जिला पंचायत अध्यक्षों व प्रमुखों की सांसें अटकी, कभी भी जा सकता है पद

जिला पंचायत अध्यक्षों व ब्लाक प्रमुखों को पदमुक्त करने का खतरा बना है। गाजियाबाद व मेरठ समेत एक दर्जन से अधिक जिला पंचायतों में अध्यक्ष विरोधी सुगबुगाहट तेज हो गयी है।

By Ashish MishraEdited By: Publish:Mon, 20 Mar 2017 08:36 PM (IST) Updated:Mon, 20 Mar 2017 09:57 PM (IST)
जिला पंचायत अध्यक्षों व प्रमुखों की सांसें अटकी, कभी भी जा सकता है पद
जिला पंचायत अध्यक्षों व प्रमुखों की सांसें अटकी, कभी भी जा सकता है पद

लखनऊ (जेएनएन)। सूबे में सत्ता बदलते ही जिला पंचायतों और ब्लाक प्रमुख पदों पर काबिज समाजवादियों की सांसें अटकी है। अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि दो वर्ष किए जाने का विधेयक अटक जाने से जिला पंचायत अध्यक्षों व ब्लाक प्रमुखों को पदमुक्त करने का खतरा बना है। गाजियाबाद व मेरठ समेत एक दर्जन से अधिक जिला पंचायतों में अध्यक्ष विरोधी सुगबुगाहट तेज हो गयी है।
मेरठ जिले में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चहेते अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान जिला पंचायत की अध्यक्ष है, वहीं गाजियाबाद में मुलायम सिंह के करीबी विधानपरिषद सदस्य आशू मलिक का भाई काबिज है। जनवरी 2016 में जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में 75 में से 63 पर समाजवादी पार्टी के समर्थकों ने कब्जा किया था। जिसमें अधिकतर तत्कालीन मंत्रियों के परिजन ही थे। यहीं हाल ब्लाक प्रमुख पदों पर भी था। दो तिहाई से अधिक ब्लाक प्रमुख समाजवादी पार्टी नेताओं के आशीर्वाद से बन पाए थे। पंचायत राज संघ के महामंत्री नानक चंद शर्मा का कहना है कि जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुख पदों की कुर्सी सरकारी संरक्षण में कब्जाने की कोशिशें बसपा व सपाशासनकाल में अधिक हुई है। दोनों सरकारों ने अध्यक्षों को बचाने के लिए कानूनी व्यवस्था में मनमाने तरीके से बदलाव किए।


अविश्वास प्रस्ताव का खेल : बसपा शासन काल में जिला पंचायत अध्यक्षों व ब्लाक प्रमुखों के विरूद्ध अविश्वास लाने की अवधि एक वर्ष से बढ़ा कर दो वर्ष कर दी गयी थी। वर्ष 2012 में सपा सरकार आने पर कानून बदलकर अविश्वास प्रस्ताव लाने की एक वर्ष अवधि को बहाल कर दिया था। वर्ष 2016 में निर्वाचित जिला पंचायत व ब्लाक प्रमुखों की कुर्सी को बचाने के लिए अखिलेश सरकार अगस्त 2016 में उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत संशोधन विधेयक-2016 को विधानसभा में पारित करा अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि दो वर्ष करने के साथ कम से कम दो तिहाई सदस्यों का समर्थन होने की शर्त लगा दी थी।

बाद में विधेयक को विधायी विभाग से हरी झंडी न मिलने के कारण संशोधित नियमावली लागू नहीं हो सकी। प्रदेश में सत्ता परिर्वतन होने के बाद संशोधन विधेयक का कानून बनना नामुमकिन बताते हुए ब्लाक प्रमुख संघ के राहुल सिंह कहना है कि धनबल व सत्ता के सहारे कुर्सी कब्जाए हुए बैठे लोगों का कुर्सी पर बने रहना संभव नहीं होगा।
 

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