यूपी में पहली बार मियावाकी पद्धति से रोपे 5,400 पौधे, जानें-क्या है इसकी खासियत
उत्तर प्रदेश में मियावाकी वन के लिए चयनित पांच शहरों में कानपुर भी शामिल है यहां एनएसआई में वन विकसित करने की तैयारी है।
कानपुर, जेएनएन। उत्तर प्रदेश में पहली बार शहर में जापानी मियावाकी पद्धति से 5,400 पौधे रोपकर कानपुर नगर निगम ने बेहतर पहल की है। जैव विविधता के तहत इस पहल के सकारात्मक परिणाम आने पर इसे और विस्तार दिया जाएगा। मियावाकी वन विकसित करने के लिए प्रदेश के सर्वाधिक प्रदूषित पांच शहरों का चयन किया गया है, जिसमें कानपुर भी शामिल है, यहां पर नेश्नल शुगर इंटीट्यूट में वन विकसित करने की तैयारी है।
एनएसआई में होगा मियावाकी वन
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सर्वाधिक प्रदूषित पांच शहरों में वायु प्रदूषण कम करने के लिए मियावाकी वन लगाने का फैसला किया है। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी व आगरा में जापानी पद्धति से बहुत तेजी से उगने वाले मियावाकी वन लगाए जाएंगे। बोर्ड ने इसके लिए जरूरी धनराशि भी आवंटित की है। कानपुर में नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट में यह वन लगाया जाएगा। यहां एक हेक्टेयर में करीब 35 हजार पौधों का रोपण किया जाएगा। इसे मियावाकी वन की मॉडल साइट के रूप में विकसित किया जाएगा। इंस्टीट्यूट में पौधारोपण पर 127.50 लाख रुपये खर्च होगा। शहर में नगर निगम ने मंगलवार को खुद के संसाधनों से शहर में एक स्थल पर पौधे भी रोपे।
नगर निगम ने रोपे ग्रीन बेल्ट में पौधे
योजना के तहत कानपुर नगर निगम ने नमक फैक्ट्री चौराहा रावतपुर के पास शन्नैश्वर मंदिर की ग्रीनबेल्ट के 1450 वर्गमीटर क्षेत्रफल में जैव विविधता के तहत पौधरोपण किया। नगर आयुक्त अक्षय त्रिपाठी ने कहा कि मियावाकी वनीकरण की जापानी पद्धति है। इस पद्धति से रोपित पौधों की वृद्धि दर सामान्य पौधों से 10 गुना अधिक होती है। अगले चरण में विजय नगर स्थित चिल्ड्रेन पार्क में इस तरह पौधे लगाएंगे। यहां पर महापौर प्रमिला पांडेय, मंडलायुक्त सुधीर एम बोबडे, जिलाधिकारी डॉ. ब्रह्मदेव राम तिवारी, जिला वन अधिकारी अरविंद कुमार यादव, उद्यान अधीक्षक डॉ. वीके सिंह आदि रहे।
ये पौधे लगाए गए
पारस, पीपल, जामुन, मौलश्री, अर्जुन, पिलखन, शीशम, गोल्डमोहर, कैजुरिना, सुखचैन, गूलर, अशोक, फाइकस, टिकोमा, चंपा, बॉटल ब्रश, जैट्रोफा, बांस, कनेर, आडू, नासपाती, शहतूत, मेहंदी, तुलसी।
ऐसे होता है रोपण
मियावाकी पद्धति में प्रति वर्गमीटर में 3 से 5 पौधे लगाते हैं। पौधों की ऊंचाई 60 से 80 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसमें स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्रजातियों के 40 से 50 फीसद पौधे लगाते हैं। उसके बाद सामान्य नेटिव प्रजातियों के 50-40 फीसद पौधे लगाते हैं। बाकी माइनर नेटिव प्रजातियों का चयन किया जाता है।
मियावाकी पद्धति की खासियत 30 गुना ज्यादा घना होता इस पद्धति से तैयार जंगल सामान्य के मुकाबले। 300 वर्ष में तैयार होता है पारंपरिक विधि से जंगल। 20 से 30 वर्ष में ही जंगल तैयार हो जाता है मियावाकी पद्धति से। स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल देसी प्रजातियों के पौधे लगाए जाते हैं। इसमें रोग, कीट आदि का प्रकोप कम होता है।