीआइ में रेयर डिजीज ग्रस्त मरीजों की 20 लाख तक की होगी मदद।

लखनऊ [कुमार संजय]। भारत सरकार की रेयर डिजीज के इलाज के लिए देश के आठ सेंटर को मान्यता दी है जिसमें संजय गांधी पीजीआइ को भी शामिल किया गया है। इन मरीजों के इलाज के लिए एक बार में 15 से 20 लाख की जरूरत पड़ती है। अभी तक 15 लाख तक की सहायता मिलती थी जिसे बढ़ा कर 20 लाख कर दिया गया है। इसकी पूर्ति के लिए सरकार ने विशेष फंड बनाया है जिससे इलाज में इन्हें मदद मिलेगी। इस फंड के लिए सरकार के अलावा सामाजिक संगठन से मदद ली जाएगी। 

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा नई रेयर डिजीज नीति हाल में ही जारी किया है। उपचार की प्रकृति के आधार पर दुर्लभ बीमारियों की तीन श्रेणियों को निर्धारित किया है। एक बार में उपचार, लंबे समय तक या आजीवन उपचार की आवश्यकता वाले रोगों में अपेक्षाकृत कम लागत पर उपचार और ऐसी बीमारियां हैं जिनके लिए निश्चित उपचार उपलब्ध है, बहुत ही उच्च लागत और आजीवन चिकित्सा के श्रेणी में बाटा गया है। लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (एलएसडी) जैसे गौचर रोग, हंटर सिंड्रोम और फेब्री रोग। संजय गांधी पीजीआइ के अनुवांशिक विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा कहती है कि समय के साथ-साथ, दुर्लभ बीमारियों के बारे में लगातार जानकारी और जागरूकता बढ़ रही है। दुर्लभ रोगों की नीति की घोषणा सरकार द्वारा किया गया एक व्यापक कदम है जिससे इन मरीजों को काफी राहत मिलेगी। 80 फीसदी बच्चे होते है रेयर डिजीज से ग्रस्तभारत में दुर्लभ बीमारियों या विकारों से प्रभावित 5-10 करोड़ लोग हैं। दूसरे स्टडी में देखा गया है कि दो हजार में से एक में रेयर डिजीज हो सकता है। इन दुर्लभ स्थिति के रोगियों में से लगभग 80 प्रतिशत बच्चे हैं और उनमें से अधिकांश वयस्कता तक नहीं पहुंचने का एक कारण उच्च रुग्णता है। और इन जानलेवा बीमारियों की मृत्यु दर। 80 फीस दी रेयर डिजीज अनुवांशिकी होते हैं।

40 फीसदी आबादी किया गया विस्तार: सहायता के लाभार्थी बीपीएल परिवारों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत पात्र आबादी के लगभग 40 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है। 

कारपोरेट घराने से ली जाएगी मदद: स्वैच्छिक व्यक्तिगत योगदान के लिए एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म स्थापित करके और कॉर्पोरेट दाताओं ने स्वेच्छा से दुर्लभ बीमारियों के रोगियों की उपचार लागत में योगदान करने के लिए।

आठ केंद्र को मिली ही मान्यता: सरकार ने दुर्लभ बीमारियों के रोगियों को सहायता और इलाज लिए उत्कृष्टता के आठ केंद्रों की पहचान की है। इनमें ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली, संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ, सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स, हैदराबाद, किंग एडवर्ड मेडिकल हॉस्पिटल, मुंबई, इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, कोलकाता शामिल हैं।

क्या है रेयर डिजीज: यह एक अनुवांशिकी बीमारी है । इसमें स्टोरेज डिसऑर्डर प्रमुख परेशानी है। इसके तहत आने वाली बीमारी गाउचर सिंड्रोम, म्यूकोपालीसैक्रीडा ओसिस, फैब्री डिजीज का पता कई बार नहीं लगता है। विशेषज्ञ दूसरी परेशानी मान कर इलाज चलता रहता है क्योंकि तमाम दूसरी बीमारियों में भी जिगर और तिल्ली का आकार बढ़ जाता है। इन अनुवांशिकी बीमारी में भी अवांक्षित तत्वों के अंग की कोशिकाओं में जमा होने के कारण जिगर, स्पलीन आदि अंगों का आकार बढ़ जाता है। एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी के तहत खास दवाएं मरीजों को चढ़ाया जाता है जो तत्वों को कोशिका से बाहर कर देता है।

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