शहर में पहली बार 'गुम्मा' सुन पहले चौंके और फिर मुस्कराए गीतकार जावेद अख्तर
छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में जावेद अख्तर साहब ने कहा, समाज में गिरावट से फिल्मों का स्तर गिरा है। अब फिर फिल्मों में गीत लिखने लगा हूं।
कानपुर(जागरण संवाददाता) : यह न गीत है, न गजल है और न ही कोई कथा लेकिन मशहूर गीतकार-कथाकार जावेद अख्तर ने शहर आने पर पहली बार 'गुम्मा' सुना और चौंक गए। उन्होंने कहा कि यह तो मैने पहले कभी सुना ही नहीं था, कानपुर आने के बाद मैने सुना और जाना यह क्या है। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में आए अख्तर साहब ने फिल्मों के स्तर में आई गिरावट का सबसे बड़ा कारण समाज में आई गिरावट को बताया।
अख्तर साहब ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि पहले के बुजुर्ग लोग किस तहजीब और अदब से पेश आते हैं जबकि आजकल के युवा ऐसे नहीं हैं। न अब पहले जैसी ट्यून हैं और न ही म्यूजिक। ऐसे में अच्छे गीत कैसे लिखे जाएं। हालांकि कुछ लोग आज भी अच्छा काम कर रहे हैं। कुछ युवा भी अच्छी शायरी कर रहे हैं।
क्या है यह 'गुम्मा'
अख्तर साहब ने बताया कि मुंबई में जब लोग मिलते हैं तो उनके साथ ऐसी भाषा बोलनी पड़ती है जो उनकी समझ में आए। लखनऊ-कानपुर में ऐसा नहीं हैं। यहां तो जब भी आता हूं कुछ न कुछ सीख कर ही जाता हूं। आज मैंने पहली बार गुम्मा शब्द सुना। कानपुर में मकान निर्माण में प्रयोग होने वाली ईंट को गुम्मा भी कहा जाता है। इसी शब्द को पहली बार सुनकर वह पहले चौंक गए और फिर उसका मतलब समझकर हल्का मुस्कराए भी।कानपुर से पुराना है रिश्ता
अख्तर साहब ने बताया कि कानपुर से मेरा पुराना रिश्ता है। बचपन से लेकर अब तक कई बार कानपुर आया हूं, यहां मामी रहती थीं। उनके शौहर का यतीमखाना हुआ करता था। मोहल्ला तो याद नहीं, लेकिन आना कई बार हुआ। 17-18 साल पहले मुस्लिम पर्सलन लॉ बोर्ड के एक मूवमेंट के तहत भी आया था। मेरी किताब तरकश का एक फंक्शन कानपुर में हो चुका है। सुभाषिनी अली, माया अलघ जैसे मेरे कई दोस्त कानपुर के हैं।
सफलता की सोचता तो लिख न पाता
जावेद अख्तर ने कहा कि 'कैफी और मैंÓ की सफलता के बारे में सोचता तो शायद लिख ही नहीं पाता। कई देशों और शहरों में 200 से ज्यादा शो कर चुका हूं। हर जगह अपार प्यार मिलता है। अब फिर से फिल्मों में गीत लिखने लगा हूं। बीच में कॉपीराइट का पंगा होने की वजह से काम नहीं मिल रहा था। हालिया रिलीज फिल्म नमस्ते इंग्लैंड में भी गीत लिखे हैं। आशुतोष गोवारिकर की फिल्म पानीपत के लिए भी गीत लिख रहा हूं।
शहर में बहुत प्यार मिला
'कैफी और मैंÓ के निर्देशक राजेश तलवार ने कहा कि कानपुर में लोगों ने बहुत प्यार दिया। बहुत दिनों से यहां कार्यक्रम करना चाह रहे थे। यहां के लोगों ने बहुत अच्छा सुना।
अख्तर साहब ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि पहले के बुजुर्ग लोग किस तहजीब और अदब से पेश आते हैं जबकि आजकल के युवा ऐसे नहीं हैं। न अब पहले जैसी ट्यून हैं और न ही म्यूजिक। ऐसे में अच्छे गीत कैसे लिखे जाएं। हालांकि कुछ लोग आज भी अच्छा काम कर रहे हैं। कुछ युवा भी अच्छी शायरी कर रहे हैं।
क्या है यह 'गुम्मा'
अख्तर साहब ने बताया कि मुंबई में जब लोग मिलते हैं तो उनके साथ ऐसी भाषा बोलनी पड़ती है जो उनकी समझ में आए। लखनऊ-कानपुर में ऐसा नहीं हैं। यहां तो जब भी आता हूं कुछ न कुछ सीख कर ही जाता हूं। आज मैंने पहली बार गुम्मा शब्द सुना। कानपुर में मकान निर्माण में प्रयोग होने वाली ईंट को गुम्मा भी कहा जाता है। इसी शब्द को पहली बार सुनकर वह पहले चौंक गए और फिर उसका मतलब समझकर हल्का मुस्कराए भी।कानपुर से पुराना है रिश्ता
अख्तर साहब ने बताया कि कानपुर से मेरा पुराना रिश्ता है। बचपन से लेकर अब तक कई बार कानपुर आया हूं, यहां मामी रहती थीं। उनके शौहर का यतीमखाना हुआ करता था। मोहल्ला तो याद नहीं, लेकिन आना कई बार हुआ। 17-18 साल पहले मुस्लिम पर्सलन लॉ बोर्ड के एक मूवमेंट के तहत भी आया था। मेरी किताब तरकश का एक फंक्शन कानपुर में हो चुका है। सुभाषिनी अली, माया अलघ जैसे मेरे कई दोस्त कानपुर के हैं।
सफलता की सोचता तो लिख न पाता
जावेद अख्तर ने कहा कि 'कैफी और मैंÓ की सफलता के बारे में सोचता तो शायद लिख ही नहीं पाता। कई देशों और शहरों में 200 से ज्यादा शो कर चुका हूं। हर जगह अपार प्यार मिलता है। अब फिर से फिल्मों में गीत लिखने लगा हूं। बीच में कॉपीराइट का पंगा होने की वजह से काम नहीं मिल रहा था। हालिया रिलीज फिल्म नमस्ते इंग्लैंड में भी गीत लिखे हैं। आशुतोष गोवारिकर की फिल्म पानीपत के लिए भी गीत लिख रहा हूं।
शहर में बहुत प्यार मिला
'कैफी और मैंÓ के निर्देशक राजेश तलवार ने कहा कि कानपुर में लोगों ने बहुत प्यार दिया। बहुत दिनों से यहां कार्यक्रम करना चाह रहे थे। यहां के लोगों ने बहुत अच्छा सुना।